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अप्पसरूवं
जह मोरो उड्डीणो वच्चइ घेत्तुं कलावपब्भारं ।
तह वच्चइ जीवो वि हु कम्मकलावेण परियरिओ ॥ ४ ॥
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जह कोइ इयरपुरिसो रंधेऊणं सयं च तं भुंजे ।
तह जीवो विसयं चिय काउं कम्मं सयं भुंजे ॥ ५ ॥
प्रो.
जह विथ सरें गुंजावायाहओ भमेज्ज हढों । तह संसारसमुद्दे कम्माइद्धो भम जीवो ॥ ६ ॥
जह बच्चइ को विनरो नीहरिडं जरघराज नवयम्मि । सोउन् बाघरात तह जीवो चइऊणं जरदेहं जाई देहम्मि || ७ ||
जह रयणं मयणसुगू हियं पि अंतोफुरंतकं तिल्लं । इय कम्मरासिगूढो जीवो वि हु जाणए किंचि ॥ ८ ॥
जह दीवो वरभवणं तुंगं पिहूदीहरं पि दीवेइ | मल्लयसंपुडछूढो तत्तियमेत्तं पयासेइ ॥ ९ ॥
तह जीवो लक्खसमूयसियं पि देहं जणेइ सज्जीवं । पुण कुंथु देहछूढो तत्तियमित्तेण तु ॥ १० ॥ मुग
जह गयणयले पवणो वच्चंतो नेय दीसइ जणेण । भवरूपी सागर
तह जीवो वि भमतो नयणेहि न घेप्पइ भवम्मि ॥ ११ ॥
जह किर घरम्मि दारेण पविसमाणो निरंभई वाऊं । इय जीव घरे रुंभ इंदियदाराई पावस्स ॥ १२ ॥
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