SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ उज्जलसीलो दहमहो * * * * काऊण सिरपणामं एगंते भणइ रावणं दुई। जेण निमित्तेण पहू विसज्जिया तं निसामेही ॥ ११ ॥ नलकुब्ब रस्स महिला उवरंभा नाम अत्थि विक्खाया। ताए विसज्जिया हु नामेण विचित्तमाला हं ॥ १२॥ सा तुज्झ दरिसणुस्सुयहियया चिंतेइ पेमसंबधा । निब्भरगुणाणुरत्ता कुणसु पसायं दरिसणेणं ।। १३ ॥ ठइऊण दो वि कण्णे रयणासवनंदणो भणइ एवं । विसं परमहिलं पि य न रूवमंतं पि पेच्छामि । १४ ।। इहपरलोयविरुद्धं परदारं वज्जियब्वयं निच्चं । उच्छिट्ठभोयणं पिव नरेण दढसीलजुत्तणं ॥ १५ ॥ नाऊण दुइकज्जं भाणिओ मंतीहि तत्व कुसलेहिं । अलियमवि भासियव्वं अप्पहियं परिगणंतेहिं ।। १६ ॥ तुट्ठा कयाइ महिला सामियभेयं करेज्ज नयरस्स । सम्माणदिनपसरा सब्भावपरायणा होइ ।। १७ ॥ भणिऊण एवमेयं दूई वि विसज्जिया दहमहेणं । गंतूण सामणीए साहइ संदेसयं सव्वं ।। १८ ।। सुणिऊग य उवरंभा वयणं दूईए निग्गया तुरिया । पत्ता दसाणणहरं तत्थ पविट्ठा सुहासीणा ।। १९ ।। भणिया य दहमुहेणं भद्दे कि एत्थ रइसुहं रणे । न य होइ माणियव्यं दुल्लंघपुरं पमोत्तूणं ।। २० ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020552
Book TitlePayaya Kusumavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhav S Randive
PublisherPrakrit Bhasha Prachar Samiti
Publication Year1972
Total Pages169
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy