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वल्जालग्गं
थरथरथरेइ हिययं जीहा घोलेइ कंठमज्झम्मि ।
नाइ मुहलावण्णं देहि त्ति परं भणतस्स ॥ ४ ॥
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किसिणिज्जंति लयंता उदहिजलं जलहरा पयत्तेण । धवलीहुति हु देता देतलयंतंतरं पेच्छ ॥ ५ ॥
(म ) सीहवज्जा
किं करइ कुरंगी बहुसुएहि ववसायमाणरहिएहि । एक्केण वि गयघडदारणेण सिंही सुहं सुवइ ॥ ६॥ जाइविसुद्धा नमो ताण मइंदाण अहह जियलोए । जे जे कुलम्मि जाया ते ते मय कुंभनिद्दलणा ॥७॥ मा जाणह जइ तुंगत्तणेण पुरिसाण होइ सोंडीरं । महो वि मदो करिवराण कुंभत्थलं दलइ ॥८॥
बेfor fव रणुप्पन्ना बज्झति गया न चेव केसरिणो । संभाविज्जइ मरणं न गंजणं धीरपुरिसाणं ॥९॥
सुसिएण निहसिएण वि तह कह वि हु चंदणेण महमहियं । सरसा वि कुसुममाला जह जाया परिमलविलक्खा ||१०||
परसुच्छेयपहरणेण निहसणे नेय उज्झिया पयई । चंदण सन्नयसीसो तेण तुमं वंदए लोओ ॥ ११ ॥
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(र) चंदणवज्जा