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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वज्जालग्गं (परंपरासे माना जाता है कि 'वज्जालग्गं' का कर्ता जयवल्लभ है; लेकिन तीसरी गाथा से 'जयवल्लभं वज्जालग्गं' यही इस ग्रंथ का नाम है ऐसा स्पष्ट होता है । ७९४ वें गाथा में कहा है कि 'वज्जालए सयललोयभिट्रिए' सब लोगों को अभिलषणीय वज्जालग्गं का नाम जयवल्लभ जगवल्लभ है यही सिद्ध होता है। वज्जालग्गं के संस्कृत छायाकार रत्नदेव ने (ई. स. १३३६) अपनी टीका में 'इसका कर्ता श्वेतांबर जैन था ऐसा कहा है। वह १४ वें शतक के पूर्व हुवा होगा ऐसा अनुमान किया जाता है । हाल की 'गाहासत्तसई' (गाथासप्तशती) में सिर्फ एक ही गाथा में शब्द द्वारा एक ही प्रसंग का हुबह चित्र दिया है । लेकिन वज्जालग्गं में एकत्र ही विषय पर अनेक गाथाओं का संग्रह कर विषय स्पष्ट किया है। बज्जा याने पद्धति और वज्जालग्गं का अर्थ है एक ही विषय पर अनेक गाथाओं का संग्रह । इसमें सोदार, गाहा कव्व, सज्जण दुज्जण, सेवय. भमर, गुण, चंदण, आदि विषयों पर ७९५ गाथाओं का संग्रह है। यहाँ दीणवज्जा' में दीन मनष्य की याचक वृत्ति, सिंहवज्जा' मे शेर की स्वतंत्र पराक्रमी वृत्ति, तथा 'चंदनबज्जा' में परोपकारी सज्जन के समान चंदन की पद्धति दी है। For Private And Personal Use Only
SR No.020552
Book TitlePayaya Kusumavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhav S Randive
PublisherPrakrit Bhasha Prachar Samiti
Publication Year1972
Total Pages169
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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