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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४२ ) चाहिए, बीमार वाले के साथ खेलने कूदन नहीं देना चाहिये न उनके घर हो जाने देना चाहिये । बीमार हो उसका सर्दी से बचाव रखना चाहिये, हवा न लगने देनी चाहिये, हलका आहार करना चाहिये, गर्म कपड़े पहिनाने चाहिये, छाती ढकी रखनी चाहिये, कमरा गर्म रखना चाहिये । युकलिपट्स तैल सूघना चाहिये। रोग निर्बलावस्था । बीमारी से उठे बाद रोगीको ‘खाने ही खाने की लग जाती है। जो चीज उसे पसंद होती है उसके लिये उसका जी ललचाने लगता है कि "कब खाऊंगा" इत्यादि और वह उसे मिल भी गई तो थोड़ी सी से उसकी तृप्ति नहीं होतो ऐसी वस्तु खाना कुपथ्य करना है। इससे बीमारी लौट अातो है और भयंकर परिणाम निकलता है। बोमारी मिटे वाद कमजोरी को हालत में रोगो को क्या खिलाना चाहिये और क्या नहीं, सो डाकृर की सलाह से ठहराना चाहिये, क्योंकि डाकर के सिवाय इस बात के ठहराने का अधिकारो कोई नहीं है। बीमारी की हालत में डाकर रोज देख कर इस विषय की सूचना देता था, अब डाकुर रोज नहीं पाता चार पांच रोज में देखता है, उसका सब काम नर्स पर आ ठहरता है। वह अच्छी होती है तो अपना और डाकुर का काम अकेलो कर लेती है। बीमारी अच्छी होने के बाद खाने पीने की लापरवाही होने से या घर के आदमियों के लाड़ से रोगों के मर जाने के सैकड़ों उदाहरण हमारे सुनने में आते हैं। मैं कह चुका हूं कि बीमारी से उठे बाद रोगी को “खाने हा" की सूझता है। जो चीज देख पड़े उसे वह खाना चाहता है। इसके लिये वह नर्स For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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