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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असंभव है। अतः बाल जीवों को तो देव-गुम आदि में रमणता कर मन को जोडे रखना चाहिए। यदि सूक्ष्म बाबत में मन श्रमित हो जाय तब मन को शांति प्रदान करनी चाहिए। साथ ही उससे नियमित रूपसे काम लेना चाहिए, वर्ना शारीरिक व मानसिक स्थिति बिगडते विलम्ब नहीं लगता। इस तरह आत्मा की श्रेष्ठता की उपेक्षा विघ्नों का सामना करना पड़ता है....उन्हें सहना पडता है। मन-मस्तिष्क का यंत्र बिगड न जाय, इसकी पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। साथ ही मन पर आत्मा की ऐसी सुंदर सर्वोत्तम सत्ता प्रस्थापित करनी चाहिए कि जिससे मन में शोक, वियोग एवं चिंता के अनुपयोगी विचार उत्पन्न ही न होवे। आत्म-ज्ञान आत्मसात कर मन पर अकुंश रख सकें ऐसी आत्मावस्था किये बिना मन को नियंत्रित करने में वह (आत्मा) शक्तिमान नहीं होता। ___मन को नियंत्रित कर उपयोगपूर्वक चलने वाली आत्मा आंतरजीवन का भोक्ता बनती है और होती है सहजानंद की एकमेव रसिया! For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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