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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०. रस-मीमांसा बाह्य पदार्थजन्य आनन्दरस लोप हो जाता है। अतः आत्मज्ञानी-ध्यानी योगीजन आत्मा के सहजानंद रसप्राप्ति हेतु अंतर में लीन-तल्लीन हो जाते हैं। -श्रीमद् बुद्धिमागरसूरिजी पादरा :१२-३-१९१२ किसी भी विषय (बाबत) में आनन्द आता है तब निद्रा नहीं आती। जबकि जिसमें समझ नहीं पडती और विषय अच्छा नहीं लगता तब हम उकता जाते हैं। जिसकी जिस प्रमाण में दृष्टि विकसित हुई हो, उसे उक्त दृष्टि के अधिकार से सम्बन्धित विषय....वस्तुओं में मजा आता है। बालकों को जिममें आनन्दानुभूति होती है, उसमें युवावर्ग को नहीं होती। भोगीजनों (विषयासक्त) को जिसमें मजा आता है उसमें योगीजनों को नहीं आता। युवकों को जिसमें मुख....आनंद मिलता है, उसमें वृद्धजनों को नहीं मिलता। कथा-रसिकों को कथा-श्रवण करने में मजा आता है। लेकिन दार्शनिकों को उसमें मजा नहीं आता। शिकारियों को जिसमें आनन्द आता है, उसमें दयालुओं को नहीं आता। तत्त्ववेत्ताओं को जिसमें मजा आता है, उसमें अज्ञानियों को कतई नही आता। मिथ्यात्वियों को जिसमें आनन्द मिलता है, उसमें सम्यक्-दृष्टिवालों को नहीं मिलता। अरे, भक्तजनों को जिसमें सुख मिलता है, उसमें योद्धाओं को नहीं आता। इसका कारण यह है कि सर्व जीवों की अपनी भिन्न-भिन्न पग्नियाँ हैं। फलस्वरूप बुद्धि, रुचि एवं अधिकार भेद से उनमें रहीं विभिन्न परिणांन योगवश विभिन्न प्रकार के सस भेद भी दृष्टिगोचर होते हैं। बाह्य पदार्थों द्वारा आज्ञानवश जिय आनन्दरस का भोगोपभोगाया जाना है। वस्तुतः वह क्षणिक होने के कारण वह खत्म हो गता है। वा. ::: :ग्वा जाय For Private and Personal Use Only
SR No.020549
Book TitlePath Ke Fool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagarsuri, Ranjan Parmar
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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