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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्याय 9 रख-रखाव पाण्डुलिपियों के रख-रखाव की समस्या पारडुलिपियों के रख-रखाव की समस्या भी अन्य समस्याओं की भाँति ही बहुत महत्त्वपूर्ण है । हम यह देख चुके हैं कि पाण्डुलिपियाँ ताड़पत्र, भूर्जपत्र, कागज, कपड़ा, लकड़ी, रेशम, चमड़े, पत्थर, मिट्टी, चाँदी, सोने, ताँबे, पीतल, काँसे, लोहे, संगमरमर, हाथीदांत, सीप, शंख आदि पर लिखी गई हैं, अतः रख-रखाव की दृष्टि से प्रत्येक की अलगअलग देख-रेख आवश्यक होती है। ___डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द अोझा ने बताया है कि "दक्षिण की अधिक ऊष्ण हवा में ताडपत्र की पुस्तकें उतने अधिक समय तक रह नहीं सकतीं जितनी कि नेपाल आदि शीत देशों में रह सकती हैं।" यही कारण है कि उत्तर में नेपाल में ताड़पत्र पुस्तकों की खोज की गई तो ताड़पत्र की पुस्तकें अच्छी दशा में मिलीं। इसी कारण से 11वीं शताब्दी से पूर्व के ग्रन्थ कम मिलते हैं । 11वीं शती से पूर्व के ताड़पत्र के ग्रन्थ इस प्रकार मिले हैंदूसरी ईस्वी शताब्दी एक नाटक की पाण्डुलिपि का अंश जो त्रुटित है। चौथी ईस्वी शताब्दी ताड़पत्र के कुछ टुकड़े। काशगर से मैकर्टिन द्वारा भेजे हुए। छठी ईस्वी शताब्दी 1. प्रज्ञापारमिता-हृदय-सूत्र । । जापान के होरियूजी 2. ऊष्णीष-विजय-धारणी (बौद्ध मठ में । ग्रन्थ)। सातवीं ईस्वी शताब्दी स्कन्द-पुराण । नेपाल ताड़पत्र संग्रह । नवीं (859 ई०) शताब्दी परमेश्वर-तन्त्र । केम्ब्रिज संग्रह में। दसवीं (906 ई०) शताब्दी लंकावतार । नेपाल के ताड़पत्र संग्रह में । और बस । यही स्थिति भोजपत्र पर लिखी पुस्तकों की है। ये भूर्जपत्र या भोजपत्र पर लिखी पुस्तकें अधिकांश काश्मीर से मिली हैं 1. भारतीय प्राचीन लिपि-माला, पृ. 1431 For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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