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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्द और अर्थ की समस्या/333 इस प्रकार हमने पाण्डुलिपि की दृष्टि से अर्थ की समस्या को विविध पहलुओं से देखा है । इसमें हमने पाण्डुलिपियों के अर्थ-विशेषज्ञों के साक्ष्यों का सीधे उपयोग किया है । किन्तु इसी के साथ सामान्यतः अर्थ-ग्रहण के उपायों का शास्त्र में (काव्य-शास्त्र में) जिस रूप में उल्लेख हुअा है, उसका भी विवरण अत्यन्त संक्षेप में दे देना उचित होगा। काव्य शास्त्र द्वारा प्रतिपादित तीन शब्द शक्तियों से सभी परिचित हैं, वे हैं : अभिधा, लक्षणा तथा व्यंजना । एक शब्द के कोष में कई अर्थ होते हैं । स्पष्ट है कि कितने ही शब्द अनेकार्थी होते हैं, किन्तु एक रचना में एक समय में एक ही अर्थ ग्रहण किया जा सकता है, ऐसी 14 बातें काव्य-शास्त्रियों ने बतायी हैं जिनके कारण अनेकार्थी शब्दों का एक ही अर्थ माना जाता है, ये 14 बातें हैं : 1. संयोग, 2. वियोग, 3. साहचर्य, 4. विरोध, 5. अर्थ, 6. प्रकरण, 7. लिंग, 8. अन्य सान्निधि, 9. सामर्थ्य, 10. औचित्य, 11. देश, 12. काल, 13. व्यक्ति, एवं 14. स्वर। किसी भी शब्द का एक अर्थ पाने के लिए इन बातों की सहायता ली जाती है। इनका विस्तृत ज्ञान किसी भी काव्य-शास्त्रीय ग्रन्थ (जैसे-काव्य प्रकाश) से किया जा सकता है । वस्तुतः इतना तो किसी भी अर्थ को प्राप्त करने के लिए प्रारम्भिक ज्ञान ही माना जा सकता है। इस सम्बन्ध में आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने जो चेतावनी दी है, यह ध्यान में रखने योग्य है । वे कहते हैं, "प्राचीन कवियों के प्रयुक्त शब्दों का अर्थ करने में विशेष सावधानी की आवश्यकता है। एक ही शब्द विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है।" इस वाक्य में प्राचार्य महोदय ने देशभेद से शब्दार्थ-भेद की ओर संकेत किया है, अतः अर्थ-ग्रहण के लिए ग्रन्थ और लेखक के देश का भी ध्यान रखना होता है । यही बात काल के सम्बन्ध में भी है । कालभेद से भी शब्दार्थ-भेद हो जाता है । विशिष्ट ज्ञान, जो पाण्डुलिपि-विज्ञानार्थी में अपेक्षित है, उसकी ओर कुछ संकेत ऊपर किये गये हैं । विविध विद्वानों के अर्थानुसंधान के प्रयत्न भी उनके उद्धरणों और उदाहरणों सहित बताये गये हैं । इनसे अर्थ तक पहुँचने की व्यावहारिक प्रक्रियाओं का ज्ञान होता है। उससे मार्ग का निर्देश मात्र होता है। 000 For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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