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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शब्द और अर्थ की समस्या / 315 मिलित शब्दों के सम्बन्ध में कुछ विस्तार से आरम्भ में ही दिया गया है । मिलित शब्दों में पहली समस्या शब्द के यथार्थ रूप को निर्दिष्ट करना है अर्थात् ऊपर दिये गये उदाहरण में यह निर्दिष्ट करना होगा कि 'मानु सहों' या 'मानुस हों' में से कवि को अभिप्रेत शब्दावली कौनसी हो सकती है । इसके लिए पूरे चरण को ही नहीं, पूरे पद को शब्दों में स्थापित करना होगा, और तब पूरे सन्दर्भ में शब्द रूप का निर्धारण करना होगा । इस प्रक्रिया में भंग-पद और अभंग पद - श्लेष को भी दृष्टि में रखना होगा । मिलित शब्दावली में से ठीक शब्द रूपों को न पकड़ने के कारण अर्थ में कठिनाई पड़ेगी ही । यहाँ इसके कुछ उदाहरण और देना समीचीन होगा । 'नवीन' कवि कृत 'प्रबोध सुधासर' के छन्द 901 के एक चरण में 'शब्द-रूप' यों ग्रहरण किये गये हैं: 'तू तो पूजे आँख तले वह तनखत ले' 'शब्द रूप देने वाले को पूरे सन्दर्भ का ध्यान न रहा । मिलित शब्दावली से ये शब्द-रूप यों ग्रहरण किये जाने चाहिये थे' 'तू तौ पूजे प्राखत ले' आदि । श्रख तले से अर्थ नहीं मिलता । प्राखत = प्रक्षत = चावल से अर्थ ठीक बनता है । साथ ही, किसी शब्द का रूप भौतिक कारणों से क्षत-विक्षत हुआ है तो उसकी पूर्ति करनी होती है । शिला पर होने से कोई चिप्पट उखड़ जाने से अथवा किसी स्थल के घिस जाने से' कागज फट जाने से, दीमक द्वारा खा लिये जाने से अथवा अन्य किसी कारण से शब्द रूप क्षत-विक्षत हो सकता है । इस स्थिति में पूरे पाठ की परिकल्पना कर शब्द के क्षतांश की पूर्ति करनी होगी । ऐसे प्रस्तावित या अनुमानित शब्दांश को कोष्ठकों में ( ) रख दिया जाता है : उदाहरण के लिए 'राउलवेल' की पंक्तियाँ दी जा सकती हैं : पहली पंक्ति (1) रोडे राउल बेल बखारणा जइ नमः सिध ***** (2) (3) इ आयणु ज (4) जा जेम्ब जाणइ सो तेम्ब वखारणइ । हासे तो से राजइ रारणइ (5) (6) ........ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (7) दूसरी पंक्ति भा (8) उ भाव इ इतने से अंश में अर्थात् पहली पंक्ति और दूसरी पंक्ति के आरम्भ में 8 स्थल ऐसे हैं जो क्षत हैं । अब पाठ-निर्माण की दृष्टि से (1) पर (ऊं) की कल्पना की जा सकती है । (2) के स्थान पर ( भ्यः ||) रखा जा सकता है । संख्या 3 के क्षत स्थान की पूर्ति में कल्पना सहायक नहीं हो पाती है, अतः इसे बिन्दु ........ लगाकर ही छोड़ दिया जायेगा । 4 के खाली स्थान पर ज के साथ (पी) ठीक बैठता है। 5 का अंश पूरे उपवाक्य का होगा, इसी प्रकार संख्या 6 का भी इनकी पूर्ति के लिए । शब्दों तक भी कल्पना से नहीं For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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