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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 304/पाण्डुलिपि-विज्ञान 3-साम्य-(क) कुछ पंक्तियों में ऐसा साम्य है जो उस युग के कितने ही कवियों __ में मिल सकता है। (ख) जो सात पंक्तियाँ तुलनार्थ दी गई हैं, उनमें से चार वस्तुतः प्रक्षिप्त अंश की हैं, शेष तीन का साम्य बहुत साधारण है, जिसे यथार्थ में आधार नहीं बनाया जा सकता। 4-विषय-भेद--गुजराती नरपति की दोनों रचनाएँ जैन धर्म सम्बन्धी हैं । ये जैन थे, अतः वस्तु की प्रकृति और कवि के विश्वास-क्षेत्र में स्पष्ट अन्तर होने से दोनों एक नहीं हो सकते । यह विवाद यह स्पष्ट करता है कि एक नाम के कई कवि हो सकते हैं और उससे कौनसी रचना किस कवि की है, यह निर्धारण करना कठिन हो जाता है। नाम साम्य के कारण कई भ्रान्तियाँ खड़ी हो सकती हैं, यथा-एक 'भूषण' विषयक समस्या को उदाहरणार्थ ले सकते हैं : 'भूषण' कवि का नाम नहीं उपाधि हैं । अतः खोजकर्ताओं ने 'भूषण' का असली नाम क्या था, इस पर अटकलें भी लगायीं। जब एक विद्वान् को 'मुरलीधर कवि भूषण' की कृतियाँ मिली तो उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई और उन्होंने घोषित किया कि 'भूषण' का मूल नाम 'मुरलीधर' था । इस प्रकार यह भ्रम प्रस्तुत हुआ कि 'भूषण' और 'मुरलीधर कवि भूषण' दोनों एक हैं । तब अन्तरंग और बाह्य साक्ष्य से यह निष्कर्ष निकाला गया कि दोनों कवि भिन्न हैं । क्यों भिन्न हैं, उसके कारण तुलनापूर्वक निम्नलिखित बताये गये हैं : महाकवि भूषण __ मुरलीधर कवि भूषण 1. इनके पिता का नाम रत्नाकर है। 1. इनके पिता का नाम रामेश्वर है। 2. इनका स्थान त्रिविक्रमपुर (तिकवांपुर) 2. इन्होंने स्थान का नाम नहीं दिया । _है तथा गुरु का नाम धरनीधर था। 3. इनके आश्रयदाता हृदयराम सुत रुद्र ने 3. इनके आश्रयदाता देवीसिंह देव ने इन्हें इन्हें 'भूषण' की उपाधि दी। "कुल 'कवि भूषण' की उपाधि दी। सूलंक चित्रकूट पति साहस शील समुद्र। कवि भूषण पदवी दई हृदयराम सुत रुद्र ।" (शिवराज भूषण)। 4. इनके एक प्राश्रयदाता शिवाजी थे। 4. इनके एक आश्रयदाता हृदयशाह गढ़ा धिपति थे। 5. इन्होंने केवल अलंकार ग्रन्थ लिखा 5. इन्होंने रस, अलंकार और पिंगल तीनों जिसका वर्ण्य इतना अलंकार नहीं पर रचना की। पिंगल को इन्होंने जितना शिवराज का यशवर्णन था। कृष्ण-चरित बना दिया है। 6. इनका रचना-काल 1730 के लगभग 6. इनका रचना-काल 1700-1723 है। 7. इनकी भनिता है 'भूषण भनत' और अधिकांण इन्होंने इसी रूप में या केवल भूषण नाम से छाप दी है। 7. इन्होंने 'कविभूषण' छाप बहुधा दी हैं। कभी-कभी केवल 'भूषण' छाप भी है, 'भनत' शब्द का प्रयोग सम्भवतः नहीं किया। 8. इन्होंने अपने समस्त ग्रन्थों को 'प्रकाश' नाम दिया। 8. इन्होंने अपने ग्रन्थों को 'भूषण' नाम दिया। For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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