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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काल निर्धारण/303 प्रीतये' in the first कारिका is explained in the वृत्ति as 'रामायणमहाभारत प्रभतिनि लक्ष्ये सर्वत्र प्रसिद्ध व्यवहारं लक्षयतां सहृदयानामानन्दो मनसि लभतां प्रतिष्ठिामिति प्रकाश्यते'. It will be noticed that the word प्रीति is purposely rendered by the double meaning word अानन्द (pleasure and the author आनन्द). The whole sentence may have two meanings 'may pleasure find room in the heart of the men of taste etc. and 'may aria (the author) secure regard in the heart of the (respected) ay who defined (the nature of ध्वनि) to be found in the रामायण &e'. Similary the words सहृदयोदयलाभ mat: in the last verse of the afat may be explained as 'for the sake of the benefit viz. the appearance of man of correct literary taste' or 'for the sake of securing the rise (of the fame) of सहृदय (the author).1 काणे महोदय के उक्त अवतरण से स्पष्ट है कि विविध साक्ष्यों, प्रमाणों से उन्हें यही समीचीन प्रतीत हुआ कि 'सहृदय' और 'पानन्दवर्धन' को अलग-अलग माने, सहृदय और ग्रानन्द में गुरु-शिष्य जैसा निकट-सम्बन्ध परिकल्पित करें, और 'सहृदय' एवं 'प्रीति' जैसे शब्दों को श्लेष मानकर एक अर्थ को 'सहृदय' नाम के व्यक्ति तथा दूसरे को 'प्रानन्द' नाम के व्यक्ति के लिए प्रयुक्त मानें। कवि ने 'सहृदय' को ध्वनिकार का नाम नहीं माना, 'उपाधि' माना है, क्योंकि 'ध्वनि' में 'सहृदय' शब्द का बहुल प्रयोग हुआ है, इसलिए उन्हें यह उपाधि दी गई। उपाधि दी गई या 'सहृदय' उपाधि है इसका कोई अन्य बाह्य या अन्तरंग प्रमाण नहीं मिलता। जो भी हो, इस उदाहरण से कवि-निर्धारण विषयक समस्या और समाधान की प्रक्रिया का कुछ ज्ञान हमें होता है । कभी दो कवियों के नाम-साम्य के कारण यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि अमुक कृति किस कवि की है। 'काल-निर्धारण' के सम्बन्ध में 'बीसलदेव रासो' का उल्लेख हो चुका है । कुछ विद्वानों ने यह स्थापना की कि बीसलदेव रासो का रचयिता 'नरपति' वही 'नरपति' है जो गुजरात का एक कवि है जिसने सं० 1548 ई० तथा 1503 ई० में दो अन्य ग्रन्थों की रचना की । इन विद्वानों ने दोनों को एक मानने के लिए दो अाधार लिये 1--भाषा का आधार, और 2-कुछ पंक्तियों का साम्य इस स्थापना को अन्य विद्वानों ने स्वीकार नहीं किया। उनके आधार ये रहे--- 1--नाम-गुजराती नरपति ने कहीं भी 'नाहू' शब्द अपने नाम के साथ नहीं ___ जोड़ा, जैसाकि बीसलदेव रासो के कवि ने किया है । 2-भाषा-भाषा 'बीसलदेव' रास की 16 वीं शती की नहीं, 14 वीं शती की है । Kane, P.V.-Sahityadarpan (Introduction), p. LXIV. For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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