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12/पाण्डुलिपि-विज्ञान
किस प्रकार एक अभिलेख को एक अन्य भाषा में लिखा परिकल्पित कर लेने के कारण ठीक नहीं पढ़ा जा सका। भाषा लिपि-ज्ञान में बहुत सहायक होती है। फिर पांडुलिपि विज्ञान में पांडुलिपि के कई आयाम भाषा पर ही निर्भर करते हैं। पांडुलिपि की वस्तु का परिचय भाषा के बिना असम्भव है। भाषा विज्ञान से ही वह तकनीक भी निकाली जा सकती है, जिसमें बिल्कुल ही अज्ञात लिपि और उसकी अज्ञात् भाषा का कुछ अनुमान लगाया जा सके। ऐसी लिपि जिसकी लेखन-प्रणाली और भाषा का पता नहीं, उद्घाटित नहीं की जा सकती है। एक प्रकार से यह कार्य असम्भव ही माना गया है। विश्व के इतिहास में अभी तक ऐसे उद्घाटन का केवल एक ही उदाहरण मिलता है। माइकेल वैट्रिस ने क्रीट की लाइनियर बी (Linear B) का उद्घाटन किया। यह क्रीट की एक भाषा थी । किन्तु इसके उद्घाटन से पूर्व न तो इसकी लेखन-प्रणाली का ज्ञान था, न यह ज्ञान था कि यह कौनसी भाषा है। वस्तुतः यह सफलता वेंट्रिस महोदय को मुख्यतः भाषावैज्ञानिक-विश्लेषण की एक संगत तकनीक के उपयोग से ही मिली। अतः भाषा-विज्ञान ऐसे कठिन मामलों में सहायक हो सकता है।
किसी भी हस्तलेख के भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन से ही यह ज्ञात हो सकता है कि वह किस भाषा में लिखा गया है। इसी से उस ग्रन्थ की भाषा के व्याकरण, शब्दरूपों एवं वाक्य-विन्यास तथा शैली का ज्ञान भी होता है। किस काल की और कहाँ की भाषा है, यह जानने में भी यह विज्ञान सहायक होता है । इस प्रकार भाषा ज्ञान से हम पांडुलिपि के क्षेत्र का परिचय पा सकते हैं। दूसरी ओर पांडुलिपि की भाषा स्वयं भाषा-विज्ञान की किसी समस्या पर प्रकाश डालने वाली सिद्ध हो सकती है। किसी विशेष-कालगत भाषा की प्रवृत्तियों का ज्ञान पांडुलिपियों से हो सकता है। इस प्रकार भाषा-विज्ञान और पांडुलिपियाँ एक दूसरे के लिए सहायक हैं।
पुरातत्त्व (Archaelogy) के विशद अनुसंधान क्षेत्र में शिलालेख, मुद्रालेख ताम्रपत्र आदि अनेक प्रकार की ऐसी सामग्री आती है जिसका उपयोग हस्तलेख-विज्ञान भी करता है। वस्तुतः पुरातत्त्व के क्षेत्र में जब ऐसे प्राचीन लेखों का अध्ययन होता है, तब वह हस्तलेख विज्ञान के क्षेत्र में भी सम्मिलित होता है । अतः उसके लिए इस विज्ञान की शरण अनिवार्य ही है, और हमारे विज्ञान के लिए भी पुरातत्त्व सहायक है, क्योंकि बहुत से प्राचीन महत्त्वपूर्ण हस्तलेख पुरातत्त्व ने ही प्रदान किये हैं। मिस्र के पेपीरस, सुमेरियन सभ्यता के ईट-लेख, भारत के तथा अन्य देशों के शिलालेख तथा अन्य लेख आदि पुरातत्त्व ने ही उद्घाटित किये हैं । और उनका उपयोग पांडुलिपि-विज्ञान-विशारदों ने किया है । यह भी तथ्य है कि पांडुलिपि-विज्ञान को पांडुलिपि के विषय में पुरातन कालीन जिस परिवेश और पृष्ठभूमि के ज्ञान की आवश्यकता होती है, वह पुरातत्त्व से प्राप्त हो सकता है।
__ इतिहास का क्षेत्र भी बहुत विशद है । इसकी आवश्यकता प्रायः प्रत्येक ज्ञान-विज्ञान को पड़ती है। इसी दृष्टि से हमारे विज्ञान के लिए भी इतिहास की शरण आवश्यक होती है। इस विज्ञान को सही परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए इतिहास की सहायता लेनी पड़ती है। हस्तलेखों की पृष्ठभूमि का ज्ञान भी इतिहास से ही मिलता है।
पांडुलिपियों में लेखकों के नाम और वंश रहते हैं, आश्रय-दाताओं के नाम रहते हैं, देश एवं काल से सम्बन्धित कितनी ही बातों का भी उल्लेख रहता है, प्राश्रय-दाताओं की भी वंश परम्परा दी जाती है। ऐसी प्रभूत सामग्री पांडुलिपियों की पुष्पिकानों में भी दी
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