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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काल निर्धारण 263 बारह वर्ष का ईसवी सन् की सातवीं शताब्दी से पूर्व इस संवत् का उल्लेख मिलता है। बृहस्पति की गति के आधार पर इसका 12 वर्ष का चक्र चलता है। इसके वर्ष महीनों के नाम चंत्र, वैशाखादि पर ही होते हैं पर बहुधा उनके पहले 'महा' शब्द लगा दिया जाता है, जैसे--महाचैत्र, महाफाल्गुन आदि । अस्त होने के उपरान्त जिस राशि पर बृहस्पति का उदय होता है, उस राशि या नक्षत्र पर ही उस वर्ष का माम 'महा' लगा कर बताया जाता है। साठ (60) वर्ष का दूसरा संवत्सर 60 वर्ष के चक्र का है। बृहस्पति एक राशि पर एक वर्ष के 361 दिन, 2 घड़ी और 5 पल ठहरता है । इसके 60 वर्षों में से प्रत्येक को एक विशेष नाम दिया जाता है। इन साठ वर्षों के ये नाम हैं : 1. पूभव, 2. विभव, 3. शुक्ल, 4. प्रमोद, 5. प्रजापति, 6. अंगिरा, 7. श्रीमुख, 8. भाव, 9. युवा, 10. धाता, 11. ईश्वर, 12. बहुधाय, 13. प्रभायी, 14. विक्रम, 15. वृष. 16. चित्रभानु, 17. सुभानु, 18. तारग, 19. पाथिव, 20. व्यय, 21. सर्वजित, 22. सर्वधारी, 23. विरोधी, 24. विकृति, 25. खर, 26. नन्दन, 27. विजय, 28. जय, 29. मन्मथ, 30. दुर्भुख, 31. हेमलव, 32. विलंबी, 3... विकारी, 31. शार्वरी, 35. प्लव, 36. शुभकृत, 37. शोभन, 38. क्रोधी, 39. विश्वावसु, 40. पराभव, 41. प्लवन, 42. कीलक, 4.2. सौम्य, 44. साधारण, 5. विरोधकृत, 46. परिधावी, 47. प्रभादी, 48. प्रानन्द, 49. राक्षस, 50. अनल, 51. पिंगल, 52. कालयुक्त, 53. सिद्धार्थी, 54. रौद्र, 55. दुर्मति, 56. दुंदुभी, 57. रुधिरोद्गारी, 58. रक्ताक्ष, 59. क्रोधन और 60. क्षय ।। इस संवत्सर का उपयोग दक्षिण में ही अधिक हुआ है उत्तरी भारत में बहुत कम । बार्हस्पत्य-संवत् का नाम निकालने की विधि वाराहमिहिर ने यों बतायी है जिस शक संवत् का वार्हस्पत्य वर्ष नाम मालूम करना इष्ट हो उसका गत शक संवत् लेकर उसको 11 से गुरिणत करो, गुणनफल को चौगुना करो, उसमें 8589 जोड़ दो जो जोड़ पाये उसमें 3750 से भाग दो, भजनफल को इष्ट गत शक संवत् में जोड़ दो जो जोड़ मिले उसमें 60 का भाग दो, भाग देने के बाद जो शेष रहे उस संख्या को यह उक्त प्रभवादि सूची में जो नाम क्रमात् पाये वही उस इष्ट गत शक संवत् का बार्हस्पत्य-वर्ष का नाम होगा। दक्षिण बार्हस्पत्य-संवत्सर का नाम यों निकाला जा सकता है कि 38 गत शक संवत् में 12 जोड़ों और योगफल में 60 का भाग दो-जो शेष बचे उस संख्या का वर्ष नाम अभीष्ट वर्ष नाम है या इष्ट गत कलियुग-संवत् में उस नियमानुसार पहले 12 जोड़ो, फिर 60 का भाग दो-जो शेष बचे उसी संख्या का प्रभवादि क्रम से नाम बार्हस्पत्य-वर्ष का अभीष्ट नाम होगा। ग्रह परिवृत्ति-संवत्सर यह भी 'चक्र प्राश्रित' मंवत् है। इसमें 90 वर्ष का चक्र रहता है । 90 वर्ष पूरे होने पर पुनः 1 से प्रारम्भ होता है । इसमें भी शताब्दियों की संख्या नहीं दी जाती, केवल वर्ष संख्या ही रहती है, इसका प्रारम्भ ई० पूर्व 24 से हुआ माना जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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