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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाठालोचन/223 अतः स्पष्ट है कि पाठालोचन अथवा पाठानुसंधान एक महत्त्वपूर्ण अनुसंधान है। किसी भी अन्य अनुसन्धान से इसका महत्त्व कम नहीं माना जा सकता। इस अनुसंधान में उन सभी मनःशक्तियों का उपयोग करना पड़ता है जो किसी भी अन्य अनुसंधान में उपयोग में लायी जाती हैं। पाठालोचन में शब्द और अर्थ का महत्त्व पाठालोचन का सम्बन्ध शब्द तथा अर्थ दोनों से होता है अतः इसे केवल भाषावैज्ञानिक विषय ही नहीं माना जा सकता, साहित्यिक भी माना जा सकता है। डॉ० किशोरीलाल ने अपने एक निबन्ध में इसी सम्बन्ध में यों विचार प्रकट किये हैं : "इस दृष्टि से सम्पादन की दो सरणियों का उपयोग हो रहा है- (1) वैज्ञानिकसम्पादन, और (2) साहित्यिक सम्पादन । वैज्ञानिक एवं साहित्यिक प्रक्रिया में मूलतः अन्तर न होते हुए भी आज का वैज्ञानिक सम्पादक शब्द को अधिक महत्त्व देता है और साहित्यिक सम्पादक मर्थ को । इसमें सन्देह नहीं कि शब्द और अर्थ की सत्ता परस्पर असंपृक्त नहीं है फिर भी अर्थ को मूलतः ग्रहण किये बिना प्राचीन हिन्दी काव्यों का सम्पादन सर्वथा निर्धान्त नहीं। इन्हीं सब कारणों से शब्द की तुलना में अर्थ की महत्ता स्वीकार करनी पड़ती है। आज अधिकतर पाठ-सम्पादन में जो भ्रान्तियाँ उत्पन्न होती हैं, वे अर्थ न समझने के कारण।" डॉ. किशोरीलाल जी ने जो विचार व्यक्त किये हैं, वे समीचीन हैं, पर किसी सीमा तक ही। ठीक पाठ न होने से ठीक अर्थ पर भी नहीं पहुँचा जा सकता। डॉ. किशोरीलाल जी ने अपने निबन्ध में जो उदाहरण दिये हैं, वे गलत अर्थ से गलत शब्द तक पहुंचने के हैं । उदाहरणार्थ, 'आँख तले' जिसने पाठ दिया, उसकी समझ में 'आखतले' नहीं जमा, उसे लगा कि 'ख' को ही गलती से 'पाख' लिख दिया गया है। 'पाख' का कोई अर्थ नहीं होता, ऐसा उसने माना । क्योंकि पाठ-सम्पादक या लिपिक ने अर्थ को महत्त्व दिया उसने 'पाख' को 'मांख' कर दिया । अब आप अर्थ को महत्त्व देकर 'आखत ले' कर रहे हैं, तो भ्रांत पाठ वाले की परिपाटी में ही खड़े हैं। यथार्थ यह है कि 'आँख' और 'पाख' शब्द रूप से अर्थ ठीक नहीं बैठता । आपने उसके रूप की नयी सम्भावना देखी। 'तले' का 'त' आंख से मिलाया और 'ले' को स्वतन्त्र शब्द के रूप में स्वीकार किया । 'आँख तले' शब्द रूप के स्थान पर 'पाखत ले' रूप जैसे ही खड़ा हुआ, अर्थ ठीक लगने लगा। शब्द रूप 'आख+तले' नहीं 'पाखत+ले' है । जब हम शब्द का रूप 'आखत ले' ग्रहण करेंगे तभी ठीक अर्थ पर पहुंच सकेंगे । शब्द ही ठीक नहीं होगा तो अर्थ कैसे ठीक हो सकता है। शब्द से ही अर्थ की ओर बढ़ा जाता है । अतः आवश्यक यह है कि वैज्ञानिक प्रणाली से ठीक या यथार्थ शब्द पर पहुंचा जाय, क्योंकि शुद्ध शब्द ही शुद्ध या समीचीन अर्थ दे सकता है। वस्तुतः ग्रन्थ से अर्थ प्राप्त करने का एक अलग ही विज्ञान है । उक्त उदाहरण को ही लें तो 'प्राख (प्रांख)+तले 'पाखत + ले' और 'पा+ख+तले' ये तीन रूप एक शब्द के बनते हैं, तो इसमें से किस रूप को पाठ के लिए मान्य किया जाय ? यहाँ अर्थ ही सहायक हो सकता है। 1. लाल, किशोरी -प्राचीन हिन्दी काव्य : पाठ एवं अर्थ विवेचन, सम्मेलन पत्रिका (चैत्र-भाद्रपद, अंक 1892), पृ. 177 । For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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