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2 पाण्डुलिपि-विज्ञान
ही प्रयुक्त होते हैं। हस्तलेख से हस्तरेखानों का भ्रम हो सकता है। इस दृष्टि से 'मैन्युस्क्रिप्ट' के लिए पाण्डुलिपि शब्द कुछ अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है इसलिए हमने इसी शब्द को मान्यता दी है।
अंग्रेजी के विश्वकोषों में 'मैन्युस्क्रिप्ट' का क्षेत्र काफी विशद माना गया है ।। फलतः आज 'मैन्युस्क्रिप्ट' या 'पांडुलिपि' का यही विस्तृत अर्थ लिया जाता है । यही अर्थ इस ग्रन्थ में भी ग्रहण किया गया है । पांडुलिपि विज्ञान क्या है ?
___ मनुष्य अपनी आदिम अवस्था के वन्य-स्वरूप को पार करके इतिहास और संस्कृति का निर्माण करता हुआ, लाखों वर्षों की जीवन-यात्रा सम्पन्न कर चुका है। वह अपनी इस यात्रा में चरण-चिह्न छोड़ता आया है। इन चिह्नों में से कुछ आदिम अवस्था में गुफापों में निवास के स्मारक गुहा-चित्र हैं जो 30,00,00 वर्ष ई. पू. से मिलते हैं । इन चिह्नों में इनके अतिरिक्त भवनों के खंडहर हैं, विशाल समाधियाँ हैं, देवस्थान हैं; अन्य उपकरण जैसे बर्तन, मृद्भांड, मुद्राएं, एवं मृण्मूर्तियाँ हैं, ईंटें हैं, तथा अस्त्र-शस्त्र हैं। इनके साथ ही साथ शिलालेख हैं, ताम्रपट्ट हैं, भित्तिचित्र हैं। इन सबके द्वारा और सब में
1. न्यू यूनिवर्सल ऐनसाइक्लोपीडिया भाग 10 में बताया गया है कि मैन्युस्क्रिप्ट मैटिन के [Manu
Scriptus] मनु-+-स्क्रिप्ट्स से उत्पन्न है। इसका अर्थ होता है हाथ की लिखावट । विशद अर्थ में कोई भी ऐसा लेख जो छपा हुआ नहीं है इसके अन्तर्गत आयेगा। सकुचित अर्थ में छपाई का प्रयत्न होने से पूर्व जो सामग्री पेपीरस, पार्चमेण्ट अथवा कागज पर लिखी गई वही 'मैन्यु स्क्रिप्ट' कही गई । एनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना के अनुसार छापेखाने की छपाई आरम्भ होने से पूर्व का समस्त साहित्य 'मैन्युस्क्रिप्ट' के रूप में ही था। इसके अनुसार वह समस्त सामग्री 'मैन्युस्क्रिप्ट' कही जायेगी जो किसी भी रूप में लिखी गई हो, चाहे वह कागज पर लिखी हो अथवा किसी अन्य वस्तु पर, जैसे धातु, पत्थर, लकड़ी, मिट्टी, कपड़े, वृक्ष की छाल, वृक्ष के पत्त, अथवा चमड़े पर ।
in Archae logy a manuscript is any early writing on stone, metal, wood, clay, linen, bark and leaves of tress and prepared skins of animals, such as goats, sheep and calves. -The American People's Encyclopaedia. (p. 175).
विद्वानों का यह अभिमत है कि खोज में जो सामग्री अब तक मिली है उसके आधार पर यह माना जा सकता है कि पहले लेखन-कार्य आदिम मानवों की चित्रकला की भाँति गफाओं की भित्तियों पर या शिलाश्रयों की भित्तियों पर हुआ होगा। तब पत्थरों या ढोकों का उपयोग किया गया होगा। तदनन्तर मिटी (Clay) की ईटों पर। इंटों के बाद पेपीरस का आविष्कार हआ होगा । पेपीरस के खरड़ों [Rolls] पर ग्रन्थ रहता था। इसी के साथ-साथ लिखने, मिटाने और फिर लिखने की सुविधा की दृष्टि से लकड़ी की पाटी या पट्टी काम में ली जाने लगी। पश्चिम में मोम की पाटी का उपयोग मिलता है। आगे के विकास में यह मोम पाटी आवरण पटल का रूप लेने लगी। 'पेपीरस' के रोल्स या खरीते बलचिताएं या कुण्डलियां बहुत लम्बे होते थे। ये असुविधाजनक लगे तो इन्हें दुहरा तिहरा कर पृष्ठ या पन्ने का रूप दिया गया और मोमपाटी के आवरण पटल इन पृष्ठों के रक्षक बन गये । ये ऊपर और नीचे के दोनों पटल एक ओर तार से गूथे जाते थे। बाद में लिप्यासन के लिए पेपीरस के स्थान पर पार्चमेण्ट [चर्मपत्न] काम में आने लगा तो पार्चमेण्ट या चर्म-पत्र ग्रन्थ के पृष्ठों की भांति और मोमपाटी या लकड़ी की पट्टियां आवरण पटल की भांति उपयोग में आने लगे । इनको कोडैक्स [Codex] कहा जाता है। आधुनिक जिल्द-बन्द ग्रन्थों के पूर्वज ये 'कौडक्स' ही हैं । ऐसा माना जाता है कि पार्चमेण्ट [चर्मपत्र का उपयोग निप्यासन के लिए प्रथम ई० शती से होने लगा था। इनका कोडेक्सी रूप में प्रचार ईसा की चौथी शताब्दी से विशेष रूप से हआ। ये सभी पांडलिपि के भेद हैं, जिन्हें विकास-क्रम से यहां बताया गया है ।
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