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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अध्याय 1 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाण्डुलिपि - विज्ञान और उसकी सीमाएँ नाम की समस्या ताम्रपत्र तथा अन्य धातु इस विज्ञान का सम्बन्ध मनुष्य द्वारा लिपिबद्ध की गई सामग्री से है। मनुष्य ने कितनी ही सहस्राब्दियों पूर्व लेखन कला का आविष्कार किया था। तब से अब तक लिपिबद्ध सामग्री अनेक रूपों में मिलती है । श्रतः यहाँ लेखन से भी कई ग्रर्थ ग्रहण किये जा सकते हैं। आधुनिक युग में जिस तरह से हाथ से, लेखनी के द्वारा कागज पर लिखा जाता है। उसी प्रकार मनुष्य की सभ्यता के प्रारम्भ और विकास की अवस्थाओं में यह लेखनक्रिया ईंट पर पत्थरों पर, शिलालेखों के रूप में या टंकरण द्वारा की जाती रही । मोम-पाटी पर या चमड़े पर भी लिखा गया । ताड़पत्र पर नुकीली लेखनी से गोदन द्वारा यह कार्य किया गया और कपड़ों पर छापों द्वारा, भोजपत्र पर लेखनी के द्वारा, पत्रों पर टंकरण द्वारा या ढालकर या छापों द्वारा अपने विचारों को अंकित किया गया है । तः इस विज्ञान को इन सभी प्रकार के लेखों का अपनी सामग्री के रूप में उपयोग करना होगा । इन सभी को हम लेख तो आसानी से कह सकते हैं क्योंकि विविध रूपों में लिपिबद्ध होने पर भी लिखने का भाव इनके साथ बना हुआ है। मुहावरों में भी टंकरण द्वारा लेखन, गोदन द्वारा लेखन, आदि प्रयोग प्राते हैं । इतिहासकारों ने भी अपने अनुसंधानों में इनको अभिलेख, शिलालेख, ताम्रपत्र लेख आदि का नाम दिया है। इन्हें जो लेख भी मिले हैं। उन्हें, वासुदेव उपाध्याय ने धार्मिक लेख, 'प्रशंसामय-अभिलेख, स्मारक - लेख, प्राज्ञापत्र एवं दान-पत्र' के रूपों में प्रस्तुत किया गया बताया है । मुद्राओं पर भी अभिलेख अंकित माने जाते हैं । इन अभिलेखों से आगे पुस्तक लेखन प्राता है तो इसका एक अलग वर्ग बन जाता है । वस्तुतः यही वर्ग संकुचित अर्थ में इस पाण्डुलिपि - विज्ञान का यथार्थ क्षेत्र है । अंग्रेजी में इन्हें 'मैन्युस्त्रिप्ट्स' कहते हैं । 'मैन्युस्क्रिप्ट' शब्द को हस्तलेख नाम भी दिया जाता है। और पाण्डुलिपि भी । रूढ़ अर्थ में पाण्डुलिपि का उपयोग हाथ की लिखी पुस्तक के उस रूप को दिया जाने लगा है जो प्रेस में मुद्रित होने के लिए देने की दृष्टि से अन्तिम रूप से तैयार हो । फिर भी, इसका निश्चित अर्थ वही है जो हस्तलेख का हो सकता है । हस्तलेख का अर्थ पाण्डुलिपि से अधिक विस्तृत माना जा सकता है क्योंकि उसमें शिलालेख तथा ताम्रपत्र प्रादि का भी समावेश माना जाता है किन्तु पाण्डुलिपि का संबंध ग्रन्थ से ही होता है । आज मैन्युस्क्रिप्ट के पर्याय के रूप 'हस्तलेख' और 'पाण्डुलिपि' दोनों आजकल हस्तलिखित ग्रन्थों को हस्तलेख को कहा जाता था पं० उदयशंकर शास्त्री ने पांडुलिपि के सम्बन्ध में यह लिखा है कि पांडुलिपियों कहा जाने लगा है। किन्तु प्राचीन काल में पांडुलिपि उस . जिसके प्रारूप (मसविदा) को पहले लकड़ी के पट्टे या जमीन पर खड़िया (पांड) (चाक) से लिखा : जाता था फिर उसे शुद्ध करके अन्यत्र उतार लिया जाता था और उसी को पक्का कर दिया जाता था । हिन्दी में यह अर्थ विपर्यय अग्रेजी के कारण हुआ है । अंग्र ेजी में किसी भी प्रकार के हस्तलेख को 'मैग्युस्क्रिप्ट' कहते हैं । - [भारतीय साहित्य, जनवरी, १६५६, पृ० १२० ] For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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