________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पाण्डुलिपियों के प्रकार 173
उपसंहार
पाण्डुलिपि के कितने ही प्रकारों की विस्तृत चर्चा ऊपर की गयी है। इनमें नत्थियों एवं चिट्ठी-पत्रियों का विस्तृत विवेचन नहीं किया गया। इनका विवेचन आधुनिक पाण्डुलिपि पुस्तकालयों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। किन्तु यह विषय इतना विशद् भी है कि प्रस्तुत पुस्तक के दूसरे खण्ड को जन्म दे सकता है।
___यहाँ तक जितना विषय चर्चित हुआ है, उतना स्वयमेव एक पूरे विज्ञान का एक पूरा पक्ष प्रस्तुत कर देता है । अतः इतनी चर्चा ही इस अध्याय के लिए पर्याप्त प्रतीत होती है।
100
For Private and Personal Use Only