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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 112 पाण्डुलिपि - विज्ञान दोहा www.kobatirth.org कवि वंश वर्णन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उतन वासवन पुर विशद अंतरवेद मकार । भयो चंद्र मरिण विप्र कुल कान्य कुब्ज अवतार | 14 | तिहि तनूजा गिरधर भले गिरधर को हिथवाश | शे जायन रुजगार लहि दिल्ली पति के पाश | 15 | भये शिरोमरिण तास सुत पंडित परम सुजान । लहि निदेश याने इते दिल्ली पति तैं मान | 10 | तिहि तनूज माधव भये चरनऊ माधव चाह । जिस हमेश वर्णन किये सुजश बड़े जयसाह | 17: भये प्रकट तिनके तनय जाहिर लछीराम । जिन्हें रीझि जयसाह नृप दिये दिष्ष दश ग्राम | 18 | रामचन्द्र तिनके भये पैरि सर्वगुन पंथ । महाराजा जयसाह हित अलंकार किय ग्रंथ | 19 | प्रगट पुत्र तिनके भये सोमानन्द सुजान । माधवशे नरनाह तें लह्यो सरम सनमान 120 1 तिनके सुवन सपूत भे लालचंद इक प्राय । महाराज परताप को रहै सदा गुन गाय | 21 | सुकविचंद तिनको तनय भी गुन उत्तम गात्र । करम राम नरेन्द्र के भयो कृपा को पात्र । 22 । देश विदेशन में भयो कवि पंडित विख्यात । कुरम राम नरेन्द्र हित किये ग्रंथ जिन्हें सात | 23 | हुकम पाय जिहि राम को द्रोण पर्व अनुसार । सु संग्राम सागर रच्यो शूरन को श्रृंगार 124 1 श्रवण सुनत ही क्षेत्र कुल कायरता गटि जाय । अंग अंग अति जंग की मन उमंग अधिकाय | 25 | रुद्र गगन योगीश शशि भाद्र शुक्ल रविवार । हैजि द्रोण संग्राम निधि लियो ग्रंथ अवतार। 1911 27 इति श्री मन्महाराजाधिराज राजराजेन्द्र श्री सवाई राम सिंघ देवाज्ञया सुकवि चंद विरचित संग्राम सागरे पाथुपता- - शुभमस्तु । पत्र संख्या 378, जिल्द बंधी । इसके आधार पर राजवंश वर्णन और सुकवि चंद के वंश का पारस्परिक सम्बन्ध कुछ इस प्रकार प्रतीत होता है जैसे कि प्रस्तुत तालिका में दिया हुआ है । For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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