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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दोहा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांडुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न क्षेत्रीय अनुसंधान / 111 स्पष्ट है कि नीतिसार का सम्बन्ध विशेषतः राजनीति से है । एक अन्य कवि 'चन्द नाथ' हैं जिन पर संक्षिप्त टिप्पणी दी है । इनका ग्रन्थ 'चन्द्रनाथ की शब्दी' हमें प्राप्त हुआ है । यह भी नयी उपलब्धि विदित होती है। ये नाथ सम्प्रदाय के कवि हैं और इस शब्दी में योग की चर्चा है । एक अन्य चन्द कवि की एक कृति 'संग्राम' हमें अन्यत्र देखने को मिली । यह भी जयपुर नरेशों के कवि हैं और इसने 'संग्राम सागर' नामक ग्रन्थ में महाभारत के द्रोणपर्व के अनुवाद के रूप में युद्ध-शास्त्र का वर्णन किया है। इस कवि ने प्रारम्भ में शिव की वंदना की है फिर कृष्ण की वंदना की है किन्तु इसने विस्तारपूर्वक नृपवंश वर्णन तथा कवि वंश वर्णन दिये हैं जिससे जयपुर राजघराने के राजाओं तथा उनके आश्रित कवियों पर कुछ प्रकाश पड़ता है । हम इनके ये अंश यहाँ ज्यों के त्यों उद्धृत कर रहे हैं। प्रथ नृप वंश वर्णनम छपये देश ढ़ढ़ाहर मध्य सर्व सुख सम्पति साजत । अमरावति सम अवनि मांझ मेरि विराजत । तास भूप पृथिराज सदा हरि भक्ति परायन । भारमल्ल तिन तनय खग्ग खंडन अरि धायन । भगवत दास नृप तास सुव दखल जैम दक्षिण करिये । सुत मान जिति शत शष्टि रण जश जहाँ न धन विथयरिय | नाम कंवर जगतेश खान ईशव जिन खंडिय । महा सिंध तिन तनय कीर्ति महि मंडल मंडिय | ? (जा) उताम जयसिंध जीति सेवा गहि श्रनिय । तास पुत्र नृप राम अमल आसाम जुठानिय । ? य कृष्ण सिंध तिन के तनय विष्णु सिंध तिन सुत लियउ । जयसिंह सवाई जास जिन अश्वमेध अध्वर क्रियउ 181 माधवेश नरनाह तर्ने तिनके परगट्टिय । जिन जवाहिर हि जेर ठानि जट्टन दह बट्टिय । तिन तनूज परताप ताप दुज्जन दल मंडिय | करि पटेल मदमंग जंग दक्षिण दल खंडिय । राजाधिराज जगतेश मय जिन जहान जय विश्वरिय । करि समर (? क) ज्ज कमधज्ज कारण भजाय कमधज्ज किय । तिन तनूज जयसाह तरनि समतेज उझलल्ले । जन्म लेत जिन तिमिर तत भय नष्ट मुसल्ले कूरम राम नरेन्द्र तनै तिनके परगट्टिय । पुहुमि मांझ पुरहत जेमि प्रभुता जिन पहिये । सवीर मांझ बट्ट सुरुचि द्रोण जुद्ध चित अनुसरिय | भाषा प्रबन्ध कवि चन्द को करन हेतु प्रायस करिय ||10| लशत भरि कुरम सदन कवि कोविद वर द देव मनुज भाषा निपुण निरख्यो तहं कवि चन्द |11| For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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