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________________ www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 92/पांडुलिपि-विज्ञान 6. जहाँ ग्रन्थ में कुछ पत्र त्रुटित हैं अथवा किसी कारण से कुछ पृष्ठ पढ़े जाने योग्य नहीं रहे हैं तो इसका उल्लेख भी यथास्थान कर दिया गया है। 7. जहाँ एक ग्रन्थ की कृतियाँ दूसरे ग्रन्थ की कृतियों के समरूप हैं, या उनकी प्रतिलिपि हैं या पाठान्तर के कारण तुलनात्मक दृष्टि से महत्त्व रखती हैं, ऐसी स्थिति में उनका स्पष्ट उल्लेख बराबर किया गया है। 8. जहाँ गीत, दोहे, छप्पय, नीसाणी आदि स्फुट छन्द आए हैं वहाँ उनका विषयानुसार वर्गीकरण करके उनके सम्बन्ध में यथोचित् जानकारी प्रस्तुत की गई है। कृति के साथ कर्ता का नाम भी यथासम्भव दे दिया गया है। कर्ता का नाम देते समय प्रायः उसकी जाति व खाँप आदि का भी उल्लेख कर दिया है। 9. डॉ० टैसीटरी प्रमुखतया भाषा-विज्ञान के जिज्ञासु विद्वान थे, अतः उन्होंने प्राचीन कृतियों का विवरण देते समय उनमें प्राप्त क्रियारूपों आदि पर भी अवसर निकाल कर टिप्पणी की है। लेखा-जोखा : पांडुलिपि की खोज में प्रवृत्त संस्था या व्यक्ति उक्त प्रकार से ग्रन्थों के विवरण प्राप्त कर सकते हैं । साथ ही उन्हें अपनी इस खोज पर किसी एक कालावधि में बांधकर विचार करना और लेखा-जोखा भी लेना होगा। यह कालावधि तीन माह, छः माह, नौ माह, एक वर्ष या तीन वर्ष की हो सकती है। यह लेखा-जोखा उक्त शोध से प्राप्त सामग्री के विवरणों के लिए भूमिका का काम दे सकता है । इसमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जा सकता है : लेखे-जोखे की कालावधि सन्......"से सन्......"तक 1. खोज कार्य में आने वाली कठिनाइयां, उन्हें किन उपायों से दूर किया गया । 2. खोज कार्य का भौगोलिक क्षेत्र । सचित्र हो तो उपयोगिता बढ़ जाती है। 3. भौगोलिक क्षेत्र के विविध स्थानों से प्राप्त सामग्री का संख्यात्मक निर्देश । किस ___ स्थान से कितने ग्रन्थ मिले ? सबसे अधिक किस क्षेत्र से ? 4. कुल ग्रन्थ संख्या जिनका विवरण इस कालावधि में लिया गया । 5. इस विवरण को (विशेष कालावधि में) प्रस्तुत करने के सम्बन्ध में नीति, यथा : (क) सबसे पहले मेवाड़ और मेवाड़ में भी सबसे पहले यहाँ के तीन प्रसिद्ध राजकीय पुस्तकालयों-सरस्वती भण्डार, सज्जनवाणी विलास और विक्टोरिया हॉल लाइब्रेरी से ही इस काम (शोध) को शुरू करना तय किया । __ "प्रारम्भ में मेरा इरादा जितने भी हस्तलिखित ग्रन्थ हाथ में आयें उन सबके नोटिस लेने का था । लेकिन बाद में जब एक ही ग्रन्थ की कई पांडुलिपियाँ मिली तब इस विचार को बदलना पड़ा"..."अतएव मैंने एक ही ग्रन्थ की उपलब्ध सभी हस्तलिखित प्रतियों का एकसाथ तुलनात्मक अध्ययन किया और जिन-जिन ग्रन्थों 1. राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज (प्रथम भाग), प्राक्कथन पृ. क । For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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