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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 74/पाण्डुलिपि-विज्ञान नाम चन्द्र द्वीपायतारो द्वीपानायो नाम समस्त व्यस्तव्याधि निर्णयो नाम त्रिः कालमुत् कान्ति सम्बन्धः तद्ग्रंह्य पूजा विधि पवित्रारोहरणम् समस्त स्थानावस्कंघश्चर्या निर्देशो (?) नाम 1201 1211 1221 1231 1241 1251 इसमें सबसे पहले (क) ग्रन्थ की पुस्तकालय-गत संख्या विदित होती है। यह ग्रन्थसन्दर्भ है । (ख) पुस्तक का नाम उसकी उप-व्याख्या के साथ है। उप-व्याख्या कोष्ठकों में दी गई है। (ग) में पुस्तक का आकार बताने के लिए पृष्ठ की लम्बाई 10 इंच, चौड़ाई 11 इंच बताई गई है । इसे संक्षेप में यों 10" x 1" बताया गया है। (घ) में फोलियो या पृष्ठ संख्या बताई गई है । यह 152 है। (ङ) में प्रत्येक पृष्ठ में पंक्ति संख्या बतायी गयी है। 6 पंक्ति प्रति पृष्ठ । (च) में ग्रन्थ परिमाण-कुल श्लोक संख्या 2964 बतायी गयी है। (छ) में लिपि प्रकार है-लिपि प्रकार 'नेवारी लिपि' बताया गया है। (ज) में तिथि का उल्लेख है-यह है नेवारी संवत् 299 । (झ) में 'रूप' का विवरण है-रूप में यह प्रति प्राचीन लगती है । पद्यबद्ध है, यह बात (अ) में बतायी गयी है। इतनी सूचनाएं देकर ग्रन्थ में से पहले प्रारम्भ के कुछ पद्य उदाहरणार्थ दिये गये हैं । तब 'अन्त' के भी कुछ अंश उदाहरणस्वरूप दिये गये हैं । यहीं पुष्पिका (Colophon) उद्धृत की गई है । यहाँ तक ग्रन्थ के रूप-विन्यास का आवश्यक विवरण दिया गया है। तब विषय का कुछ विशेष परिचय देने के लिए क्रमात ‘विषय सूची' दे दी गई है । प्रत्येक विषय के आगे दी गई संख्या परिच्छेदसूचक है। उदाहरण : डॉ. टेसोटरी के सर्वेक्षण से __अब एका उद्धरण डॉ० टेसीटरी के राजस्थानी ग्रन्थ सर्वेक्षण से दिया जाता है। एशियाटिक सोसाइटी ऑव बंगाल ने इन्हें 1914 में सुपरिटेंडेन्ट 'वारडिक एण्ड हिस्टोरिकल सर्वे ऑव राजपूताना' बनाया। उनके ये ग्रन्थ-सर्वेक्षण 1917-18 के बीच में सोसाइटी द्वारा प्रकाशित किये गये। इन्हीं में से 'गद्यभाग' के अन्तर्गत 'ग्रन्थांक 6' का विवरण 'परम्परा' में डॉ. नारायणसिंह भाटी द्वारा किये गये अनुवाद के रूप में नीचे दिया जा ग्रन्थांक-6-नागौर के मामले री बात नै कविता गुटके के रूप में एक छोटा-सा ग्रंथ, पत्र 132, आकार 50x51" पृ. 21 ब 26 ब, 45ब-96ब, तथा 121 ब-132 ब खाली हैं। लिखे हुए पन्नों में 13 से 27 अक्षरों वाली 7 से 16 तक पंक्तियाँ हैं। पृ० 100-125 पर साधारण (नौसिखिए के बनाये हुए) चित्र पानी के रंगों में 'रसूल रा दूहा' को चित्रित करने के लिए बनाए गए हैं (देखें नीचे घ)। ग्रन्थ कोई 250 वर्ष पुराना लिपिबद्ध है । पृ० 7 ब पर लिपिकाल सं० 1696 जेठ सुद 13 शनिवार और लेखक का नाम रघुनाथ दिया गया है । लिपि मारवाड़ी 1. 'परम्परा' (भाग 28-29), पृ. 25-2611 For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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