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- [२४]भगवान की पूजन पूर्व तथा उत्तरकी ओर मुख करक ही करनी चाहिये । स्वयं उत्तरमुखी हो तो भगवानको पूर्वमुग्व कर लेना चाहिये ।
उदङ्मुखः स्वयं तिष्ठत, प्राङ्मुखं स्थापयेज्जिनम् ।
पूजाक्षणे भवेन्नित्यं यमी वाचं यमक्रियः॥ यशस्तिलक पूजा खडे खडे नहीं, किन्तु बैठकर ही करना चाहिये-----
उपविसइ पडिम आसण ( भावसंग्रह) इन सब प्रमाणोंसे यह सिद्ध है कि जितना दान पूजा स्वाध्याय अभिषेक आदिमें पुरुषको अधिकार है, उतना ही स्त्रीको भी है। स्त्रियोंको भगवान्के स्पर्श और अभिषेकसे रोकना हठग्राहिता, कुरूढि और पाप है।
भगवान्की पूजा तथा अभिषेकादि शुद्ध सज्जाति त्रिवर्ण व्यक्तिको बाह्यशुद्धि ( स्नानादि ) से विशेष शुद्ध हो यज्ञोपवीत, तिटकादि भूषित हो, पंचामृताभिषकपूर्वक बैठकर एवं पूर्व अथवा उत्तरकी तरफ मुख करके करना चाहिये । अभिषेक व पूजा करते समय मौन रखना चाहिये । चंदन और पुष्पसे जो पूजा की जावे वह भगवान्के चरणोंपर करना चाहिये । इस प्रकार चंदन और पुष्पोंके संसर्गसे वीतरागतामें कोई बाधा नहीं आती। यह पूजाके लिए विशेष विधान आगमोक्त है। निर्वाणकांड गाथामें तो स्पष्ट आदेश है कि देवा कुणंति बुट्टी केसर-कुसुमाण तस्स उवरिम्भि ! अर्थात् भगवान्पर देवगण केसर और पुप्पोंकी वृष्टि करते हैं।
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