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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - [२३]चन्दन तथा पुष्पोंसे पूजा किस प्रकार की जाये: चन्दनसे पूजन श्री जिनेन्द्रके चरणोंको चर्चनेसे होती है, न कि सन्मुख चढानेसे । पुष्प भी श्री जिनेन्द्रके चरणोंपर ही चढाना चाहिये । बडे २ आचार्योंका यही मत है। श्री वीरसेन स्वामी कषासायपाहुड जयधवा पत्र १०० पहवणीवलेवण समजण छुट्टावण, फुल्लारोवण धृवदहणादि वावारेहि जीववठ्ठाविणाभावीहि विणा पूजकरणाणुवबत्तीदो च। भावार्थ --- अभिषेक करना, अवलेप करना, संमार्जन करना, चंदन लगाना, फूल चढाना और धूप जलाना आदि जीववधके अविनाभावी व्यापारोंके विना नहीं बन सकता है । ___ इसमें अबलेवण व फुल्लारोवण शब्द आया है । यह स्पष्ट प्रकट कहता है कि चंदन और पुष्प भगवानके चरणपर चढाना चाहिये । चंदण मुअंधलओ जिणवरचरणेसु कुणई जो भविओ। लहई तणु विकिरियं सहाव-ससुअंधयं विमलं । -देवसेन भावसंग्रह. पुष्पके लिये भी भावसंग्रहमें ऐसा ही लिखा हुआ है:जिणचरणेषु पुष्पं धरई ! यह पाठ है। इन प्रमाणोंसे स्पष्ट प्रकट हो रहा है कि गंध व पुष्पकी पूजा चर्चनेसे व चरणपर चढानेसे ही होती है । For Private and Personal Use Only
SR No.020534
Book TitlePanchamrutabhishek Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya
PublisherZaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya
Publication Year1958
Total Pages42
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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