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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -[३५]क्या स्त्रियां जिनाभिषेक व पात्रदान नहीं कर सकती? ( लेखकः--श्री विद्यावाचस्पति पं. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री) जैन आगमोंमें गृहस्थोंके लिए नित्य कर्म बतलाये गये हैं। देवपूजा, गुरूपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप, और दान ये गृहस्थों के षट्कर्म हैं । इसी प्रकार मुनियोंके भी सामायिकादि षट्कर्म बतलाये गये हैं। भगवान कुंद कुंदने श्रावकोंक षट्क मोमें दाणं पूजा मुख्खो सावय धम्मो, ऐसा बतलाते हुए श्रावक धर्ममें दानपूजाकी मुख्यता बतलाई, इसी प्रकार यतिधर्ममें ध्यान व अध्ययनको प्रधान बताया। सो श्रावकोंको दान व पूजा मुख्यतया अवश्य आचरणीय है । गृहस्थ शरसे स्त्री और पुरुष दोनों लिए गये हैं। जैन आचार ग्रंथों में स्त्रियोंका आचार, पुरुषोंका आचार इस प्रकारका भेद कहीं भी प्रतिपादित नहीं है । परंतु भेद आजकलके पंडित अपनी मनो कल्पित सरणिके अनुसार करते है,यह उचित नहीं है। हां,स्त्रियों के लिए अधिक से अधिक कितने गुणस्थान हो सकते हैं । पुरुषोंके लिए कितने गुणाथान हो सकते है, यह मर्यादा आगमों में बतलाई गई है । सो वहांतकके आचरणमें कोई भेद नहीं है। ऐसी स्थितिमें स्त्रियां दानप्जा भी पुरुषोंके समान नहीं कर सकती है, यह हास्यापद तर्क है। पूजा शबसे अभिषेक,अष्टव्यार्चन आदि लिए जाते हैं । इसलिए गृहस्थोंको जैसी पूजा करनेका अधिकार है, उसी प्रकार स्त्रियोंको भी पूजा करने का अधिकार है। इस धार्मिक नित्यक्रियासे उन्हें वंचित For Private and Personal Use Only
SR No.020534
Book TitlePanchamrutabhishek Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya
PublisherZaveri Chandmal Jodhkaran Gadiya
Publication Year1958
Total Pages42
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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