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आजानिय
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आजानीयवत
369; - यो प्र. वि., ए. व. - आजानियेको पन कि देसेस्सामि तयो च भद्दे पुरिसाजानीये, अ. नि. 3(1).207; - करिस्सति.... जा. अट्ठ. 7.166; - या ब. व. - आजानीयाव या प्र. वि., ब. व. - "इमे खो, भिक्खवे, तयो भद्दा जातिया, सिन्धवा सीघवाहना, जा. अट्ठ. 7.362; परमा वा पुरिसाजानीया ति, अ. नि. 3(1).210; - भद्दा पु., कर्म. अग्गा सेट्ठा आजानीया सब्बालङ्कारेहि अलङ्कता हया अस्सा, स०, भद्र प्रकृति का, अच्छी नस्ल का, स्वामी के हित एवं वि. व. अट्ठ, 62; - यं द्वि. वि., ए. व. - आजानीयमदासहन्ति अहित को समझने वाला अश्व - ओरसं पुत्तं आजानीयं उत्तमजातिसिन्धवं अहं अदासिं पुजेसिन्ति अत्थो. भद्दाजानीयसदिसकिच्चताय आजानीयन्ति, थेरगा. अट्ठ. अप. अट्ट. 2.75; - ये द्वि. वि., ब. व. - आजानीयेव 1.123; महा.- पु., कर्म, स., महान ज्ञानी एवं संयमी - जातिया सिन्धवे सीघवाहने, जा. अट्ठ. 7.257; ख. अच्छी महाजानियो खो आळारो कालामो, ..., म. नि. 1.229; नस्ल वाला बैल, गज, एवं चौपाया – “अत्थि नु खो एतेसं सिन्धवा.- पु., कर्म. स., सिन्धु देश का उत्तम अश्व - गुन्नं अन्तरे इमानि सकटानि उत्तोरेतुं समत्थो ... पदं कोट्टेन्तो सिन्धवाजानीयो विय गच्छति, स. नि. अट्ठ. उसभाजानीयो ति..., जा. अट्ठ. 1.193; आजानीयोति हत्थी (मू.प.) 1(2).151. वा होतु अस्सादीसु अञ्जतरो वा, यो कारणं जानाति, अयं आजानीयझायित नपुं., तत्पु. स., हित एवं अहित को ठीक आजानीयोव चतुप्पदानं सेट्ठोति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 1.31; से जानने वाले सिन्धी घोड़े जैसा ध्यान – आजानीयझायितं ग. उत्तम गुणों एवं ज्ञान से परिपूर्ण होने के कारण उत्तम खो, सद्ध, झाय, मा खळुङ्कझायितं, अ. नि. 3(2).291; अश्व के समान बुद्ध एवं क्षीणास्रव शिष्य - आजानीयो वत, कथञ्च सद्ध आजानीयझायितं होतीति कथं कारणाकारणं भो, समणो गोतमो, स. नि. 1(1).32; ब्यत्तपरिचयटेन जानन्तस्स सिन्धवस्स झायितं होति, अ. नि. अट्ठ. 3.342. कारणाकारणजाननेन वा आजानीयो, स. नि. अट्ठ. 1.72; आजानीयवान नपुं., तत्पु. स. [आजानीयस्थान], कारण भगवापि युगे युत्तो सुदन्तआजानीयो विय एत्तक पस्सन्तो एवं अकारण (हित अथवा अहित) को ठीक से जानने वाले गच्छति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.275; घ. सामणेरों को का स्थान या अवस्था, हित अहित को भलीभांति जानने प्रशिक्षित करने के कारण अनुरुद्ध थेर के लिए प्रशिक्षक वाला अश्व अथवा ऊंचे ज्ञान एवं संयम वाला व्यक्ति - के तात्पर्य में प्रयुक्त - आजानीयेन आजओ, थेरगा. 433; ने सप्त. वि., ए. व. - अनाजानीयेव समाने आजानीयठाने आजानीयेनाति पुरिसाजानीयेन ... कतकिच्चेन अनुरुद्धेन ठपिम्ह, म. नि. 2.33; अहो वत मं मनुस्सा आजानीयट्ठाने ... सुख वा आजओ कारितो दमितो, थेरगा. अट्ठ. 2.95; ठपेय्यु, अ. नि. 3(2).141-42. ङ. कारण एवं अकारण का अच्छी तरह से ज्ञान रखने आजानीयपरिमज्जन नपुं.. तत्पु. स. [आजानीयपरिमार्जन]. वाला आचार्य - आचरियो नो, आवुसो, उजु आजानीयो, हित एवं अहित को जानने वाले सिंधी घोड़े की मालिशविसुद्धि. 1.95; कारणाकारणस्स आजाननतो आजानीयो, नं द्वि. वि., ए. व. - आजानीयपरिमज्जनञ्च विसुद्धि. महाटी. 1.111; स. उ. प. के रूप में - अस्सा .- परिमज्जेय्युन्ति , अ. नि. 3(2).142, 144. पु., सधा हुआ उत्तम नस्ल का घोड़ा, सिन्धी घोड़ा - यो आजानीयभोजन नपुं., तत्पु. स. [आजानीयभोजन], ऊंची प्र. वि., ए. व. - अस्साजानीयो उसमाजानीयो पुरिसाजानीयो नस्ल वाले सिंधी घोड़े को दिया जाने वाला भोजन - नं खीणासवोति, स. नि. अट्ट. 2.253; उसमा.- पु., कर्म. द्वि. वि., ए. व. - आजानीयेव समाने आजानीयभोजन स., ऊंची नस्ल का प्रशिक्षित सांढ़ - उपरिवत्, भोजिम्ह, म. नि. 2.33; आजानीयभोजनञ्च भोजेय्यु, अ. गन्धहत्था.- पु., कर्म. स., ऊंची नस्ल का बलवान हाथी नि. 3(2).142. - सेय्यथापि नाम गन्धहत्थाजानियो दीघरत्तं सुपरिदन्तो, आजानीयलण्ड नपुं., तत्पु. स., ऊंची नस्ल वाले सिंधी दी. नि. 2.130; निसभा.- पु., कर्म. स. [ऋषभाजानीय], घोड़े की लीद - स्स ष. वि., ए. व. - आजानीयलण्डस्स शा. अ., उत्तम नस्ल का सांढ़, ला. अ., मनुष्यों के गन्धं घायित्वा एकोपि हत्थी नदिं ओतरितुं न उस्सहि, जा. बीच में सर्वोत्तम (बुद्ध)- पूजितं देवसङ्घन निसभाजानिय अट्ठ. 2.16. यथा, अप. 1.198; पुरिसा.- पु., कर्म. स., उत्तम प्रकृति आजानीयवत नपुं.. तत्पु. स. [आजानीयव्रत], कारण एवं वाला पुरुष, आस्रवों को क्षीण कर चुका तथा प्रज्ञाविमुक्ति अकारण के पूर्ण ज्ञाता होने की अवस्था, ऊंचे नस्ल वाले को प्राप्त अर्हत् – ये द्वि. वि., ब. व. - ... भद्दे अस्साजानीये घोड़े के स्वभाव से युक्त होना, उच्चता, उत्तम प्रकृति -
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