________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
आचारसीलसम्पन्न
46
—
आचारसीलसम्पन्न त्रि. तत्पु० स० [ आचारशीलसम्पन्न ]. शा. अ. आचारशील से सम्पन्न, विशेष अर्थ इक्कीस प्रकार के वर्जित जीविका साधनों से जीविकोपार्जन न करने वाला तथा चार मार्गफलों में प्राप्त शीलों से परिपूर्ण (व्यक्ति) - न्नो पु०, प्र. वि., ए. व. पु. प्र. वि. ए. ब. आचारसीलसम्पन्नो निसे अग्गीव भासति जा. अड़, 4.387 न्ना स्त्री. प्र. वि. ए. व. - तस्सेका धीता अभिरूपा पासादिका आधारसीलसम्पन्ना हिरोतप्पसमन्नागता केवलं निच्चप्पहसितमुखा, जा. अड. 1.393 ने पु.. सप्त, वि., ए. व. - आचारसीलसम्पन्ने, सीतिभूते अनासवे, जा. अ. 3.364; आचारसीलसम्पन्नेति एकवीसतिया अनेसनाहि जीविककप्पनं अनाचारो नाम, तस्स पटिपक्ोन आचारेन चेव भग्गफलेहि आगतेन सीलेन च समन्नागते, जा. अट्ट.
-
3.365.
आचारहीन त्रि, तत्पु० स० [आचारहीन ], सदाचार या उत्तम आचरण का अनुसरण न करने वाला, दुराचारी, दस प्रकार के हीन व्यक्तियों में एक नो पु., प्र. वि., ए. व. आचारहीनो महाराज, पुग्गलो....फे.... कम्महीनो महाराज, पुग्गलो... पे.... पयोगहीनो महाराज पुग्गलो लोकस्मिं ओज्ञातो अवज्ञातो हीळितो खीळितो गरहितो परिभूतो अचित्तीकतो. मि. प. 267.
"
आचिक्खक त्रि. आ + चिक्ख चक्ख से व्यु कहने वाला घोषित करने वाला, निर्देश या सङ्केत देने वाला - को पु. प्र. वि. ए. व. चिक्खति आधिक्खति अम्भाचिक्खति आधिक्खको चक्खति बक्खु, सद. 2.332. आचिक्खति आ + √चक्ख // चिक्ख का वर्त० प्र० पु०, ए. व. [आचष्टे / आचक्षते / आख्याति ], कहता है, उपदेश देता है, दरसाता है, विज्ञापित करता है, प्रतिपादित करता है, प्रकाशित करता है, विभाजित करके स्पष्ट करता है, सूचित करता है, व्याख्या करता है घोषणा करता हैआधिक्खतीति कथेति, देसेतीति दस्सेति पञ्ञापेतीति जानापेति, पद्वपेतीति आणमुखे उपेति विवरतीति विवरित्वा दरसेति विभजतीति विभागतो दस्सेति, उत्तानीकरोतीति पाकटं करोति, स. नि. अट्ठ. 2.36; आचिक्खति नाम पुट्ठो भणति - "एवं देहि, पारा 190; - सि म० पु०, ए. व. अच्छेरमाचिक्खसि पुत्रञसिद्धि, जा. अट्ठ 7.133; - से आत्मने. म. पु. ए. व. पथ आधिक्खसे तुवं अप. 1.81 पथं आधिक्खरोति.... निब्बानाधिगमनुपायं आधिक्खसे कथेस देसेसि विभजि उत्तानिं अकासीति अत्थो, अप. अट्ट.
आचिक्खति
"
2.48; - क्खामि उ. पु. ए. व. आचिक्खामीति कथेमि अ. नि. अह. 2.348; न्ति प्र. वि. व. व. - यं तं अरिया आधिक्खन्तीति पदनिदेसे पन... देसेन्तीति आदीनि सब्बानेव अञ्ञमञ्ञ वेवचनानि, विभ. अट्ट, 350; न्तो वर्त कृ पु. प्र. वि., ए. व. अत्थं आचिक्खन्तोपि यथा सो न जानाति सु. नि. अ. 1.14344; आनन्दयेरेन पुट्टो सितकारणं आधिक्खन्तो आह. ध. प. अड. 2.44 न्ती उपरिवत् स्त्री० एवं पन तेन इसिना पुच्छिता उब्बरी अत्तना अधिप्पेतं ब्रह्मदत्त आधिक्खन्ती, पे. व. अड. 143:- तु अनु. प्र. पु. ए. व. आधिक्खतु च मे भन्ते, भगवा दुक्ख, स० नि० 1 (2).20; क्ख म. पु. ए. व. आधिक्ख में तं यमहं विजञ्जन्ति जा. अड. 3.318: क्खाहि उपरिवत् आनन्दसेट्टि पुत्तस्स ते पञ्च महानिधियों आधिक्खाही ति आधिक्खापेत्या सहापेसि, ध. प. अट्ठ. 1.265; क्खथ म० पु०, ब० व. भन्ते आचिक्खथाति भिक्खु पुच्छति म. नि. अट्ठ (मू.प.) 1 (2).149; "मातरं मे आचिक्खथा "ति पुच्छित्त्वा ..." तं मे आचिक्खथाति आह ध. प. अ. 2.81 क्खेय्य विधि, प्र. पु. ए. व. मूव्हरस वा मग्गं आधिक्खेय्य, पारा. 6; मग्गं आचिक्खेय्याति हत्थे गहेत्वा एस मग्गोति वदेव्य पारा. अनु. 1. 129 क्खेय्याथ विधि. म. फु. ब. व. "सचे मे, भन्ते, पब्बज्जिते निस्सये आचिक्खेय्याथ, अभिरमेय्यामहं महाव. 66: - क्खि अय., प्र. पु. ए. व. - अथ खो आयस्मा अज्जुको तं ओकासं तस्स दारकस्स आचिक्खि, पारा, 79. क्खिं अद्य, उ. पु. ए. व. अहह करसचि नाचिक्खि चरिया 403; - क्खिसु अद्य प्र. पु. ब. व. तरस भिक्खू पटिकच्चेव निस्सये आचिक्खिसु, महाव. 65; - क्खिस्सा काला०, प्र० पु०, ए. व. सचे तथा सत्था नाचिक्खिस्सा... उदा. अट्ठ. 100; - क्खितुं निमि कृ. लम्भा सोवण्णमयाय लहिया धज्ञपुजोपि सुवणपुजोपि आचिक्खितुन्ति, कथा. 189; अनुजानामि, भिक्खवे, उपसम्पादेन्तेन चत्तारो निस्सये आचिक्खितुं महाव. 65 क्खितब्ब त्रि. सं. कृ. - उपज्झायेन आचिक्खितब्बं एवं धोवेय्यासीति, महाव, 59क्खित्वा / क्खित्वान पू. का. कृ. वन्दित्वा तं पवत्तिं विवित्वा... उदा. अड. 145 आचिक्खित्वान तं मग्गं निब्बुता ते ससावकाति . वं. 28.20. विखयमान - त्रि वर्त. कृ. कर्म. वा. - ने सप्त वि. ए. व. तथागतेन एवं आचिविखयमाने देसियमाने... न जानाति न
....
60;
For Private and Personal Use Only
-
-
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
-
—