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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इद्धिमद 329 इद्धिय/इट्टिय अट्ठ. 231; - लाभाव पु., तत्पु. स. [ऋद्धिबलाभाव], ऋद्धिबल का अभाव – वा प. वि., ए. व. - खीणासवापि समाना इद्धिबलाभावा परकुलानि पिण्डाय उपसमिस्सन्ति. पारा. अट्ठ 1.139. इद्धिमद पु., तत्पु. स. [ऋद्धिमद], ऋद्धियों से युक्त होने का दर्प, ऋद्धिमान होने का अहंभाव - दो प्र. वि., ए. व. - इद्धिमदो यसमदो सीलमदो .... विभ. 395; तं तं इज्झतीति वा मज्जनवसेन उप्पन्नो मानो इद्धिमदो, नाम. विभ. अट्ट, 442. इद्धिमन्तु त्रि., इद्धि + मन्तु प्रत्यय के योग से निष्पन्न [ऋद्धिमत्], ऋद्धियों का स्वामी, अलौकिक दिव्य शक्तियों से सम्पन्न, अद्भुत शक्ति एवं ऐश्वर्य से युक्त, इद्धिविधनामक ज्ञान से युक्त - मा/मन्तो पु., प्र. वि., ए. व. - चण्डेत्थ नागराजा इद्धिमा आसिविसो घोरविसो, महाव. 29; नागोहमस्मि इद्धिमा तेजस्सी दुरतिक्कमो, जा. अट्ठ. 7.14; इद्धिमाति अधिट्ठानिद्धिविकब्बनिद्धिआदीहि इद्धीहि इद्धिमा, इद्धिविधञाणलाभीति अत्थो, थेरगा. अट्ठ. 2.73; इद्धिमा चेतोवसिप्पत्तोति इद्धिसम्पन्नो चित्तरस वसिभावपत्तो खीणासवो, अ. नि. अट्ठ. 2.362; इद्धिमन्तो महापओ कालदेवलतापसो, जिन. 119; - न्तं पु., द्वि. वि., ए. व. - भिक्खू तादिसं इद्धिमन्तं सब्रह्मचारिं कुतो लभिस्सन्ति? पारा. अट्ठ. 1.139; - मतो/न्तस्स/मस्स पु., ष. वि., ए. व. - इद्धिमतो पन ठिता अनेकवण्णा अच्चियो होन्ति, महाव. 30; 'अनापत्ति, भिक्खवे, इद्धिमस्स इद्धिविसयेति, पारा. 80; - न्तो/न्ता पु., प्र. वि., ब. व. - यक्खा . .. इद्धिमन्तो जुतिमन्तो वण्णवन्तो यसस्सिनो, दी. नि. 2.187; येसु बुद्धा खीणासवा च पच्चेकबुद्धा च इद्धिमन्ता च इसयो न्हायन्ति, अ. नि. अट्ठ. 3.218; इद्धिमन्तोति दिब्बइद्धियुत्ता, दी. नि. अट्ठ. 2.249; -- न्ते पु., द्वि. वि., ब. व. - अजे भिक्खू इद्धिमन्ते दिस्वा ..., थेरगा. अट्ठ. 1.380; - न्तेहि पु., तृ. वि., ब. व. - भगवा कथाहं इद्धिमन्तेहि गन्तब्बट्टानं गमिस्सामीति, अ. नि. अट्ठ. 1.239; - मतं/मन्तानं पु., ष. वि., ब. व. - यो नामिद्धिमतं सेट्ठो, दुतियो अग्गसावको, विसुद्धि. 1.225%; "एतदग्ग, भिक्खवे, ... इद्धिमन्तानं यदिदं महामोग्गल्लानो, अ. नि. 1(1).31; - मती/मन्तिनी स्त्री, प्र. वि., ए. व., ऋद्धियों से सम्पन्न नारी - सतिमती चक्खुमती, इद्धिमती पत्तिमती ति च, सद्द. 1.180; -- न्तिनियो ब. व. - देवतापि खो सन्ति इद्धिमन्तिनियो दिब्बचक्खुका परचित्तविदुनियो, अ. नि. 1(1).173; - मतीनं/मन्तानं स्त्री., ष. वि., ब. व. - अग्गा इद्धिमतीनन्ति, थेरीगा. अट्ठ. 218; “एतदग्गं, भिक्खवे, ... इद्धिमन्तीनं यदिदं उप्पलवण्णा अ. नि. 1(1).35; स. उ. प. के रूप में अनि. के अन्त. द्रष्ट.; - न्तता स्त्री., इद्धिमन्तु का भाव. [ऋद्धिमत्त्व, नपुं.], ऋद्धियों से समन्वित होना - य तृ. वि., ए. व. - "एतदग्गं, भिक्खवे, मम सावकानं ... यदिद महामोग्गल्लानोति इद्धिमन्तताय एतदग्गे ठपेसि, थेरगा. अट्ठ. 2.406-7. इद्धिमय त्रि., तत्पु. स. [ऋद्धिसम्पन्न], 1. ऋद्धिबल से परिपूर्ण, अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न, ऋद्धियों से युक्त, 2. तेईस प्रकार के पंसुकूलचीवरों में बाईसवें के रूप में उल्लिखित चीवर, 'एहि भिक्खु (आ जाओ भिक्षु) कहते ही अदभुत रूप से प्राप्त श्रेष्ठ चीवर - यो पु., प्र. वि., ए. व. - कम्मविपाकजाय इद्धिया पयोजनं इद्धिमयो पयोगो, पारा. अट्ट. 2.37; - यं नपुं., प्र. वि., ए. व., (चीवर)इद्धिमयन्ति एहिभिक्खुचीवर विसुद्धि. 1.61; - पत्तचीवर नपुं.. कर्म. स., चमत्कारमय रूप से प्राप्त पात्र एवं चीवर - रं प्र. वि., ए. व. - द्विन्न अग्गसावकानम्पि इद्धिमयपत्तचीवरं आगतं, अ. नि. अट्ट, 1.128; तेनस्स इद्धिमयपत्तचीवरं न उप्पजिस्सति, उदा. अट्ठ. 75; - पत्तचीवरधर त्रि., "एहि भिक्खु" कहने से प्राप्त पात्र एवं चीवर को धारण करने वाला – रा पु., प्र. वि., ब. व. - सब्बे अन्तरहितके समस्सू इद्धिमयपत्तचीवरधारा वस्ससटिकत्थेरसदिसा अहेसुं, अ. नि. अठ्ठ. 1.158.. इद्धिमयिक त्रि., इद्धिमय + इक के योग से व्यु., ऋद्धियों से निर्मित, ऋद्धियों से परिपूर्ण, अलौकिक दिव्य शक्तियों से युक्त - को पु.. प्र. वि., ए. व. - इद्धिमयिको सो आयूतिआदिमाह, प. प. अट्ठ. 224; - का स्त्री., प्र. वि., ए. व. - ... इद्धिमयिका सा गति, इद्धिमयिको सो अत्तभावप्पटिलाभो, कथा. 368; - कं नपुं.. प्र. वि., ए. व. -- धम्मसङ्गाहकत्थेरेहि तेसं अनुलोमानि दुकूलं... इद्धिमयिक ...... अनुज्ञातानि, महाव. अट्ठ. 363. इद्धिमहत्त नपुं, तत्पु. स. [ऋद्धिमहत्व]. ऋद्धियों की महत्ता अथवा श्रेष्ठता - तो प. वि., ए. व. - इद्धिमहत्ततो अनुस्सरितब्ब, विसुद्धि. 1.225; ... यसमहत्ततो पुञ्जमहत्ततो ... इद्धिमहत्ततो ... सम्मासम्बुद्धतोति, विसुद्धि. 1.223. इद्धिय/इट्टिय पु., व्य. सं., एक स्थविर का नाम - यो प्र. वि., ए. व. - इट्टियो उत्तियो थेरो, भद्दसालो च सम्बलो, For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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