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आलुळ
वच्छकस्स आसन्नट्टाने चरमाना तिणं आलुम्पित्वा गीवं उक्खिपित्वा तदे..
आलुळ त्रि. गंदला, पंकिल, मटमैला - ळा स्त्री०, प्र. वि., ए. व. - "तेन गङ्गा आळुला सन्दतीति, जा. अ. 6.258; नदी.... हेडुपरियवालिका आलुळा होति, स. नि. अ.
1.209.
आलुळति / आलुलेति आ + √लुड का वर्त., प्र. पु. ए. व. [आलोडति], क. आलोडित अथवा उद्विग्न होता है, ख. संभ्रमग्रस्त कर देता है, ग. घबराहट में इधर उधर भटकता है - गम्भीरं महाउदकं ... न आलुळति, स. नि. अट्ठ 1.208; एवरूपस्सपि नाम भिक्खुनो अयं पञ्हो आलुळेति, म. नि. अट्ठ (मू०प.) 1(1). 241; - माना स्त्री०, वर्त. कृ., प्र. वि., ए. व. - ततो चवित्वा पुन गतिवसेन आलुलमाना, ध. प. अ. 2.305 – लिस्सति भवि., प्र. पु०, ए. व. • - अयं पुग्गलो पवेणिआगतं तन्तिं ... आलुळिस्सती ति, ध. स. अड. 399; - ले विधि, प्र० पु०, ए. व. - भातिका इमं पञ्हं आलुळे..., म. नि. अड. 1 (1). 241. आलुलापेत्वा आ + √लुळ का प्रेर० पू० का० कृ०, आन्दोलित अथवा क्षुब्ध करा कर, बुरी तरह खौल-बौल करा कर - सेसकं उदकचाटियं आलुळापेत्वा... म. नि. अड. (म.प.)
209
2.60.
आलुळिक त्रि., आलुळ से व्यु., मटमैला, गंदला, पंकिल कं नपुं०, द्वि. वि., ए. व. - उदकं आळुलिकं करोन्ते दिस्वा, दी. नि. अट्ठ. 2.200.
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आलुळित / आलुलित त्रि, आ + √लुळ का भू० क० कृ० [ आलोडित], क. विक्षुब्ध, अशान्त, बेचैन, संभ्रमग्रस्त - तं नपुं०, प्र. वि., ए. व. - तव दुस्सयनदुब्भोजनेहि चितं आलुळितं भविस्सति, जा. अट्ठ. 7.310; अहम्पि उपक्किलेसेहि आळुलितपुब्बोति, म. नि. अट्ठ० (उप. प.) 3.152-53; तापु०, प्र० वि०, ब० व. इमे सङ्घारा अञ्ञमञ्ञमिस्सा आलुळिता म. नि. अट्ठ. (मू०प.) 1(2).259; - ते सप्त. वि., ए. व. परित्तोदके एव हि भत्तपक्खेपेन आलुळिते सुखुमपाणका मरन्ति, म. नि. अ. (मू०प.) 1 (1).101; तत्थ आविलेति कद्दमालुळिते, जा० अ० 2.83; ख. मटमैला, पंकिल या मलिन कर दिया गया, आपस में मिला दिया गया, मथ दिया गया - ता स्त्री०, प्र. वि., ए. व. - गङ्गा आळुला सन्दतीति, जा. अड. 6.258, पाठा. आळुलिता - तं नपुं. प्र. वि., ए. व. - एकतो कत्वा मिस्सितं आलुळितं, म. नि. अट्ठ० ( मू०प०)
आलेख
1 ( 2 ) . 271; - तानि नपुं. प्र. वि., ब. व. - चक्खादीनि इन्द्रियानि जरं पत्तस्स परिपक्कानि आलुळितानि अविसदानि म. नि. अट्ठ (मू०प.) 1 ( 1 ) . 225.
आलुळितत्त नपुं, आलुळित का भाव, मटमैलापन, विक्षोभभाव
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धुंधलापन, व्यग्रता - त्ताप.वि., ए. व.. पठमतरं ओतरित्वा पिवन्तेहि आलुळितत्ता आविलानि, उदा. अट्ठ. 202. आलुळीयति आ + √ळुळ का वर्त., प्र. पु. ए. व., कर्म. वा., मथ दिया जाता है, विक्षुब्ध कर दिया जाता है, गंदला अथवा पंकिल बना दिया जाता है- उदकम्पि आलुळीयति, म. नि. अट्ठ. (मू०प.) 1(2).158. आलुळेति / आळुळेति आ + √ळुळ का प्रेर, वर्त., प्र. पु०,
ए. व., क. विक्षोभित कर देता है, मथ देता है, घोलमेल कर देता है तो वर्त. कृ., पु०, प्र. वि., ए. व. - महामेरुं मत्थं कत्वा चक्कवाळमहासमुदं आलुळेन्तो, जा. अ. 1.34; - न्ते द्वि. वि., ब. व. - महाचङ्कमे सम्मट्ठानं आळुलेन्ते दिवा, दी. नि. अट्ठ. 2.200; - न्तानं पु०, ष० वि., ब.व. यागुं वा सूपं वा ..... आलुलेन्तानं, पाचि. अट्ठ. 100; आलुलेन्तानन्ति आलोलेन्तानं, अयमेव वा पाठो, सारत्थ. टी. 3.64; ख. अव्यवस्थित कर देता है, संभ्रमग्रस्त बना देता है, विक्षुब्ध कर देता है, व्यग्र या विचलित कर देता न्तो वर्त. कृ. पु०, प्र. वि., ए. व. सारिपुत्तं आलुळेन्तो पञ्हं पुच्छिस्सामि, जा. अट्ठ. 2.8; सति भवि., प्र. पु. ए. व. - मातुगामो नाम कस्मा तुम्हादिसानं चित्तं नालुळेस्सति, जा० अट्ठ. 2.26; - स्सन्ति ब. व. - अनुरुद्धा तुम्हे किं न आळुलेस्सन्ति, म. नि. अट्ठ. (उप. प.) 3.152; - त्वा पू० का. कृ. वालिक आलुळेत्वा, स. नि. अट्ट. 3.42.
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आलुवकन्द पु०, चुकन्दर, शकरकन्द, आवनूस का फल - न्दं द्वि. वि., ए. व. - अरहतो अहं पसन्नमानसो आलुवकन्द पादासि आदरेन ... अत्थो, अप. अट्ट 2.187. आलुवदायक पु०, एक स्थविर का नाम - को प्र. वि., ए. व. - इत्थं सुदं आयस्मा आलुवदायको थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अप. 1.252.
आलूख नपुं० [आरुक], हिमाचल में प्राप्त एक औषधीय
पादप, आडू, शफतालू, सतालू - खं प्र. वि., ए. व. - आलूखं वातपित्तस्सकाससासारुची रण, भेसज्ज. म. 5.102. आलेख पु०, आ + लिख से व्यु [आलेख] चित्र लेखन, रेखाङ्कन, चित्राङ्कन - खं द्वि. वि., ए. व. - दिब्बविमानं पेसेत्वा तदालेखं ददाथ मे, म. वं. 27.10.