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आरुळ्ह/आरूळ्ह
191
आरोग
इध पाळियं आरूळ्हा पन परिमिताव गाथावसेन परिग्गहितत्ता, तथापि महासावकेसुपि केचि इध पाळियं नारूळहा, थेरगा. अट्ठ. 2.456; - न्हा स्त्री, प्र. वि., ब. व. - सब्बअट्ठकथास देसना आरूळ्हा, पारा. अट्ठ. 1.217; आरुळहायेव मातिक, चूळव. अट्ठ. 96; - न्हं द्वि. वि., ए. व. - भजति, ... रूपावचरदेसनं न आरुळ्हं, ध. स. अट्ठ. 231; - न्हा स्त्री., द्वि. वि., ब. व. - इमा गाथा ताव सङ्गहं आरुळ्हा, उदा. अट्ठ. 340; - ळ्हासु स्त्री., सप्त. वि., ब. व. - गोपानसीस पन आरुळहासु बहकतो नाम होति, चूळव. अट्ठ. 83; - ळ्हं नपुं., प्र. वि., ए. व. - विनयपिटकं सङ्गहमारूळ्हं, पारा. अट्ठ. 1.12; - व्ह' द्वि. वि., ए. व. - इदं पाळियं आरुळ्हञ्च अनारुळहञ्च सब्बं भगवा अवोच, दी. नि. अट्ठ. 2.205; - स्स ष. वि., ए. व. - तन्ति आरुळहस्स बुद्धवचनस्स पटिसम्भिदाप्पत्तानं.., विभ. अट्ठ. 367; - हे सप्त. वि., ए. व. - तिस्सो सङ्गीतियो आरुळहे तेपिटके बुद्धवचने, दी. नि. अट्ठ. 3.73; - हानि' नपुं., प्र. वि., ब. व. - पुप्फनकानि... पाळि नारुळहानि, आहरित्वा पन दीपेतब्बानीति दीपितानि, स. नि. अट्ठ 1.177; - हानि' वि. वि., ब. व. - धम्मुद्देसवारे पाळिआरुळहानि छप्पास पदानि विभजित्वा, ध. स. अट्ठ 181; - काल पु., तत्पु. स. [आरोहणकाल], ऊपर की ओर चढ़ने का समय, सवारी पर सवार होने का समय - लो प्र. वि., ए. व. - आरुळहकालो विय पठमज्झाने .... अ. नि. अट्ट. 2.351; - हान नपुं.. तत्पु. स. [आरोहणस्थान], वह स्थान जहां पहले चढ़ा जा चुका है -ने सप्त. वि., ए. व. - एवं आरुहटाने पदं विय हि सुखवेदनाय उप्पत्ति पाकटा होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).2883; - ता स्त्री., आरुहन का भाव., स. उ. प. के रूप में, मुखा.- मुख पर आ जाना - य तृ. वि., ए. व. - केवलं लोकवोहारवसेन ब्यञ्जनसिलिट्ठताय मुखारूळ्हताय एतं वुत्तं, पारा. अट्ठ. 1.194; - धम्म पु., कर्म. स. [आरूढ़धर्म]. सुनिर्धारित धर्म - म्मं द्वि. वि., ए. व. - तिस्सो सङ्गीतियो आरुळ्हधम्मयेव पन पदसो वाचेन्तस्स आपत्ति, पाचि. अट्ठ. 8; - नावा स्त्री., कर्म. स., वह नौका, जिस पर लोग चढ़ चुके हैं - य तृ. वि., ए. व. - तेन आरुळहनावाय ब्यापत्ति नाम नत्थि, जा. अट्ठ. 4.125; - भाव पु.. [आरूढ़भाव], आरूढ़ हो जाने की स्थिति, सम्प्राप्त हो जाने की अवस्था, आ पड़ने की स्थिति - वो प्र. वि., ए. व. - कथं पन ते, पण्डित, मक्कटिया
हत्थं आरुळहभावो जातो, जा. अट्ठ. 1.369; - वं द्वि. वि., ए. व. -- आरुळहभावं वा ओरुकहभावं वा न जानाति, पाचि. अट्ठ. 150; - वानर त्रि., ब. स., वह वृक्ष, जिस पर वानर चढ़े हुए हों - रो पु., प्र. वि., ए. व. - आरूळहो वानरो यं रुक्खं सो आरूळहवानरो, मो. व्या. 3.17; - विस नपुं., कर्मस., चढ़ चुका विष, शरीर में पूरी तरह फैल चुका विष - स्स ष. वि., ए. व. - याव अक्खिप्पदेसा आरुळहविसस्स उपरि अभिरुहितुं..., स. नि. अट्ठ. 2.88; - साखा स्त्री., कर्म. स., वह शाखा, जिस पर कोई चढ़ा हुआ है -- य ष. वि., ए. व. - द्वे सामणेरे... आरुळहसाखाय भग्गाय पतन्ते दिस्वा, थेरगा. अट्ठ. 1.355; - हामिलाप पु., परम्परा से चली आ रही बातचीत, पारम्परिक कथन - करणवचनेनेव अयमभिलापो आरोपितोति आदितो पट्ठाय आरुळहाभिलापवसेनेवेतं वृत्तन्ति वेदितब्बं महाव. अट्ठ. 225. आरुळिहत्वान आ + रुह का पू. का. कृ., चढ़ा कर, सवार हो कर, सवार करा के - आरुळिहत्वान पासाद, गजबाहुनराधिपं. चू. वं. 70.262. आरुह/आरूह पु., आ + रुह से व्यु., स. उ. प. के रूप में ही प्रयुक्त [आरोह], आरोहण, ऊपर चढ़ जाना, स. उ. प. के रूप में, अज्झा. - त्रि., अत्यधिक ऊपर की उठा हुआ - हा पु., प्र. वि., ब. व. - अज्झारूहाभिवड्डन्ति, जा. अट्ठ. 3.352; अज्झारूहाभिवड्डन्तीति निग्रोधादयो रुक्खा अज्झारूहा हुत्वा महन्तम्पि... दस्सेति, जा. अट्ठ. 3.353; दुक्खा. - त्रि., दुख के साथ चढ़ने वाला, कठिनाई से ऊपर चढ़ने योग्य – हो पु.. प्र. वि., ए. व. - अयं विसरुक्खो न दुक्खारुहो, जा. अट्ठ. 1.262; दुरा.- त्रि., कठिनाई से ऊपर चढ़ने योग्य – हो पु., प्र. वि., ए. व. - तत्थ नायं रुक्खो दुरारुहोति अयं विसरुक्खो न
दुक्खारुहो ..., जा. अट्ट, 1.262. आरोग/अरोग त्रि., 'अ' के स्थान पर अनियमित रूप से 'आ' का प्रयोग, ब. स. [अरोग]. क. रोगों से मुक्त, स्वस्थ, सुरक्षित, सङ्कटों से मुक्त, कुशलक्षेम-युक्त - गो पु., प्र. वि., ए. व. -- आरोग्यस्थायाति अरोगो भविस्सामि, पारा. 151; अरोगो भविस्सामीति मोचेत्वा अरोगो भविस्सामि, पारा. अट्ठ. 2.100; – गं पु., द्वि. वि., ए. व. -- आगन्त्वा नासक्खिंसु अरोगं कातुं, महाव. 359; - गा पु., प्र. वि., ब. व. - एकच्चे अरोगा जाता, जा. अट्ठ. 1.352; - गे पु., द्वि. वि., ब. व. - तुम्हे अरोगे कातुं नासक्खि , जा. अट्ठ.
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