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आरम्भति
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आरम्मण
प्र. वि., ए. व. - पमिणन्तीति एत्थ आरम्भत्थो प-सद्दोति आह तुलेतुं आरभन्तीति, अ. नि. टी. 3.106; - दळ्हता स्त्री., कर्म को प्रारम्भ किए जाने के विषय में दृढ़ता, आदि कर्म-विषयिणी दृढ़ता - ता प्र. वि., ए. व. - ... आरम्भदळहता, धीरवीरभावो ... एवमादिका सब्बापि बोधिसम्भारपटिपत्ति वीरियानुभावेनेव समिज्झतीति .... चरिया. अट्ठ. 289; - धातु स्त्री., कर्म को प्रारम्भ करने का प्रबल उत्साह, कर्म के प्रथम आरम्भ के लिए वीर्य - तु प्र. वि., ए. व. - अस्थि, भिक्खवे, आरम्भधातु निक्कमधातु, स. नि. 3(1).83; आरम्भधातूति पठमारम्भवीरियं, स. नि. अट्ठ. 3.1783; - तुं द्वि. वि., ए. व. - वीरियं नाम लभन्ति आरम्भधातुं उपादाय, पेटको. 190; - या सप्त. वि., ए. व. - *आरब्भधातुया सति आरम्भवन्तो सत्ता पञआयन्तीति, अ. नि. 2(2).53; पाठा. आरम्भधातुया; - पच्चया अ., प. वि., प्रतिरू., क्रि. वि., (पाप) कर्मों के प्रारम्भ किए जाने के फलस्वरूप - यं किञ्चि दुक्खं सम्भोति सब्ब आरम्भपच्चयाति, सु. नि. पृ. 194; - पञत्ति स्त्री., कर्म । को प्रारम्भ किए जाने का कथन, आदिकर्म की संज्ञा-त्ति प्र. वि, ए. व. - आरम्भपञति वीरियिद्रियस्स, नेत्ति. 50; - लक्खण त्रि., ब. स., उत्साह के लक्षण से युक्त - णं नपुं., प्र. वि., ए. व. - आरम्भलक्खणं वीरियं, नेत्ति. 25; - वत्थु नपुं.. वीर्य का आधारभूत कारण - त्थूनि प्र. वि., ब. व. - अट्ठ आरम्भवत्थूनि, दी. नि. 3.203; आरम्भवत्थूनीति वीरियकारणानि, दी. नि. अट्ठ. 3.207; -वीरिय नपुं, कर्म. स., प्रबल प्रयास, मानसिक प्रयत्न -यं द्वि. वि., ए. व. - तत्थ आरम्भथाति आरम्भवीरियं करोथ, स. नि. अट्ठ. 1.195; - सुद्धि स्त्री., तत्पु. स., वीर्य अथवा कार्य-विषयक उत्साह की शुद्धि - द्धि प्र. वि., ए. व. - मनोति आरम्भो नेव पदसुद्धि, न आरम्भसुद्धि, नेत्ति. अट्ठ. 306. आरम्भति आ + आरम्भ का वर्त, प्र. पु., ए. व. [आरभते], 1. प्रारम्भ करता है, दृढ़ प्रयास करता है, समुत्तेजित अथवा प्रोत्साहित करता है, सक्रिय करता है, उत्पन्न करता है, 2. पाप कर्म करता है, आपत्ति में आपतित हो जाता है। - आरम्भति च विप्पटिसारी च होती ति एत्थ आपत्ति, महानि. अट्ठ. 331; -न्ति ब. व. - आरम्भन्ति चेतसिको, पेटको. 189; - थ/व्हो अनु., म. पु., ब. व. - आरम्भथ निक्कमथ, युञ्जथ बुद्धसासने, पेटको. 217; आरम्भव्हो दळहा होथाति, दी. नि. अट्ठ. 2.235.
आरम्भन नपुं., आ + आरम्भ से व्यु., क्रि. ना., प्रोत्साहन, प्रबल प्रयास, दृढ़ प्रयत्न, कठोर व्यायाम, स. प. के रूप में, - वसेन क्रि. वि., सुदृढ़ प्रयास के रूप में - वीरियहि
आरम्भनवसेन आरम्भोति वुच्चति, महानि. अट्ठ, 331. आरम्भनक नपुं., आरम्भन से व्यु., उपरिवत् - वीरियहि
आरभनकवसेन आरम्भोति वुच्चति, पटि. म. अट्ठ. 1.383; पाठा. आरभनकवसेन. आरम्भवन्तु त्रि., प्रारम्भ कर देने वाला, प्रबल प्रयास करने वाला, अध्यवायी, वीर्यवान् - न्तो पु., प्र. वि., ब. व. - "आरब्भधातुयासति आरब्भवन्तो सत्ता पञआयन्तीति, अ. नि. 2(2).53; पाठा. आरभवन्तो. आरम्मण नपुं., संभवतः आ + Vरम्भ से व्यु., क्रि. ना., आलम्बन अथवा आरम्मन का परिवर्तित रूप [आलम्बन], शा. अ., आश्रय, सहारा, टेक, आशय, आवास, आधार - पतिट्ठापि हि आलम्बीयतीति आरम्मणं नाम होति... अञत्थ पाळियम्पि हि पतिट्ठा "आरम्मण"न्ति वुच्चन्ति, पटि. म. अट्ठ. 2.174; या आहारहिति या पुनभवाभिनिब्बत्तिका ठिति या च पोनोभविका ठिति, अयं वुच्चति आरम्मणं पेटको. 307: अप्पटिक्खिपितब्बेन अत्तनो फलेन आलम्बियतीति आलम्बणं, प. प. अट्ठ. 289; - णं द्वि. वि., ए. व. -- "आरम्मणं ब्रूहि समन्तचक्खु यं निस्सितो ओघमिमं तरेय्यं, सु.नि. 10753; आरम्मणन्ति निस्सयं, सु. नि. अट्ठ. 2.284; आरम्मणं ब्रूहि समन्तचक्खूति आरम्मणं आलम्बणं निस्सयं उपनिस्सयं ब्रूहि ..., चूळनि. 91; ला. अ. 1., इन्द्रियों का विषय, चेतना का विषय, चित्त एवं चैतसिक धर्मों का आश्रय, गोचर, आयतन, इन्द्रियों (ग्राहकों) द्वारा ग्राह्य रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पृष्टव्य एवं धर्म, बाह्य आयतन - णं' प्र. वि, ए. व. - आलम्बो विसयो तेजारम्मणालम्बनानि च, अभि. प. 94; इन्दोधिपतिसक्केस्वारम्मणं, हेतु गोचरे, अभि. प. 1132; ... तदेव दुब्बलपुरिसेन दण्डादि विय चित्त चेतसिकेहि आलम्बीयति, तानि वा आगन्त्वा एत्थ रमन्तीति आरम्मणं..., अभि. ध. वि. टी. 121; - णं द्वि. वि., ए. व. - "आरम्मणतो"ति पाणातिपाता वेरमणी परस्स जीवितिन्द्रियं आरम्मणं कत्वा अत्तनो वेरचेतनाय विरमति, विभ. अट्ठ. 363; - णानि ब. व. - आरम्मणानि नाम रूपारम्मणं सद्दारम्मणं गन्धारम्मणं रसारम्मणं फोट्टब्बारम्मणं धम्मारम्मणञ्चेति छबिधानि भवन्ति, अभि. ध. स. 21; ला. अ. 2. हेतु, चौबीस प्रत्ययों (पच्चयों) में से एक, कारण, तार्किक आधार - ण' प्र. वि., ए. व. - आलम्बीयति
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