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आभवग्गं
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आभा
आभवग्गं अ., अव्ययी. स. [आभवाग्रम], भवाग्र-नामक अवस्था तक, भव अथवा अस्तित्व की सर्वोच्च अवस्था तक - आभवग्गं आगोत्रभु सवनतो पवत्तनतो... "आसवाति, उदा. अट्ठ. 75; आगोत्र, आभवग्गं वा सवन्तीति आसवा, उदा. अट्ठ. 141. आभवग्गतो अ०, प. वि., प्रतिरू. निपा., उपरिवत् -
आरम्मणवसेन आगोत्रभुतो, आभवग्गतो च सवना, विसुद्धि. 2.322. आभस्सर पु., [आभास्वर], शा. अ., आभा अथवा दीप्ति से परिपूर्ण, ला. अ., 1. रूपी ब्रह्माओं के एक लोक का नाम - रा प्र. वि., ए. व. - महातापसानं आभस्सरा, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).322; - रे द्वि. वि., ब. व. - आभस्सरे आभस्सरतो सजानाति... सञत्वा... मञति, म. नि. 1.3; - तो प. वि., ए. व. - बोधिसत्तो आभस्सरतो आगन्त्वा आकासे ठत्वा इमं गाथमाह, जा. अट्ठ. 1.451; - रेसु सप्त. वि., ब. व. - दुतियज्झानं भावेत्वा आभस्सरेसु अट्ठकप्पं आयुं गहेत्वा निब्बत्ति, म. नि. अट्ट (मू.प.) 1(2).302; - काय पु., तत्पु. स., आभा से परिपूर्ण देवों (आभास्वर वर्ग के देवों) का समूह, आभास्वर देवों का वर्ग - या प. वि., ए. व. - आयुक्खया वा पुञ्जक्खया वा आभस्सरकाया चवित्वा सुझं बह्मविमानं उपपज्जन्ति, दी. नि. 1.15; - द्वान नपुं., तत्पु. स. [आभास्वरस्थान] आभास्वर लोक का निवास स्थान, आभा से परिपूर्ण स्थान - सुभकिण्हतो च चवित्वा आभस्सरहानादीसु सत्ता निब्बत्तन्ति, पटि. म. अट्ट, 1.300; - त्त नपुं, आभस्सर का भाव. [आभास्वरत्व], प्रभासित होना, अत्यधिक दीप्तिमय होना - त्तेन तृ. वि., ए. व. -- आभस्सरानं आभस्सरत्तेन अननुभूतं. म. नि. 1.413; - ब्रह्मलोक पु., कर्म. स. [आभास्वर ब्रह्मलोक], आभा अथवा प्रकाश से परिपूर्ण ब्रह्मलोक, आभास्वर देवों का ब्रह्मलोक, आभास्वर नामक ब्रह्मलोक - कं द्वि. वि., ए. व. - ... आभस्सरब्रह्मलोकं
आदि कत्वा लोको पातुभवति, पटि. म. अट्ठ. 1.300; - के सप्त. वि., ए. व. - तदा च आभस्सरब्रह्मलोके पठमतराभिनिब्बत्ता सत्ता आयुक्खया वा पुञ्जक्खया वा ..., पटि. म. अट्ट, 1.298; - भवन नपुं., कर्मस., प्रकाश से भरा हुआ क्षेत्र, आभास्वर नामक क्षेत्र अथवा स्थल - ना प. वि., ए.व. - वुट्ठिया पन पवत्तमानाय याव आभस्सरभवनापि एकोदकं होति, स. नि. अट्ठ. 1.31; - लोक पु., कर्म. स. [आभास्वरलोक], प्रकाश से परिपूर्ण
आभास्वर देवों का लोक, आभास्वर नामक लोक - के सप्त. वि., ए. व. - आभस्सरलोके महाब्रह्मानो विय पीतिसुखेनेव वीतिनामेस्सामा ति, ध. प. अट्ठ. 2.149; -- संवत्तनिक त्रि., आभास्वर नामक लोक में पुनर्जन्म लेने वाला - का पु.. प्र. वि., ब. व. - संवट्टमाने लोके येभुय्येन सत्ता आभस्सरसंवत्तनिका होन्ति, दी. नि. 1.15; - रूपग त्रि., आभास्वर नामक ब्रह्मलोक को जाने वाला अथवा वहां पहुंचने वाला- गो पृ., प्र. वि., ए. व. - लोके आभस्सरूपगो होमि, अ. नि. 2(2).227; 2. पु., सदा ब. व. में प्रयुक्त, उन देवताओं के वर्ग का नाम जो कि आभास्वरनामक रूप-ब्रह्मलोक में निवास करते हैं तथा जिनके शरीर से आभा अथवा प्रकाश की किरणें निकल कर चारों ओर बिखर जाती हैं - रा प्र. वि., ब. व. - आभस्सरवारे दण्डदीपिकाय अच्चि विय एतेसं सरीरतो आभा छिज्जित्वा छिज्जित्वा पतन्ती विय सरति विसरतीति आभस्सरा, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).38; दी. नि. अट्ठ. 2.90; सत्ता एकत्तकाया नानत्तसञिनो, सेय्यथापि देवा आभस्सरा, दी. नि. 2.54; - रे द्वि. वि., ब. व. - आभस्सरे ... सञ्जानाति, ... अभिनन्दति, म. नि. 1.3; - रानं ष. वि., ब. व. - आभस्सरानं आभस्सरत्तेन अननुभूतं. म. नि. 1.413; - रेसु सप्त. वि., ब. व. - आभस्सरेसु मञति, म. नि. 1.3. आभा' स्त्री., आ +vभा से व्यु. [आभा], प्रकाश, चमक, कान्ति, दीप्ति - रसिं चाभा पभा दित्ति रूचि भा जुति दीधिति, अभि. प. 64; विविधेहि सीलादिगुणेहि भवतीति विभू, ... विभा... आभा, भुजगो. ... .परितो, इच्चेवमादि, क. व्या. 641; -- भा प्र. वि., ए. व. - मणिरतनस्स आभा समन्ता योजनं फुटा अहोसि, दी. नि. 2.131; नत्थि सूरियसमा आभा, समुद्दपरमा सरा ति, स. नि. 1(1).8; एसा आभाति एसा बुद्धाभा, स. नि. अट्ठ. 1.48; - भं द्वि. वि., ए. व. - आभं पटिच्च अच्चि पायति, म. नि. 1.376; आभं पटिच्च अच्चीति तं आलोकं पटिच्च जालसिखा पायति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).245; - य तृ. वि., ए. व. - चन्दिमसूरिया एवंमहिद्धिका एवंमहानुभावा आभाय नानुभोन्ति, दी. नि. 2.9; आभाय नानुभोन्तीति अत्तनो पभाय नप्पहोन्ति, दी. नि. अट्ठ.2.23; - भा प्र. वि., ब. व. - चतस्सो इमा, आभा... चन्दाभा, सूरियाभा, अग्गाभा, पञआभा, अ. नि. 1(2).160; --- भा द्वि. वि., ब. व. - ... देवा ये इमेसं चन्दिमसूरियानं आभा नानुभोन्ति, म. नि. 2.2363;
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