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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनन्द 98 आनन्दि - रे सप्त. वि., ए. व. - सो चत्तारि निमित्तानि दिस्वा सुभद्दादेविया पुत्ते आनन्दकुमारे उप्पन्ने सोनुत्तरं नाम अनुत्तरं तुरङ्गवरमारुयह महाभिनिक्खमनं निक्खमित्वा पब्बजि, बु. वं. अट्ठ. 261. आनन्द' पु., एक प्रत्येकबुद्ध का नाम - न्दो प्र. वि., ए.. व. -- आनन्दो नाम सम्बुद्धो, सयम्भू अपराजितो, अप. 1.240; आनन्दं तुद्धिं जननतो आनन्दो नाम पच्चेकबुद्धोति अत्थो , अप. अठ्ठ. 2.183. आनन्द' पु., एक गृद्धराज का नाम - न्दो प्र. वि., ए. व. - तदा आनन्दो नाम गिज्झराजा दसहस्सगिज्झपरिवारो गिज्झपब्बते पटिवसति, जा. अट्ठ. 5.419; 445; 447; 454; सु. नि. अट्ठ.2.83. आनन्द पु., समुद्र की पांच सौ योजन आकार की एक बड़ी मछली, विशालकाय महामत्स्य - न्दो प्र. वि., ए. व. - महामच्छा तिमि तिमिङ्गलो तिमिरपिङ्गलो, आनन्दो च तिमिन्दो च अज्झारोहो महातिमि, अभि. प. 673; अतीतस्मिहि काले महासमुद्दे छ महामच्छा अहेसु तेसु आनन्दो तिमिनन्दो अज्झारोहोति इमे तयो मच्छा पञ्चयोजनसतिका, जा. अट्ठ. 5.459; - मच्छ पु., आनन्द नामक मछली - च्छं द्वि. वि., ए. व. - चतुप्पदा सीहं राजानं अकंसु, मच्छा आनन्दमच्छ सकुणा सुवण्णहंसं जा. अट्ठ. 1.204. आनन्दकुमार पु.. 1. मङ्गलबुद्ध का सौतेला भाई - रो प्र. वि., ए. व. - वेमातिकभाता किरस्स आनन्दकुमारो नाम .... सत्थु सन्तिक अगमासि, जा. अट्ठ. 1.40; अप. अट्ठ. 1.41; 2. पु., उम्मग्ग-जातक के कथानक का एक पोत-शिल्पी - रं द्वि. वि., ए. व. - गङ्गातीरं पन पत्वा आनन्दकुमारं पक्कोसापेत्वा ... पेसेसि. जा. अट्ठ. 6.255. आनन्दचेतिय नपुं, बुद्धपूर्वकालीन एक चैत्य का नाम, आनन्द यक्ष द्वारा प्रतिष्ठापित एक विहार - ये सप्त. वि., ए. व. -- एक समयं भगवा भोगनगरे विहरति आनन्दचेतिये. अ. नि. 1(2).194; आनन्दचेतियेति आनन्दयक्खस्स भवनहाने पतिहितविहारे, अ. नि. अट्ठ. 2.353. आनन्दथेर पु., व्य. सं., 1. अनुराधपुर महाविहार (श्रीलङ्का) का एक भिक्षु, अभिधम्म पर मूलटीका का लेखक - रो प्र. वि., ए. व. - अभिधम्मटीकं पन आनन्दथेरो अकासि, सा. वं. 31; 2. काञ्चीपुर का एक स्थविर, छपद के चार सहायकों में से एक - रेन तृ. वि., ए. व. - किञ्चिपुरवासिना आनन्दथेरेन..... सा. वं. 38; 44; 63; 64; 3. अभिधम्म की मधुसारत्थदीपनी-नामक मूलटीका का लेखक, श्रीलङ्का में हंसावती-नामक स्थान का निवासी एक स्थविर - रो प्र. वि., ए. व. - हंसावतीनगरवासी पन आनन्दथेरो मधुसारत्थदीपनि नाम अभिधम्मटीकाय संवण्णनं..., सा. वं. 45. आनन्दबोधि पु., आनन्द द्वारा रोपा गया बोधि-वृक्ष - धि प्र. वि., ए. व. - सो पन आनन्दत्थेरेन रोपितत्ता आनन्दबोधीति जातो, जा. अट्ठ. 2.266. आनन्दयक्ख पु., एक यक्ष का नाम - स्स ष. वि., ए. व. - आनन्दयक्खस्स भवनहाने पतिष्ठितविहारे, अ. नि. अट्ट. 2.353. आनन्दवग्ग प., अ. नि. के एक वर्ग का शीर्षक जिसमें स्थविर आनन्द से सम्बद्ध विवरण हैं, अ. नि. 1(1).246-259. आनन्दसुत्त नपुं. स. नि. तथा अ. नि. के अनेक सुत्तों का शीर्षक, स. नि. 1(1).218; 231; 2(1).24; 35; 36-37; 96-97; 172-73; 2(2).365-366; 3(2).356-357; 357; 398402; 403; 427-429; अ. नि. 1(1).156-158; 2(1).124125; 2(2).74-75; 3(1).234-235; 3(2).62-63; 126-129. आनन्दसुरिय पु., म्या-मां के एक राजकुमार का नाम - यो प्र. वि., ए. व. - आलोडहचञसू रो पुत्तो आनन्दसुरियो नाम, सा. वं. 86(ना.). आनन्दसेट्ठि पु., श्रावस्ती का एक अत्यधिक समृद्ध एवं महाकृपण सेठ - सावत्थियं किर आनन्दसेट्टि नाम चत्तालीसकोटिविभवो, महामच्छरी अहोसि, ध. प. अट्ठ. 1.264-266; - वत्थु नपुं., ध. प. अट्ठ. के एक कथानक का शीर्षक, ध. प. अट्ठ. 1.264-266. आनन्दा स्त्री., राजा ओक्काक की पांच पुत्रियों में से एक - ... पञ्च धीतरो पिया, सुप्पिया, आनन्दा, विजिता, विजितसेनाति, दी. नि. अट्ठ. 1.209. आनन्दाचरिय पु., सच्चसङ्केप के लेखक श्रीलङ्का के भिक्षु चुल्ल धम्मपाल के आचार्य आनन्द - स्स ष. वि., ए. व. - आनन्दाचरियस्स जेट्ठसिस्सो चुल्लधम्मपालो नामाचरियो सच्चसङ्के पं अकासि गा. वं. 60(रो.). आनन्दि आ + नन्द का अद्य., प्र. पु.. ए. व., आनन्दित हुआ, प्रसन्न हुआ - आनन्दि वित्ता सुमना, जा. अट्ठ. 7.374; आनन्दि वित्ता पपीता, तदे.; आनन्दि वित्ता सुमनाति... अतिविय नन्दीति अत्थो, जा. अट्ठ. 7.375. For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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