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अज
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अजटाकास पालसञी पु., अजपाल की संज्ञा वाला, अजपाल नाम से रुप्पपातउकुटिकप्पधानकण्टकापस्सयादिभेदं सु. नि. अठ्ठ. जाना गया - जिनो प्र. वि., ब. व. - वटस्स मूले 2.217. अजपालसञिनो, दा. वं. 1.55; - पालिका स्त्री., छाग या अजगर पु., [अजगर]. एक बड़ा सांप, जो बकरे को निगल बकरा पालने वाली - अञ्जतरा अजपालिका पस्सित्वा, जाता है (इसे पाषाण-सर्प भी कहते हैं)- वाहसोजगरो भवे. पारा. 44; - भूत त्रि., छाग के रूप में जन्मग्रहण करने अभि. प. 651; - रा प्र. वि., ब. व. - सप्पा अजगरा नाम, वाला - तानं पु., ष. वि., ब. व. - अजानं सतं अजभूतानं अविसा ते महब्बला ..., जा. अट्ठ. 7.263; - स्स ष. वि., ..... स. नि. 1(2).169; - युद्ध नपुं.. [अजयुद्ध], बकरों का ए. व. - अजगरस्स एक अङ्ग गहेतब्बं मि. प. 329; - युद्ध, बकरों की लड़ाई - अजयुद्ध मेण्डयुद्धं..., दी. नि. परिवारित त्रि., अजगरों से घिरा हुआ - तो पु., प्र. वि., 1.6; महानि. 270; - यूथ नपुं० [अजयूथ], बकरों का ए.व. - अजगरपरिवारितो विय कोत्थुको, मि. प. 20; - समूह, बकरों का झुण्ड -थं द्वि. वि., ब. क. - अजपालब्राह्मणोपेत पु., अजगर के रूप में प्रेत - अजगरपेतं नाम अद्दस, महन्तं अजयूथं गहेत्वा ... अजयूथं पटिजग्गन्तो, जा. अट्ठ. ध. प. अट्ठ. 2.35; - पेतवत्थु नपुं., ध, प. अट्ठ. के एक 3.355; -थेन तृ. वि., ए. व. - ब्राह्मणो अजयूथेन, पहूतेजो कथानक का शीर्षक, ध. प. अट्ठ. 2.35-37; - मुख नपुं.. वने वसं जा. अट्ठ. 3.355; - रथ पु., [अजरथ], बकरों अजगर का मुंह - अजगरमुखेनेव अजगरमुखं ... परिवत्तित्वा, के द्वारा खींचा जानेवाला रथ - थे सप्त. वि., ए. व. - मि. प. 279; - मेदा स्त्री., अजगर की चरबी या वसा - दं कदाहं अजरथे च, सन्नद्धे उस्सितद्धजे ... पहाय द्वि. वि., ए. व. - तेसं अजगरमेदं अच्चहासि बहुत्तसो, जा. पब्बजिस्सामि, जा. अट्ठ. 6.57-58; अजरथमेण्डरथमिगरथे अट्ठ. 3.427; अजगरमेदन्ति अजगरानं मेदं, जा. अट्ठ. 3.428. सोभनत्थाय योजेन्ति, जा. अट्ठ. 6.64; - राज पु. [अजराज], अजच्च त्रि., जच्च का निषे., [अजात्य], हीन जन्म वाला, बकरों का राजा या स्वामी- यं नु सम्म अहं बालो, अजराज नीच जन्म में उत्पन्न - च्चं पु.. वि. वि., ए. व. - विजानहि, जा. अट्ठ. 3.245; -- लक्ख ण नपुं, तत्पु. स., जातिमन्तं अजच्चञ्च, अहं उजुगतं नरं जा. अट्ठ. 6.121, बकरों के लक्षण या इन लक्षणों को बतलाने वाली विद्या - अजज्जर त्रि., जज्जर का निषे०, [अजर्जर], शा. अ. वह, गोलक्खणं अजलक्खणं मेण्डलक्खणं ..., दी. नि. 1.9; जो जर्जर या जीर्ण नहीं है, अविनाशी, ला. अ. निर्वाण, महानि. 281; - लण्डिका स्त्री., तत्पु. स., बकरों की लेंडी जो कभी जर्जर नहीं होता - रं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - का पिण्ड, बकरे की लेंडी - नाळिमत्ता सुक्खा अजलण्डिका, अजज्जरञ्च वो, भिक्खवे, देसेस्सामि अजज्जरगामिञ्च जा. अट्ठ. 1.401; सक्खिस्ससि तस्स मुखे नाळिमत्ता मग्गं, स. नि. 2(2).341-42; अजज्जरं धुवं अपलोकितं. अजलण्डिका खिपितु न्ति, ध. प. अट्ठ. 1.289; - वत त्रि., अनिदस्सनं निप्पपञ्चं सन्तं, नेत्ति. 46; उप्पादजराहि कतिपय तापसों की बकरों के समान जीवन-यापन करने अनब्भाहतत्ता अजज्जर, नेत्ति. अट्ठ. 245. की प्रवृत्ति - अजवतगोवता हुत्वा पुत्तं अलभित्वा उय्यानं अजज्जित नपुं., जज्जित का निषे०, भोजन से अपने को दूर अगमंसु, जा. अट्ठ. 4.283; - विसाण-बद्धिक त्रि., बकरे रखने का अभ्यास, भोजन का परिवर्जन, निराहार की दशा के शृंग की तरह कोनों वाला जूता - का स्त्री., द्वि. वि., - अहञ्चेव खो पन सब्बसो अजज्जितं पटिजानेय्यं, म. नि. ब. व. - अजविसाणबद्धिका उपाहनायो धारेन्ति, महाव. 1.313; अजज्जितान्ति अभोजनं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 259; - वीथि स्त्री., [अजवीथि], शा. अ. बकरों के चलने 1(2).186; पाठा. अजद्धकं. योग्य मार्ग, ला. अ. मूल-नक्षत्र से लेकर उत्तरासाळ्ह तक __ अजञ त्रि., जञ का निषे. [अजन्य], 1. मनुष्यों के लिए सूर्य तथा चन्द्रमा के मार्ग का भाग, ग्रीष्म ऋतु का काल अयोग्य, भयावह, प्रतिकूल - अं द्वि. वि., ए. व. - अजज - सा वीथि उदकाभावेन अजानुरूपताय अजवीथीति समा जञ्जसवातं, असुचिं सुचिसम्मतं, जा. अट्ठ. 2.361; अजञ्ज गता, सारत्थ. टी. 1.230; - सद्द पु., [अजशब्द], बकरों की जञ्जससातन्ति पटिकूलं अमनापमेव, तदे.; 2. नपुं.. अनहोनी, चिल्लाहट, बकरों की चीख, - यदा अजसदं कत्वा बलि अपशकुन, दुर्लक्षण - इति वित्थि अजयं च उपसग्गो उपहरन्ति, तदा सो तुस्सति, उदा. अट्ठ. 52; - सील नपुं.. उपद्दवो, अभि. प. 401. बकरों के समान तापसों के रहने की प्रवृत्ति, आदत या अजटाकास पु., कर्म. स., खुला स्थान, खुली जगह - सं साधना का प्रकार - अजसीलगोसीलकुक्कुरसीलपञ्चातपम- वि. वि., ए. व. - चत्तारो च आरुप्पे विनिविज्झित्वा
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