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अच्चायिक
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अच्चि/अच्ची
व. - वीणाय तन्तियो नेव अच्चायता होन्ति, महाव. वि., ए. व. - यं अस्स गामतो नेव अविदूरे न अच्चासन्ने, 254.
महाव. 44. अच्चायिक त्रि., [आत्ययिक], 1. अपरिहार्य, शीघ्र करणीय, अच्चासरति अति + आ + /सर का वर्त, प्र. पु., ए. व., बिना विलम्ब के तुरन्त सम्पादनीय - कं नपुं.. प्र. वि., ए. शा. अ. बहुत आगे या दूर तक चला जाता है, ला. अ. व. - सचे पनस्स अच्चायिकं करणीयं, महाव. 183; - निर्धारित सीमा अथवा नियमों का अतिक्रमण करता है - कानि ब. व. - तीणिमानि, भिक्खवे, कस्सकस्स गहपतिस्स अच्चारद्धवीरियेन हि उद्धच्चे पतन्तो अच्चासरति .... सु. अच्चायिकानि करणीयानि, अ. नि. 1(1).273; अच्चायिकानीति नि. अट्ठ. 1.19. अतिपातिकानि अ. नि. अट्ठ. 2.213; 2 असामान्य, अत्यधिक, _ अच्चासरा स्त्री., अच्चासरति से व्यु., वञ्चना, ठगी, प्रचुर - केन पु./नपुं, तृ. वि., ए. व. - अच्चायिकेन लुद्देन, कूटसंरचना, छल-प्रपञ्च, माया - या एवरूपा माया मायाविता यो नो गावोव सुम्भति, जा. अट्ठ. 7.319.
अच्चासरा वञ्चना निकति ... अयं वुच्चति माया, विभ. 413; अच्चारद्ध त्रि., [अत्यारब्ध], अत्यन्त कष्ट-साध्य, सुदृढ़, कत्वा पापं पुन पटिच्छादनतो अतिच्च आसरन्ति एताय कठोर, प्रबल - म्हि नपुं., सप्त. वि., ए. व. - अच्चारद्धम्हि सत्ताति अच्चासरा, विभ. अट्ठ. 465. वीरियम्हि ..., थेरगा. 638; - द्धन तृ. वि., ए. व. - अच्चाहित त्रि., [अत्यहित], अत्यधिक अहितकारक - तं अच्चारद्धेन वीरियेन तेमासं कम्मट्ठानं भावेत्वा .... जा. अट्ठ. नपुं., प्र. वि., ए. व. - अच्चाहितं कम्मं करोसि लई, जा. 4.119; - विरिय नपुं., अत्यन्त प्रबल पराक्रम, दृढ़ उत्साह अट्ठ. 4.42; अच्चाहितन्ति हितातिक्कन्तं, अतिअहितं वा, - अच्चारद्धविरियं उद्धच्चाय संवत्तति, महाव. 2543; - जा. अट्ठ. 7.204. विरियता स्त्री., भाव. [अत्यारब्धवीर्यत्व], अत्यधिक वीर्यता, अच्चि/अच्ची स्त्री./पु., [अर्चिष], लपट, आग की लौ या प्रबल पराक्रम से युक्त होने की दशा, प्रयास में अशिथिलता चिनगारी, ज्वाला की शिखा, प्रकाशकिरण - अथ सिखा - यस्मि समये अच्चारद्धवीरियतादीहि उद्धतं चित्तं होति जाला अच्चि वा पुमे, अभि. प. 35; जालंसुस्वच्चि नो पुमे, ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).308.
अभि. प. 1102; अच्ची यथा वातवेगेन खित्ता, सु. नि. 1080; अच्चावदति अति + आ + Vवद, वर्त. प्र. पु.. ए. व.. 1. अच्चीति अनलजालक्खन्धो, जा. अट्ठ. 5.202; - जाला चापलूसी करके वश में कर लेता है, मन्त्रमुग्ध कर देता है, स्त्री.. [अर्चिज्वाला], देदीप्यमान आग की लौ, चमकती हुई मीठी बोली बोलकर बहका देता है या ठग लेता है - ... प्रकाश-किरण - अच्चिजालामालके ... पच्चति ..., मि. प. चत्तालीसाय... ठानेहि इत्थी परिसं अच्चावदति ..., ध. प. 322; - बद्ध/अच्छिबद्ध त्रि., [अर्चिबद्ध]. शा. अ. किरणों अट्ठ. 2.396; 2. विवाद में अत्यधिक बोलता है, विवाद में मे बंधा हुआ, ला. अ. लड़ियों या पंक्तियों में विभक्त, हल्ला करते हुए दूसरे को पीछे छोड़ देता है - दन्ते वर्त. चौकोर आकृति के टुकड़ों में विभक्त, मर्यादाओं में बंधा हुआ कृ., पु., द्वि. वि.. ब. व. - ... अञ्जमझं सुतेन अच्चावदन्ते - अद्दसा खो भगवा मगधखेतं अच्छिबद्धं पालिबद्धं मरियादबद्धं ...., स. नि. 1(2).182; अच्चावदन्ते ति अतिक्कम्म वदन्ते, ..., महाव. 378; अच्छिबद्धन्ति चतुरस्सकेदारकबद्धं, महाव. सुतपरियत्तिं निस्साय अतिविय वादं करोन्तेति अत्थो, स. अट्ठ. 384; - मन्तु 1. त्रि., [अर्चिष्मत], चमकदार, प्रभास्वर, नि. अट्ठ. 2.154; 3. हंसी या खिल्ली उड़ाया - थ अद्य.. लपटों से युक्त, देदीप्यमान - मा पु.. प्र. वि., ए. व. -. प्र. पु., ए. व. - भिक्खुनियो अच्चावदथा ति, पाचि. 300. .. अग्गि अच्चिमा चेव वण्णवा च पभस्सरो .... म. नि. 2. अच्चासन नपुं.. [अत्यशन], अधिक रूप में ग्रहण किया गया 367; - न्तं द्वि. वि., ए. व. - एवं सब्बङ्गसम्पन्न, अच्चिमन्तं भोजन - स्स ष. वि., ए. व. - अच्चासनस्स पुरिसो, पभस्सरं जा. अट्ठ. 7.172; - न्तो ब. व. - अच्चिमन्तो पायासस्सापि तप्पतीति, जा. अट्ठ. 1.184; अच्चासनस्साति महब्भया, जा. अट्ठ. 5.258; 2. अग्नि - हुतावहोच्चिमा, करणत्थे सामिवचनं, अतिअसनेन अतिभत्तेनाति अत्थो, तदे. अभि. प. 34; - मतो ष. वि., ए. व. - अच्चि अच्चिमतो 1.184.
लोके, ध. स. अट्ठ. 335; 3. पु.. एक पौराणिक राजा का अच्चासन्न त्रि., [अत्यासन्न], अत्यधिक समीप, बहुत नाम - एकसतं च राजानो अच्चिमस्सासि अत्रजा, दी. वं. अधिक निकट - नं नपुं, प्र. वि., ए. व. - सेनासनं 3.14; - मती स्त्री., वेस्सवण की एक पुत्री का नाम - नातिदूर होति नाच्चासन्नं..., अ. नि. 3(2).13; - न्ने सप्त. ... अच्चिमती राजवरस्स सिरीमतो, सुता च रुजो वेस्सवणरस
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