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अहिंसन्त
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अहिगुण्ठिकजातक कत्वा पच्छा दिट्ठ अदिट्ठन्ति विय अहिंसकोति वोहरिंसु. -य' सप्त. वि., ए. व. - यस्स सब्बमहोरत्तं अहिंसाय रतो थेरगा. अट्ठ. 2.275; अहिंसको ति मे नामं हिंसकस्स पुरे मनो, स. नि. 1(1).241; अहिंसायाति करुणाय चेव सतो, म. नि. 2.315; 2. भारद्वाज का दूसरा नाम, क्योंकि करुणापुब्बभागे च, स. नि. अट्ठ. 1.268; - य तृ. वि., ए. उन्होंने भगवान बुद्ध से अहिंसक के विषय में प्रश्न पूछा था व. - अहिंसाय चर लोके, पियो होहिसि मंमिव, जा. अट्ठ. - नामेन वा एस अहिंसको, गोत्तेन भारद्वाजो, स. नि. अट्ठ. 4.64; अहिंसायाति अहिंसाय समन्नागतो हुत्वा लोके चर, 1.203.
जा. अट्ठ. 4.65. अहिंसन्त त्रि., हिंस (हिंसा करना) के वर्त. कृ. का निषे. अहिंसानिग्गहपञ्ह पु., मि. प. में राजा मिलिन्द द्वारा [अहिंसत्], हिंसा नहीं कर रहा, हिंसक मनोवृत्ति से मुक्त अहिंसा एवं निग्गह-विषयक बुद्धवचनों की असङ्गति के रहने वाला, पीड़ा न पहुंचाने वाला, हानि न पहुंचाता हुआ विषय में पूछा गया प्रश्न - हो प्र. वि., ए. व, - - संपु., प्र. वि., ए. व. - अहिंसं सब्बगत्तानि सल्लं में अहिंसानिग्गहपञ्हो एकादसमो, मि. प. 179-180. उद्धरिस्सति, थेरगा. 757.
अहिंसारतिनी स्त्री., ब. स. [अहिंसारतिका], अहिंसा में अहिंसककुल नपुं.. तत्पु. स. [अहिंसककुल], हिंसा से । रमण करने वाली, अहिंसक चित्तवृत्ति के विकास में लगी बिलग रहने वाला कुल या वंश - ले सप्त. वि., ए. व. - हुई - साहं अहिंसारतिनी, कामसा धम्मचारिनी, जा. अट्ठ. मयं अहिंसककुले जाता, न सक्का आचरियाति, म. नि. 4.285; अहिंसारतिनीति अहिंसासङ्घाताय रतिया समन्नागता, अट्ठ. (म.प.) 2.235.
जा. अट्ठ.4.286. अहिंसकपज्ह नपुं., भारद्वाजगोत्रीय ब्राह्मण द्वारा बुद्ध से अहिक त्रि., अह से व्यु., केवल स. उ. प. के रूप में प्राप्त पूछा गया अहिंसक-विषयक प्रश्न - ऽहं द्वि. वि., ए. व. - [आहिक]. दिनों वाला, एकाहिक, द्वीहिक, पञ्चाहिक, पञ्चमे अहिंसकभारद्वाजोति भारद्वाजोवेस. अहिंसकपञ्हं पन सत्ताहिक आदि के अन्त. द्रष्ट.. पुच्छि, तेनस्सेतं सङ्गीतिकारेहि नाम गहितं, स. नि. अट्ठ. अहिकञ्चुक पु., तत्पु. स. [अहिकञ्चुक]. सांप की केंचुली 1.203; -- सुत्त नपुं.. स. नि. का एक सुत्त, स. नि. या त्वचा - स्स ष. वि., ए. व. - करण्डाति इदम्पि 1(1).191-92; स. नि. अट्ठ. 1.203.
अहिकञ्चुकस्स नाम, न विलीवकरण्डकस्स, अहिकञ्चुको अहिंसकहत्थ त्रि., ब. स. [अहिंसकहस्त], हिंसा न करने हि अहिना सदिसोव होति, दी. नि. अट्ठ. 1.180; तुल. वाले हाथों से युक्त, हिंसाविरत हाथों वाला - त्थो पु.. प्र. करण्ड, वि., ए. व. - अदुब्भपाणीति अहिंसकहत्थो हत्थसंयतो, पे. अहिकुणप नपुं., कर्म. स. [अहिकुणप, त्रि., पु., नपुं.]. व. अट्ठ. 102.
सड़ा-गला सांप, मुर्दे जैसी दुर्गन्ध देने वाला सांप, बदबूदार अहिंसन नपुं., [अहिंसन], हिंसा न करना - नेन सांप का मृत शरीर - पं प्र. वि., ए. व. - तमेनं सामिका त. वि., ए. व. - तत्थ अहिंसाति अहिंसनेन, ध. प. अट्ठ. अहिकुणपं वा कुक्कुरकुणपं वा मनुस्सकुणपं वा, ..., म. नि. 2.229.
1.38; तत्थ कुणपन्ति मतकलेवर, अहिस्स कुणपं अहिकुणपं. अहिंसयन्त त्रि., हिंस के ना. धा. के वर्त. क. का निषे०, म. नि. अट्ठ (मू.प.) 1(1).159; - पेन तृ. वि., ए. व. - हिंसा नहीं कर रहा - यं पु., प्र. वि., ए. व. - अहिंसयं परं इत्थी वा पुरिसो वा ... अहिकुणपेन वा कुक्कुरकुणपेन वा लोके, पियो होहिसि मामकोति, मि. प. 179.
मनुस्सकुणपेन वा कण्ठे आसत्तेन अट्टिमेय्य .... म. नि. अहिंसा स्त्री., हिंसा का निषे., तत्प. स. [अहिंसा], प्राणियों 1.170; अहिकुणपेनातिआदि अतिजेगुच्छपटिकूलकुणपकी हत्या या उन्हें किसी प्रकार की पीड़ा या हानि पहुंचाने दस्सनत्थं वुत्तं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).404. से चित्त की विरति, करुणा-भावना, करुणा उत्पन्न होने से अहिकुण्ठिक/अहिकुण्डिक/अहिगुण्टिक द्रष्ट. पूर्व करुणा की आधारभूत चित्तवृत्ति - सा प्र. वि., ए. व. अहिगुण्ठिक के अन्त. (आगे). - सभि दानं उपअत्तं, अहिंसा संयमो दमो, स. नि. अहिगुण्ठिक पु., अहितुण्डिक का अप., अहितुण्डिक के 1(1).176; अहिंसाति करुणा चेव करुणापुब्बभागो च, अ. अन्त.. द्रष्ट. (आगे). नि. अट्ठ. 2.134; अहिंसा सब्बपाणानं, अरियोति पवुच्चति, अहिगुण्ठिकजातक नपुं.. अहितुण्डिकजातक के अन्त. द्रष्ट. ध. प. 270; तत्थ अहिंसाति अहिंसनेन,ध. प. अट्ठ. 2.229 (आगे).
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