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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अविपस्सनापादकत कुसलधम्मे अविपस्सन्तस्स, अनेसन्तस्स अगवेसन्तस्साति अत्थो, अ. नि. अट्ठ. 3.28. अविपस्सनापादकत्त नपुं०, भाव० [अविपश्यनापादकत्व], विपश्यना भावना का व्यावहारिक अभ्यास न करना ता प्र.कि. ए. व. न हि अधिमानिकस्स भिक्खुनो झानं सल्लेखो वा सल्लेखपटिपदा वा होति, करमा ? अविपस्सनापादकत्ता म. नि. अड्ड. (यू.प.) 1(1).194. - www.kobatirth.org पु. 3. 640 0 अविपाक 1. पु. विपाक का निषे, तत्पु, स. [अविपाक]. विपाक का अभाव, नहीं पका हुआ होना, पकने की अवस्था का न होना, ठीक से हज़म न होना, अजीर्णता केन तृ. वि. ए. व. विसमकोएस्स मन्ददुब्बलगहणिकस्स अविपाकेन जीवितं हरति मि० प० 247; 2. त्रि०, ब० स० [ अविपाक ], विपाक को प्राप्त न होने वाला, फल या परिणाम नहीं देने वाला, अव्याकृत - कं नपुं. प्र. वि., ए. व. अविपाक अव्याकतं अभि, अव. 2 का पु. प्र. वि. व. व. अतीता अविपक्कविपाका धम्मा- ते अत्थिति, कथा. 132; अविपाकाति इदं अव्याकतान वसेन चोदेतु वृतं कथा. अड्ड. 152, जिन पु. विपाकजिन का निषे [बौ. सं. अविपाकजित् ]. अज्ञानी जन, पृथग्जन, कर्मों के विपाक को नहीं जीता हुआ, कामनाओं के साथ कर्म करने वाला नस्सष. वि., ए. पुथुज्जनस्स अनोधिजिनस्स अविपाकजिनस्स अनादीनवदस्साविनो अस्सुतवतो पुथुज्जनस्स. म. नि. 3.266; अविपाकजिनस्साति एत्थपि आयतिं विपाकं जिनित्वा ठितत्ता खीणासवाव विपाकजिनो नाम तस्मा अखीणासवरसेवाति अत्यो म. नि. अ. (उप. प.) 3.196; ता स्त्री. भाव. [अविपाकता], परिपक्व नहीं होना, विपाक से रहित अवस्था य तृ. वि. ए. द. ते पन न अत्तनो पतिमाननस्स अविपाकताय न अदक्षिणेय्यताय. मि. ए. 226 सभाव त्रि. ब. स. [ अविपाकस्वभाव]. स्वभाव से ही विपाक नहीं देने वाला तो प. वि. ए. व. अविज्ञतिजनता हि अविपाकसभावतो, अभि. अब 9... मनोद्वारसङ्घातस्स कम्मद्वारस्स वसेन च अप्पवत्तनतो अविपाकसभावतोच अकम्मभावतो, अभि, अव. पु. टी. 10: व. कारह त्रि.. विपाकारह का निषे, [अविपाकार्ह ], किसी भी प्रकार का विपाक उत्पन्न करने में अक्षम हं नपुं. प्र. वि., ए. व. तदुभयविपरीतलक्खणमब्याकतं अविधाकारहं वा अभि. अव. 3. अविपाकारनं विपाकरस अननुच्छविक, अभि. टी अव. अविप्पटिसार अविष्पकत त्रि वि + प + √कर के भू. क. कृ. का निषे [ अविप्रकृत] समाप्ति तक न पहुंचा हुआ, अपरिसमाप्त, अपरिनिष्ठित वच नपुं. कर्म. स. [ अप्रकृतवचस् ], प्रकृत या वर्तमान समय से भिन्न काल का सूचक वचन अविष्यकतवचो च सियुं अत्थानुरूपतो. सद 1.183. अविष्पकिष्ण त्रि वि पकिर के भू क. कृ. का निषे. [ अविप्रकीर्ण], नहीं छितराया हुआ, नहीं बिखरा हुआ, स्थिर, एकाग्र ण्णा पु. प्र. वि., ब. व. तस्मा यस्स धम्मस्सानुभावेन एकारम्मणे चित्तचेतसिका सगं सम्मा च अविक्खिपमाना अविप्पकिण्णा च हुत्वा तिट्ठन्ति ... विसुद्धि. 1.83 अविष्यकण्णाति अविसटा विसुद्धि. महाटी 1.101 - ता स्त्री. भाव [अविप्रकीर्णता] स्थिरता, बिखरा हुआ न होना समाधानं समाधि, कायकम्मादीनं सम्मा पयोगवसेन अविप्पकण्णता ति अत्थो, सद्द. 2.479. अविप्पटिसार पु. विप्पटिसार का निषे [ अविप्रतिसार]. शोक या पश्चात्ताप का अभाव रो प्र. वि., ए. व. लोकुत्तरो सीलवतो अविप्पटिसारो जायति, नेत्ति, 56; अधम्मनुदितस्स आवुसो भिक्खुनो पञ्चहाकारेहि अविष्यटिसारो उपदहातब्बों अ. नि. 2 ( 1 ) 182; अविष्यटिसारो उपदहातब्बोति अमहुभावो उपनेतब्बो, अ. नि. अड. 3.61; राय च. वि. ए. व. अल ते अविष्यटिसाराय अ. नि. 2 ( 1 ) . 182 कर त्रि. [अविप्रतिसारकर ], शोक या दुःख को उत्पन्न न करने वाला, पश्चात्ताप के भाव को उत्पन्न न करने वाला - रं नपुं. प्र. वि., ए. व. - पच्छापि अविप्पटिसारकरं भविस्सतीति, चूळव, 400 स्थ त्रि. ब. स. [अविप्रतिसारार्थ] पश्चात्ताप या मानसिक अनुताप के अभाव को लाने वाला, मानसिकप्रमोद को प्रयोजन बनाने वाला स्थानि नपुं. प्र. वि. ए. व. अविष्पटिसारत्थानि ... अविष्यटिसारानिसंसानी ति. अ. नि. 3(2). 2; अमङ्कुभावस्स अविप्पटिसारस्स अत्थाय संवत्तन्तीति, अविप्पटिसारत्थानि, अ. नि. अड. 3.285. विपन्न त्रि. तत्पु. स. [ अविप्रतिसारविपन्न ], मानसिकउल्लास को खो चुका, मानसिक प्रमोद से वञ्चित, मानसिक शीतलता से रहित स्स पु०, ष. वि., ए. व. - अविप्यटिसारे असति अविप्पटिसारविपन्नस्स हतूपनिस होति पामोज्ज, अ. नि. 3 ( 2 ) .4; - रानिसंस त्रि.०, ब० स० मानसिक प्रमोद के लाभ वाला सानि नपुं. प्र. वि., ब० व. अविप्पटिसारत्थानि अविप्यटिसारानिसंसानीति, अ. नि. 3(2)2 ... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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