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अविपच्चनीकसातता
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अविपस्सक अविपच्चनीकसातता स्त्री., भाव., विपरीत या विरुद्ध धर्म त्रि., [अविपरीतसंज्ञिन], धर्मों के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान के प्रति आस्वाद या रुचि का अभाव - सोवचस्सता रखने वाला, धर्मों के अनित्य, दुःख और अनात्मक लक्षणों अप्पटिकूलग्गाहिता अविपच्चनीकसातता सगारवता सादरियं का ज्ञान रखने वाला - चिनो पु., प्र. वि., ब. व. - सादरता सप्पस्सिवता, ध. स. 1334; पु. प. 130.
सच्चसञिनो ... याथावसञिनो अविपरीतमना अविपत्ति स्त्री., [अविपत्ति], विपत्ति या संकट का अभाव - अविपरीतसञिनो वदन्ति, महानि. 44, - सभाव पु.. या तृ. वि., ए. व. - दुतिये अजरसाति अजीरणेन, [अविपरीतस्वभाव], धर्मों का वास्तविक स्वभाव - वो प्र. अविपत्तियाति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 1.83.
वि., ए. व. - अभिमुखं आणेन सम्मा एतब्बो अभिसमेतब्बोति अविपरिणामधम्म त्रि., ब. स. [अविपरिणामधर्मन], अभिसमयो, धम्मानं अविपरीतसभावो, उदा. अट्ठ. 17; - अपरिवर्तनीय, परिवर्तन न करने योग्य, संसारचक्र में तामिलाप पु., तत्पु. स. [अविपरीताभिलाप], यथार्थ कथन, संसरण से मुक्त, नित्य - म्मो पु.. प्र. वि., ए. व. - सो । सत्य का कथन - पो प्र. वि., ए. व. - धम्माभिलापोति निच्चो धुवो सरसतो अविपरिणामधम्मो सस्सतिसमं तथेव अत्थव्यञ्जनको अविपरीताभिलापो, सारत्थ. टी. 1.69; - ठस्सति, दी. नि. 1.16; जरावसेनापि विपरिणामस्स अभावतो तावबोध पु., कर्म. स. [अविपरीतावबोध], यथार्थ ज्ञान, अविपरिणामधम्मोति, दी. नि. अट्ठ. 1.96; - म्म नपुं., प्र. सही समझ, सम्यक् ज्ञान, भ्रम से मुक्त ज्ञान - धं द्वि. वि., वि., ए. व. - अच्चुतन्ति निच्च धुवं सस्सतं ए. व. - सच्चादिके च सुद्धिमग्गे अत्तनो अविपरीतावबोध अविपरिणामधम्मन्ति निब्बानपदमच्चुतं, चूळनि. 115; निब्बानं सब्बाकारतो विदित्वा .... उदा. अट्ठ. 61. निच्चं धुवं सस्सतं अविपरिणामधम्मन्ति असंहीरं असंकुप्पक, अविपल्लत्थ त्रि., विपल्लत्थ का निषे. [अविपर्यस्त], भीतर चूळनि. 207; इदं निच्चं, इदं धुवं, इदं सस्सतं, इदं । में उलट-पुलट से रहित, अपरिवर्तित, विपरीत अथवा अविपरिणामधम्मान्ति, नेत्ति. अट्ठ. 363.
अवास्तविक रूप में न समझा हुआ - त्था स्त्री, प्र. वि., अविपरीत त्रि., विपरीत का निषे., तत्पु. स. [अविपरीत]. ए. व. - एवम्पिस्स एसा, आनन्द, यथाभुच्चा अविपल्लत्था यथार्थ, वास्तविक, पूर्ण, सत्य, अप्रतिकूल - तो पु., प्र. वि., परिसुद्धा सुञतावक्कन्ति भवति, म. नि. 3.149, 152; - ए. व. - इति सब्बलोकाभिभवने तथो अविपरीतो । चित्त ब. स. [अविपर्यस्तचित्त]. विपरीत रूप में धर्मों का देसनाविलासमयो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).56; - तं द्वि. ग्रहण न करने वाले चित्त से युक्त, यथार्थग्राही चित्त वाला वि., ए. व. - विचक्खणताय अनूनाधिक अविरीतञ्च गहेत्वा - स्स पु., ष. वि., ए. व. - कस्स हि नाम, भन्ते, अबालस्स वित्थारिकं करोति, सु. नि. अट्ठ. 1.199; - दस्सन त्रि., ब. अदुवस्स अमूळहस्स अविपल्लत्थचित्तस्स आयस्मा सारिपुत्तो स. [अविपरीतदर्शन], विपरीत रूप में न देखने वाला, धर्मों न रुच्चेय्या ति. स. नि. 1(1).78. के यथार्थ-स्वरूप को देखने वाला, सम्यक दृष्टि वाला - अविपल्लासवचनलेस पु., विपल्लास का निषे. नो पु., प्र. वि., ए. व. - सम्मादिष्टिको खो पन होति [अविपर्यासवचनलेश], अविपर्यस्त वचन का छोटा सा अविपरीतदस्सनो, म. नि. 1.362; - मन त्रि., खण्ड - सेन तृ. वि., ए. व. - वत्तमानस्स पदावयवभूतरस [अविपरीतमनस्], अविपरीत या सत्य मानने वाला - ना मरहसहस्स अविपल्लासवचनलेसेन तुम्हं त्वममसद्देसु पि पु., प्र. वि., ब. व. --- सच्चसचिनो भूतमना... याथावसचिनो विभत्तिविपल्लासो, सद्द. 1.294. अविपरीतमना अविपरीतसञिनो वदन्ति, महानि. 44; - अविपस्सन्त त्रि., वि + दिस के वर्त. कृ. का निषे. वचन नपुं.. कर्म. स. [अविपरीतवचन], सत्य कथन, [अविपश्यत्]. यथार्थ रूप में नहीं देख रहा, समभाव से भरे यथार्थ वचन, अनुकूल वचन - नं प्र. वि., ए. व. - तं चित्त से सूक्ष्म रूप में न देखने वाला, धर्मों की विपश्यना सभाववचन असेसवचनं ... याथावचनं, अविपरीतवचनं में अक्षम - स्स पु., ष. वि., ए. व. - कुसले धम्मे इसिवचनं ... सम्मासम्बुद्धवचन, मि. प. 203; - सञआ अविपस्सन्तस्स, अनेसन्तस्स अगवेसन्तस्साति अत्थो, अ. स्त्री., तत्पु. स. [अविपरीतसंज्ञा], यथार्थता या वास्तविकता नि. अट्ठ. 3.28. का ज्ञान, अनित्य, दुःख एवं अनात्म, इन तीन लक्षणों का अविपस्सक त्रि., [अविपश्यक]. उपरिवत् - स्स पु., ष. ज्ञान - ञा प्र. वि., ब. व. - तिस्सो अविपरीतसा - वि., ए. व. - अविपस्सकस्स कुसलानं धम्मानं... अननुयुत्तरस अनिच्चसा दुक्खसआ अनत्ता, नेत्ति. 104; - सञी विहरतो, अ. नि. 2(1).65; अविपस्सकरस कुसलानं धम्मानन्ति
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