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अलुत्त-समास 594
अलेप अलुत्त-समास पु., कर्म. स. [अलुप्तसमास], ऐसा समासपद, ससण्ठितमकम्पितमलुळितसभावपरिसद्धाचारेन भवितब्बं मि. जिसके पूर्वपद की विभक्तियों का लोप न हुआ हो - सो प्र. प. 351. वि., ए. व. - तस्सपापियसिकाकम्मन्ति च अलुत्तसमासोयेव, अलूख त्रि., लूख का निषे. [अरुक्ष], नहीं रूखा, रूखेपन तेनाह इदं ही ति आदि, वि. वि. टी. 2.210; सो च समासो से रहित, चिकना, साफ-सुथरा - खं नपुं., प्र. वि., ए. व. किच्चवसेन लुत्तसमासो अलुत्तसमासो ति दुविधो, सद्द. - मज्झे कण्हं होति सुकण्हं अलूखं सिनिलु पासादिक 3.745; - से सप्त. वि., ए. व. - ब्राह्मणाति आदिसु दस्सनेय्यं अद्दारिद्वकसमानं, महानि. 261; अलूखन्ति अत्थसमसनं अलुत्तसमासे, सद्द. 3.741.
पासादिक, महानि. अट्ठ. 305. अलुद्ध त्रि., Vलुभ के भू. क. कृ. लुद्ध का निषे. [अलुब्ध]. अलेण 1. नपुं., लेण का निषे०, तत्पु. स. [अलयन], शरण लोभ से रहित, निर्लोभी, लगाव या लालच से मुक्त - द्धो या आश्रय का अभाव, विश्राम या विश्राम-स्थल का अभाव, पु., प्र. वि., ए. व. - अलुद्धो पनायं, भद्दिय, पुरिसपुग्गलो अशरण स्थल, अनाश्रय - तो प. वि., ए. व. - पभङ्गुतो लोभेन अनभिभूतो अपरियादिन्नचित्तो नेव पाणं हनति, अ. अधुवतो अताणतो अलेणतो असरणतो ... आदीनवतो नि. 1(2).222; तत्थ अलोलोति अलुद्धो, जा. अट्ठ. 7.1933; निस्सरणतो तीरेति - अयं तीरणपरिआ, महानि. 38; -द्धा ब. व. - न हि अलुद्धा एवरूपानि कम्मानि करोन्ति, अल्लीयितुं अनरहताय, अल्लीनानम्पि च लेणकिच्चाकारिताय जा. अट्ठ. 4.12; - चित्त त्रि., ब. स. [अलुब्धचित्त]. अलेणतो..., महानि. अट्ठ. 132; मि. प. 392; 2. त्रि., क. लोभमुक्त चित्त वाला, लगाव या लालच से रहित चित्त आश्रय-रहित, शरण न देने वाला, टिकने की जगह से वाला - त्ता पु., प्र. वि., ब. व. - इध पन, भिक्खवे, भिक्खू रहित - णो पु., प्र. वि., ए. व. - अलेणो लोकसन्निवासोति, अलुद्धचित्ता विवदन्ति, चूळव. 197.
पटि. म. 116; अतायनो लोकसन्निवासो, अलेणो, असरणो, अलुब्भन नपुं.. Vलुभ से व्यु. क्रि. ना., लुब्भन का निषे., लोभ असरणीभूतो, उदा. अट्ठ. 113; ख. वह, जिसे कहीं आश्रय या लालच न करना, आसक्ति न रखना - सयं वा न या शरण नहीं मिली है, बेसहारा - णा पु., प्र. वि., ब. व. लुब्मति, अलुब्भनमत्तमेव वा तन्ति अलोभो, ध. स. अट्ठ. - अलेणा अनगारा च, नीलमञ्चपरायणा, पे. व. 120; 172; अभि. अव. (पृ.) 21; - क त्रि., 1. लोभ न करने अब्भाहता दुक्खे पतिहिता अताणा अलेणा असरणा वाला, 2, नपुं., अलोभ, लालच का अभाव - अलोभनिद्देसे असरणीभूता, महानि. 304; - दस्सी त्रि., [अलयनदर्शिन], अलुब्भनकवसेन अलोभो, ध. स. अट्ठ. 193; - ना स्त्री., आश्रय या निवास स्थान को नहीं देख रहा/देख रही - अलुब्भन से व्यु., लोभ या लालच का न होना - यो तस्मिं स्सिनी स्त्री., प्र. वि., ए. व. - परियेसति लेणमलेणदस्सिनी, समये अलोभो अलुमना अलुमितत्तं असारागो असारज्जना, तदा नदी अजकरणी रमेति में थेरगा. 308; अलेणदस्सिनीति ध. स. 32; अलुब्भनाति अलुब्भनाकारो, ध. स. अट्ठ. 1933; वसनट्ठानं अपस्सन्ती, थेरगा. अट्ठ. 2.27. - नाकार पु., निर्लोभता का आचरण - रो प्र. वि., ए. व. अलेप पु., लेप का निषे., तत्पु. स. [अलेप]. लेप का अभाव - अलुब्भनाति अलुभनाकारो, ध. स. अट्ठ. 193.
- पो प्र. वि., ए. व. - तत्थ लेपो च अलेपो च लेपोकासो अलुमित त्रि., Vलुभ के भू. क. कृ., लुब्भित का निषे. च अलेपोकासो च वेदितब्बो, सेय्यथिदं- लेपोति द्वे लेपा [अलुब्ध], लोभ या लालसा से मुक्त, निर्लोभी - स्स पु.. ष. - मत्तिकालेपो च सुधालेपो च, ठपेत्वा पन इमे वे लेपे वि., ए. व. - अलुभितस्स भावो अलुभितत्तं ध. स. अट्ठ. अवसेसो भरमगोमयादिभेदो लेपो अलेपो, पारा. अट्ठ. 2.140; 194; - तं नपुं., भाव., प्र. वि., ए. व. [अलुब्धत्व]. लोभ - पारहो पु., प्र. वि., ए. व. [अलेपार्ह], लेप न करने से मुक्त होना, निर्लोलुपता, निराकांक्षता - यो तस्मिं समये योग्य - थम्भतुलापिट्ठसङ्घाटवातपानधूमच्छिद्दादि अलेपारहो अलोभो अलुब्भना अलुमितत्तं असारागो असारज्जना ओकासो सब्बोपि अलेपोकासोति वेदितब्बो, पारा. अट्ठ. असारज्जितत्तं अनभिज्झा, ध. स. 32; 312.
2.140; -- पोकासो पु., तत्पु. स., प्र. वि., ए. व. अलुळित त्रि., Vलुळ के भू, क. कृ., लुळित का निषे. [अलेपावकाश], लेप करने के लिए अनुपयुक्त स्थल - [अलुलित], नहीं हिलाया हुआ, परिशुद्ध, साफ सुथरा - तत्थ लेपो च अलेपो च लेपोकासो च अलेपोकासो च अलुलितोति न कललीभूतो, महानि. अट्ठ. 304; आपो वेदितब्बो.... सब्बोपि अलेपोकासोति वेदितब्बो, पारा. अट्ठ. सुसण्ठितमकम्पितमलुळितसभावपरिसुद्धो ... अपनेत्वा 2.140.
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