SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगारिक 26 अगेधलक्खण सहधम्मिके वुच्चमाने ... अनादरियता अगारवता तृष्णा का अभाव - अगिद्धिलोमं निस्साय गिद्धिलोभो पहातब्बो. अप्पतिस्सवता-अयं वुच्चति दोवचस्सता, पु. प. 126. म. नि. 2.25. अगारिक/अगारिय पु., [आगारिक], गृहपति, गृहस्वामी, अगिलान त्रि., गिलान का निषे. [अग्लान], वह, जो रोगी गृहस्थ - गहट्ठागारिका गिही, अभि. प. 446; मयं ... न हो, जो रुग्ण न हो, नीरोग, स्वस्थ - नस्स पु., ष. वि., आगारिका नाम उपजानामेतस्स संयमस्स, महाव. 360; ए. व. - न छत्तपाणिस्स अगिलानस्स धम्म देसेस्सामीति तत्थ मुनिनन्ति अगारिकानगारिकसेक्खासेक्खपच्चेकमनीस सिक्खा करणीया, पाचि. 271. पच्चेकमुनि जा. अट्ठ. 3.400; ननु सो अगारिको कामभोगी अगिह /अगह त्रि०, ब. स. [अगृह], शा. अ. घर-रहित, होती ति एवञ्च पन वत्वा, सु. नि. अट्ठ. 2.23; - पटिपत्ति बिना घर-बार का, ला. अ. तृष्णा-रहित, आसक्ति-रहित - सुगति स्त्री., गृहस्थ जीवन में अपनाए गये अच्छे कर्म या हो पु., प्र. वि., ए. व. - सङ्घाटिवासी अगहो चरामि, सु. नि. पद्धतियां - पटिपत्तिसुगतिपि अगारियपटिपत्तिसुगतीति दुवि 4583; - हा ब. व. - ये कामे हित्वा अगहा चरन्ति, सु. नि. ॥ होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).177. - भूत त्रि, 502; अगहोति अगेहो, नित्तण्होति अधिप्पायो, सु. नि. अट्ठ. [आगारिकभूत], गृहस्थ जीवन में रहने वाला, गृही - 2.118; कासायवासिं अगहं चरन्तं. सु. नि. 491. अहम्हि, भन्ते, पुब्बे अगारिकभूतो समानो अबहुकतो अहोसिं. अगुण' त्रि.. ब. स. [अगुण], डोरीरहित धनुष - अगुणं धनु स. नि. 3(1).110, सेय्यथापि पुब्बे अगारिकभूतो, महाव. 21; आतिकुले च भरिया, जा. अट्ठ. 5.430. तुल अगारियभूत; - मुनि पु., गृहस्थ-मुनि - सो पनेस अगुण पु., गुण का निषे. [अगुण]. दोष, दुर्गुण - इदानि अगारियमुनि ... मुनिमुनीति अनेकविधो, जा. अट्ट, 1.116- मया अत्तनो अगुणं परियेसितुं वट्टति, जा. अट्ठ. 2.2; - 117; - रतन नपुं, तत्पु. स., गृहस्थों के बीच रत्न, स्वच्छ गवेसक त्रि.. तत्पु. स., केवल दोषों को खोजनेवाला - निष्कलंक एवं उत्तम गृहस्वामी - पुरिसरतनम्पि दुविध राजा अत्तनो अगुणगवेसको हुत्वा .... जा. अट्ट. 4.332; - अगारिकरतनं अनगारिकरतनञ्च पु. प. अट्ठ. 141; - वादी त्रि., [वादिन], अपने दुर्गुणों को कहनेवाला - अस्थि विभूसा स्त्री०, तत्पु. स. [आगारिकविभूषा], सामान्यजनों नु खो मे कोचि अगुणवादीति परिग्गण्हन्तो ..., जा. अट्ठ. या गृहस्थों की वेश-भूषा या अलंकार - तत्थ विभूसा 2.2. दुविधा अगारिकविभूसा अनगारिकविभूसा च, सु. नि. अट्ठ. अगुत्त त्रि., गुत्त का निषे. [अगुप्त], अरक्षित, असुरक्षित, 1.89; तुल. अगारियरस विभूसा, महानि. 279. अनियन्त्रित, असंयमित - त्ता पु.. प्र. वि., ए. व. - विहारा अगारी त्रि., [आगारिन्]. उपासक, गृहपति, गृहस्वामी, अगुत्ता होन्ति, चूळव. 273; - त्तं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - सामान्यजन, गृहस्थ - रिनो पु., प्र. वि.. ब. व. - अगारिनो चित्तं, भिक्खवे, अगुत्तं ..., अ. नि. 1(1).9; - द्वार त्रि., ब. वा पनुपासकासे, सु. नि. 378; अगारिनो अन्नदपानवत्थदा, स., वह, जिसके इन्द्रियद्वार असुरक्षित हैं, संवररहित, जा. अट्ठ. 3.205; अगारिनोति गहठ्ठा, तदे. 3.205; - रिनी आत्मनियन्त्रण-रहित, आत्मसंयम-रहित - रेहि पु.. तृ. वि., स्त्री., प्र. वि., ए. व., घरनी, गृहिणी, गृहस्वामिनी - ब. व. - इमेहि नवेहि भिक्खूहि इन्द्रियेसु अगुत्तद्वारेहि ... अगारिनी सबकुलस्स इस्सरा, पे. व. 449; अगारिनीति सद्धि चारिक चरसि. स. नि. 1(2).197; - द्वारता स्त्री., गेहसामिनी, पे. व. अट्ठ. 168; वि. व. अट्ठ. 190. भाव., प्र. वि., ए. व. - इन्द्रियेस अगुत्तद्वारता, दी. नि. 3.170. अगिद्ध त्रि., गिद्ध का निषे. [अगृध्र], जो लोभी न हो, लोभ- अगुत्ति स्त्री., गुत्ति का निषे. [अगुप्ति], असुरक्षा, अनियन्त्रण, मुक्त, निर्लोभ, आसक्ति से रहित-द्धो पु., प्र. वि., ए. व. असंवर - इन्द्रियानं अगुत्ति अगोपना अनारक्खो असंवरो - स वे मुनी वीतगेधो अगिद्धो, सु. नि. 212; एवं मुनी ... अगुत्तद्वारता, ध. स. 1352. सन्तिवादो अगिद्धो, सु. नि. 851; - द्धा ब. व. - इसयो अगेधता स्त्री., गेधता का निषे०, भाव॰ [अगृध्रता], आसक्ति जिव्हाविद्येय्यरसे अगिद्धा, जा. अट्ठ. 6.123; - ता स्त्री., या लोभ से मुक्त मन की स्थिति, निर्लोभिता - अगेधता भाव. [अगृध्रता], तृष्णा से मुक्ति की अवस्था, लोभरहितता, निरालयता चागो पहानं ... असदिसता बुद्धधम्मस्स ..., निराकाङ्क्षता, तृष्णाविमुक्तता - तस्मा मत्तता साधु मि. प. 257. भोजनस्मिं अगिद्धता, जा. अट्ठ. 2.244. अगेधलक्खण त्रि., ब. स. [अगृध्रलक्षण], लोभरहित अगिद्धि-लोभ पु., [अगृध्रिलोभ], लोभ तथा तृष्णा का संयमन, प्रकृति या लक्षणों वाला -- णो पु., प्र. वि., ए. व. - तेसु For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy