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अब्मुन्नामेय्यं
459
अब्रह्म
2.54.
अब्मुन्नामेय्यं अभि + उ + नम के प्रेर. का विधि., उ. पु., तब्ब त्रि., सं. कृ. - अभेतब्बोति अभिएतब्बो सम्पटिच्छितब्बो, ए. व., ऊपर की ओर कर दूं, खड़ा कर दूं - यानगतो पारा. अट्ट. 2.193.
समानो पतोदलद्धिं अभुन्नामेय्यं, दी. नि. 1.111. अब्मोकास पु., [अभ्यवकाश], खुला स्थान, खुली जगह, अब्भुय्यात त्रि., अभि + उ + vया का भू. क. कृ., कूच कर खुला आकाश - सो प्र. वि., ए. व. - सम्बाधो घरावासो
चुका, बाहर की ओर निकल चुका, किसी की ओर अभिमुख रजोपथो, अब्भोकासो पब्बज्जा, दी. नि. 1.55; अलग्गनढेन होकर चल चुका - तो पु., प्र. वि., ए. व. - राजा पसेनदि अब्भोकासो वियाति अब्भोकासो, दी. नि. अट्ट, 1.148; - सं सेनाय अभुय्यातो होति, पाचि. 142; अब्भुय्यातोति अभिउय्यातो. द्वि. वि., ए. व. - अब्भोकासन्ति अच्छन्न, दी. नि. अट्ठ. परसेनं अभिमुखो ... निग्गतोति अत्थो, पाचि. अठ्ठ. 113; 1.171; - गत त्रि., खुले स्थान में स्थित - तो पु., प्र. वि., वेदेहिपुत्तो चतरङ्गिनि सेनं सन्नहित्वा ममं अब्भुय्यातो, स. ए. व. - अब्भोकासगतो खो, देव, आरज्ञ्जको नागो ति, म. नि. 1(1).100.
नि. 3.173; सुझागारगतोपि ... अब्भोकासगतोपि, अ. नि. अब्मुसक्कमान त्रि., अभि + उ + सिक्क का वर्त. कृ., 3(2).101; - सय त्रि., खुले स्थान या आकाश के नीचे ऊपर की ओर उठता हुआ, ऊपर की ओर चढ़ रहा - नो लेटा हुआ - यो पु., प्र. वि., ए. व. - अब्भोकाससयो जन्तु, पु., प्र. वि., ए. व. - देवो आदिच्चो नभं अब्भुसक्कमानो वजन्त्या खीरपायितो, जा. अट्ठ. 4.358. दुद्दिक्खो होति .... दी. नि. 2.137; इतिवु. 16; नभं अब्मोकासिक त्रि., [आभ्यवकासिक, तुल. अभ्रावकाशिक, अब्भुस्सक्कमानोति उदयट्ठानतो आकासं उल्लङ्घन्तो, इतिवु. खुले स्थान में रहने वाला, किसी विशिष्ट तापस का अट्ठ. 79; - नं पु.. द्वि. वि., ए. व. - वनन्ततो अभुस्सक्कमानं पदनाम या अभिधान - को पु., प्र. वि., ए. व. - चन्द भिन्दित्वा ... पुरतो हुत्वा .... म. नि. अट्ट (म.प.) अब्भोकासिकोपि होति यथासन्थतिको, दी. नि. 1.150; -
कस्स पु., ष. वि., ए. व. - नाहं, भिक्खवे, अब्भोकासिकस्स अब्भुस्सहनता स्त्री., अपने को उत्तेजित या उत्साहित अब्भोकासिकमत्तेन सामनं वदामि, म. नि. 1.354; - का करने की प्रयत्नशीलता, उत्साहवर्द्धन - ता प्र. वि., ए. क. स्त्री., प्र. वि., ए. व. - रुक्खमूलिका अब्भोकासिका - अनुसम्पवङ्कता अब्भुस्सहनता अनुबलप्पदानं ... पळालपुञ्जिका, मि. प. 309; - कङ्ग नपुं, खुले स्थान पर अनुवादाधिकरणं कुसलं, चूळव. 200; अमुस्सहनताति कस्मा रहने वाले तापसों की चर्या का एक अङ्ग - छन्नरुक्खमूलानि एवं न उपवदिस्सामि, उपवदिस्सामियेवा ति उस्साहं कत्वा पटिक्खिपित्वा अभोकासिकसमादानेन अब्भोकासिको, थेरगा. अनुवदना, चूळव. अट्ठ. 39..
अह. 2.274. अब्भुस्साह पु., [अभ्युत्साह], शक्ति, बल, प्रबल उत्साह - अब्मोकासी त्रि., [अभ्यवकाशिन], खुले स्थान में रहने हं द्वि. वि., ए. व. - अब्भुस्साहं जनेन्तो समुत्तेजेसि, सु. नि. वाला, आकाश के नीचे निवास करने वाला - सी पु., प्र. अट्ठ. 2.152.
वि., ए. व. -- अब्भोकासी साततिको ..., थेरगा. 853. अब्मुस्साहितहदय त्रि., ब. स. [अभ्युत्साहितहृदय], अब्मोकिरति अभि + अव + किर का वर्त., प्र. पु., ए. व. अत्यधिक उत्साह से भरपूर हृदय वाला - यो पु.. प्र. वि., [अभ्यवकिरति], चारों ओर से ढकता है, आच्छादित करता ए. व. - केवलन्तु महाकरुणाय अब्भुस्साहितहदयो सत्तानं या फैलाता है - रिस्सं अद्य., उ. पु., ए. व. - अब्भोकिरिस्सं परमहिताय अदेसयीति, खु. पा. अट्ठ. 152.
पत्तेहि पसन्ना सेहि पाणिभि, वि. व. 39; अब्भोकिरिस्सन्ति अब्मेति आ + vव्हे का वर्त, प्र. पु., ए. व. [आह्वयति]. अभिओकिरिं अभिप्पकिरि वि. व. अट्ट, 29. आह्वान करता है, बुलाता है, आमन्त्रित करता है, अस्थायी अब्मोक्किरण नपुं.. अभि + अव + किर से व्यु., क्रि. ना., रूप से निष्कासित भिक्षु को पुनः सङ्घ में बुलाता है या मुखौटा, चारों ओर से ढक देना या लपेट देना - णं प्र. प्रतिष्ठित करता है - मानत्तारह अब्भेति ... अब्भानारहं । वि., ए. व. - सोभनकन्ति नटानं अब्भोक्किरणं, दी. नि. अट्ठ. उपसम्पादेति, महाव. 424; उपसम्पदारह अमेति, महाव. 1.77. 426; - तु अनु०, प्र. पु., ए. व. - सङ्घो उदायिं भिक्खु अब्रह्म त्रि., [अब्राह्म], अपवित्र, अशुद्ध, हीन, अश्रेष्ठ, सांसारिक, अब्भेतु, चूळव. 100; - य्य विधि., प्र. पु., ए. व... एकेनापि घटिया - मं पु., वि. वि., ए. व. - अब्रह्म हीनं वीसतिगणो भिक्खुसङ्घो तं भिक्षं अब्भेय्य, पारा. 290; - लामकधम्मं चरन्तीति अब्रह्मचारी म. नि. अट्ट (मू.प.) 1(1).196.
०८9.
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