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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अब्भुत 458 अब्भुन्नामेत्वा परिसा अब्भुतचित्तजाता अहोसि, स. नि. 1(1).207; प्र. वि., ए, व. - अहो दानन्ति बहसो उदानं अभूदीरयं, अब्भुतचित्तजाताति अभूतपुब्बसन्तुढिया समन्नागता, स. नि. सद्धम्मो. 514; - रयी अद्य., प्र. पु., ए. व. - अहङ्गुपेतं अट्ट, 1.232; - धम्म' पु., कर्म. स. [अद्भुतधर्म], गिरमभुदीरयी, म. नि. अट्ट (मू.प.) 1(1).51; - रेसु अद्य., आश्चर्यजनक धर्म, उत्तम एवं प्रणीत धर्म --- म्मं द्वि. वि., प्र. पु., ब. व. - इमा गिरा अब्भुदीरेसु, थेरीगा. 404. ए. व. - ... भन्ते, भगवतो अच्छरियं अब्भुतधम्म धारेमि. म. अब्मुद्देति/अब्भुदेति अभि + उद + Vइ का वर्त, प्र. पु., नि. 3.162; - म्मेन तृ. वि., ए. व. - यदा मम भाता ए. व. [अभ्युदेति], उगता है, ऊपर की ओर उठता है, सूर्य महन्तेन अब्भुतधम्मेन समन्नागतो विज्जाधरो..... जा. अट्ठ. के समान उदित होता है - वेरोचनो अब्भुदेति यत्थ च 3.401; - धम्म नपुं.. विषय एवं शैली के आधार पर अस्थमेति, अ. नि. 1(2).57; यदा च रस्मिसम्पन्नो, अब्भुदेति बुद्धवचनों का विभाजन करने वाले नौ अङ्गों में से एक, पभङ्करो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).316; - यं वर्त. कृ., पु., आश्चर्य, ऋद्धिप्रातिहार्य एवं लोकोत्तर तत्त्वों से भरपूर प्र. वि., ए. व. - अभुद्दयन्ति अभिउग्गच्छन्तो, अब्भुद्दसन्ति बुद्धवचन - म्म प्र. वि., ए. व. - ... सब्बेपि पिपाठो, वि. व. अट्ठ. 235; ओभासयन्ती दस सबसो दिसा, अच्छरियभुतधम्मपटिसंयुत्तसुत्तन्ता अब्भुतधम्मन्ति वेदितब्ब ___ अब्भुद्दयं सारदिको व भाणुमा वि. व. 1031. दी. नि. अट्ठ. 1.24; - धम्मसमन्नागत त्रि., तत्पु. स., अब्मुद्दय पु., [अभ्युदय], विकास, उन्नति, प्रगति, सफलता विलक्षण अथवा अद्भुत धर्मों से परिपूर्ण - ता पु., प्र. वि., - यं द्वि. वि., ए. व. - इधलोकपरलोकेसु वुद्धि अब्भुदयं ब. व. - तथागता अब्भुतधम्मसमन्नागता चा ति, म. नि. नावबुज्झन्ति, उदा. अट्ठ. 278. 3.162; - धम्मसो अ., निपा., अब्भुत धम्म नामक अङ्ग की अब्भुद्धरण नपुं., [अभ्युद्धरण], ऊपर की ओर उठाना, बाहर दृष्टि से - यदि अभुतधम्मसो- ततो ततो लभतेव अत्तमनतं, की ओर ले जाना - अग्गियाधाने ठितो अग्गि कतब्भुद्धरणो लभति चेतसो पसाद, अ. नि. 2(1).218. समिधापक्खेपं बीजनवातञ्च लभित्वा .... सु. नि. अट्ठ. अब्भुत पु./नपुं.. बाजी, दांव, शर्त - तो पु., प्र. वि., ए. 1.338. व. - पणो भुतो, अभि. प. 532; पणे चेवाब्भुतो पुमे, अभि. अब्भुन्नत त्रि., अभि + उ + नम का भू, क. कृ. [अभ्युन्नत]. प. 1023; प्रायः ।कर के क्रि. रू. के साथ प्रयुक्त, बाजी उठा हुआ, ऊंचा किया हुआ, ऊपर की ओर उभरा हुआ - लगाता है, दांव पर लगा देता है - करिस्सति न करिस्सती ता स्त्री., प्र. वि., ब. व. - अभुन्नता समा होन्ति, को दिस्वा ति अभुतमकंसु. पारा. 203; सेहिना सद्धिं सहस्सेन अब्भुतं न पसीदति, अप. 2.44. करोहि, पाचि. 7; होतु नो अब्भुतं तत्थ, जा. अट्ठ. 7.37. अब्भुन्नति स्त्री., अभि + उ + निम से व्यु. [अभ्युन्नति], अब्भुतोरुगुणाकर पु.. [अद्भुतगुणाकर], आश्चर्यकर एवं दर्पशीलता, अतिमानिता, अहंकार, घमण्ड - लक्खण त्रि., विस्तृत गुणों की खदान - रो प्र. वि., ए. व. - अवझवादी ब. स., अत्यधिक अहङ्कारी, घमण्डी स्वभाव वाला - क्खणो अतुलो अब्भुतोरुगुणाकरो, सद्धम्मो. 345. पु., प्र. वि., ए. व. - अब्भुण्णतिलक्षणो अतिमानो. अतिविय अब्भुदाहासि अभि + उद + आ + Vहर का अद्य., प्र. पु.. अहङ्काररसो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).114. ए. व., प्रकाशित किया, प्रकट किया, स्पष्ट रूप से कहा अब्मुन्नदित त्रि., अभि + उ + निद का पू. का. कृ. - इमं कथावत्थु राजन्तेपुरे अभुदाहासीति, म. नि. 2.335. [अभ्युन्नदित], निनादित, प्रतिध्वनित, अनुगुञ्जित -दिता अब्मुदित त्रि.. अभि + उद + Vइ का भू. क. कृ. [अभ्युदित]. पु.. प्र. वि., ब. व. - अभुन्नदिता सिखीहि, ते सेला शा. अ. उठा हुआ, उगा हुआ, ला. अ. सौभाग्यशाली, रमयन्ति में, थेरगा. 1068; अब्भन्नदिता सिखीहीति शुभ, माङ्गलिक - ता स्त्री., प्र. वि., ए. व. - तेसं अब्भुदिता मधुरस्सरेन उन्नदिता, थेरगा. अट्ठ. 2.383. कालसम्पदा येव केवलं, चू. वं. 64.49. अब्मुन्नमित्वा अभि + उ + Vनम का पू. का. कृ., ऊपर की अब्मुदीरित त्रि०, अभि + उद + Vईर का भू. क. कृ. ओर छलक कर, फूट कर बाहर निकल कर - उदकसालतो [अभ्युदीरित]. कहा हुआ, उक्त - तं नपुं., प्र. वि., ए. व. पि अभुन्नमित्वा भगवतो चितकं निब्बापेसि, दी. नि. 2.123. - अभुदीरितं अब्भुग्गच्छति, क. व्या. 44; सद्द. 3.619. अब्मुन्नामेत्वा अभि + उ +vनम के प्रेर. का पू. का. कृ., अब्मुदीरेति अभि + उद + Vईर का वर्त., प्र. पु., ए. व. ऊपर की ओर तान कर, सीधा खड़ा कर - पुरिम कायं [अभ्युदीरयति], कहता है, बोलता है - रयं वर्त. कृ., पु., अभुन्नामेत्वा पच्छिम कायं अनुविलोकेति, अ. नि. 1(2).280. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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