SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्पिय 441 अप्पेक - सतहि सो पियो होति, असतं होति अप्पियो, थेरगा. 994; - यं द्वि. वि., ए. व. - गन्था तेसं न विज्जन्ति, येसं नत्थि पियाप्पियं, ध. प. 211; - करण नपुं, अप्पिय + अकरण के योग से व्यु., तत्पु. स. [अप्रियाकरण], हानि नहीं करना, मन को प्रतिकूल रूप में अनुभव होने वाला काम न करना - णं नपुं. द्वि. वि., ए. व. - सब्द तेति विकुद्धभावञ्च इदानि अप्पियकरणञ्च उभयं ते इदं सब्बमेव पटिजानामि, जा. अट्ठ. 5.300; - मनापसद्द पु., अप्पिय + अमनाप + सद्द के योग से व्यु., कर्म. स. [अप्रियामनापशब्द], अप्रिय एवं मन को अच्छा न लगने वाला शब्द - इंद्वि. वि., ए. व. - भेरण्डकयेवाति अप्पियअमनापसद्दमेव, दी. नि. अट्ठ. 3.11; तेनाह अप्पियअमनापसद्दमेवाति, लीन. (दी.नि.टी.) 3.10; -- ता स्त्री., भाव. [अप्रियता], प्रतिकूलता, अप्रिय होने की दशा - ताय तृ. वि., ए. व. - तस्मिञ्च मे अप्पियताय अज्ज, पितरञ्च ते नत्थि कोचि विसेसो, जा. अट्ठ. 4.30; - तं द्वि. वि., ए. व. - न चापि मे अप्पियतं अवेदि, अञत्र कामा परिचारयन्ता, जा. अट्ठ. 4.32; - पसंसी त्रि., [अप्रियप्रशंसिन्]. अप्रिय जनों या पदार्थों की प्रशंसा करने वाला - पसंसी पु., प्र. वि., ए. व. - अप्पियपसंसी च होति, पियगरही च, अ. नि. 3(1).6; ततिये अप्पियपसंसीति अप्पियजनस्स पसंसको वण्णभाणी, अ. नि. अट्ठ. 3.195; - पुग्गल पु.. कर्म स. [अप्रियपुद्गल], अप्रिय व्यक्ति - ले सप्त. वि., ए. व. - अयहि मेत्ता अप्पियपुग्गले ... इमेसु चतूसु पठमं न भावेतब्बा, विसुद्धि. 1.284; -- भाव पु., कर्म. स. [अप्रियभाव], अप्रियता, प्रतिकूलता, प्रिय नहीं होना - वेन त. वि., ए.व. - तस्मिञ्च आसीविसे तव ... पितरि च अप्पियभावेन मह कोचि विसेसो नत्थि जा. अट्ठ. 4.30; - रूप त्रि., ब. स. [अप्रियरूप], मन को अच्छा न लगने वाले आकार या स्वरूप वाला- पे नपुं.. सप्त. वि., ए. व. - अप्पियरूपे रूपे न ब्यापज्जति, म. नि. 1.341; - वचन नपुं., कर्म. स. [अप्रियवचन], अच्छा न लगने वाला वचन - नेन तृ. वि., ए. व. - कतेन अदानेन वा अप्पियवचनेन वा अनत्थचरियाय वा असमानत्तताय वा... सुतपुब्बं मि. प. 159; - वादी त्रि., [अप्रियवादिन]. अप्रिय वचनों को बोलने वाला, गाली गलौज, डांट-फटकार या निन्दा करने वाला - मुखरो दुम्मुखो बद्धमुखो चाप्पियवादिनि, अभि. प. 735; - सम्पयोग पु., तत्पु. स. [अप्रियसम्प्रयोग], अप्रिय-जनों के साथ संयोग या मेल-मिलाप-गो पु., प्र. वि., ए. व. - अप्पियसम्पयोगो नाम अमनापेहि सत्तसङ्खारेहि समोधानं, विसुद्धि. 2.133; - सील त्रि., ब. स. [अप्रियशील], मन को अच्छा न लगने वाले स्वभाव से युक्त - ला पु.. प्र. वि., ब. व. - अपेसलानीति एवरूपा पुग्गला आसीविसभरिता विय वम्मिका अप्पियसीला होन्ति, जा. अट्ठ. 4.343. अप्पिय त्रि., अप्प का सं. कृ. [अर्ग्य], प्रमुख तत्त्व के रूप में रखे जाने योग्य, प्रमुख वचन अथवा अभिधेय शब्द के रूप में रखा जाने योग्य - यं पु., वि. वि., ए. व. - कायोति वा सरीरन्ति वा, सरीरन्ति वा कायोति वा, कायं अप्पियं करित्वा एसेसे एकटे समे समभागे तज्जातेति, कथा. 31; तत्थ कायं अप्पियं करित्वाति कायं अप्पेतब्बं अल्लीयापेतब्ब एकीभावं उपनेतब्बं अविभजितब्बं कत्वा पृच्छामीति अत्थो, कथा. अट्ठ. 121. अप्पियायन्त त्रि., पिय के ना. धा. पियायति के वर्त. कृ. का निषे. [अप्रियायत्]. प्रेम न करता हुआ, अप्रिय रूप में या बुरे रूप में आचरण कर रहा - न्तो पु., प्र. वि., ए. व. - ... कल्याणकम्म दुस्सन्तो अप्पियायन्तो अट्टीयन्तो न करोति, जा. अट्ठ, 5.109. अप्पीति स्त्री., पीति का निषे., तत्पु. स. [अप्रीति], प्रीति का अभाव, द्वेष, वैर-भाव - यं सप्त. वि., ए. व. - दिसी अप्पीतियं. "धम्म देस्सति, सद्द. 2.452; दुस अप्पीतियं, दुस्सति पदुस्सति, दोसो ..., सद्द. 2.489. अप्पीभाव पु., [अल्पीभाव], क. छोटा हो जाना, कम हो जाना, कुटिल हो जाना - वे सप्त. वि., ए. व. - कुञ्च कोटिल्ल अप्पीभावेसु, सद्द. 2.335; ख. कम हो जाना, च्युत होना, बिलग होना - चुट अप्पीभावे, चोटति, सद्द. 2.353; ग. क्षमा करना - मस अप्पीभावे, खमायञ्च, मस्सति, सद्द. 2.489; घ. क्षीण हो जाना, घट जाना - लिस अप्पीभावे, लिस्सति, लेसो, सद्द. 2.489. अप्पीयति अप्प के कर्म. वा. का वर्तः, प्र. पु., ए. व. [अर्प्यते], बैठाया जाता है, स्थिर किया जाता है, दृढ़ता के साथ जोड़ दिया जाता है - तादिसम्हि आरम्मणं मनस्मिन अप्पीयति, विभ. अट्ठ, 8. अप्पेक त्रि., अपि + एक के योग से व्यु., कुछ एक-लोग - के पु., प्र. वि., ब. व. - अप्पेके सतमद्दक्ष, सहस्सं अथ सत्तरि ... अप्पेकेनन्तमद्दक्खं दिसा सब्बा फुटा अहं, दी. नि. 2.187; अप्पेके सतमद्दक्खुन्ति तेसु भिक्खूसु एकच्चे भिक्खू अमनुस्सानं सतं अद्दसंसु, दी. नि. अट्ठ. 2.249. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy