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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अप्पमाणिक अप्पमाणसमाधिनाति अरहत्तमग्गसमाधिना, अ० नि० अट्ट 2.211; - सुभ पु०, रूप ब्रह्मलोकों में से एक में निवास करने वाले अनन्त शोभा से युक्त देवताओं के एक वर्ग का नाम मा प्र. वि. ब. व. एकतलवासिनो एवं चेते सब्वेपि परितसुभा अप्यमाणसुभा सुभकिण्हाति वेदितब्बा म. नि. अट्ठ. ( मू.प.) 1 ( 1 ) .39; - मानं ष० वि०, ब० व. अप्पमाणसुभानं देवानं म. नि. 1. 364; - णाभ त्रि., ब. स. [ अप्रमाणाभ] अत्यन्त देदीप्यमान आभा वाले रूपब्रह्मलोकों में से एक के निवासी देवगण भानं पु.. ष. वि. ब. व. ... अप्पमाणाभानं देवानं... म. नि. 1363: आभानं देवानन्ति 431 परिताभअप्पमाणाभ आभस्सरानमेतं अधिवचनं, म. नि. अट्ठ. ( मू०प०) 1 (2).229; णारम्मण त्रि. ब. स. [ अप्रमाणालम्बन] विपुल विषय को आलम्बन बनाने वाला, अप्रमाण या लौकिक सीमाओं के ऊपर जा चुके धर्म (निर्वाण ) को आलम्बन बनाने वाली समाधि प्रज्ञा या सम्यकदृष्टि - णो पु०, प्र. वि., ए. व. - अत्थि परित्तारम्मणो, अत्थि महग्गतारम्मणो अतिथ अप्पमाणारम्मणो विभ. 18:णा स्त्री. प्र. वि., ए. व. अप्पमाणे धम्मे आरम्भ या उप्पज्जति पञ्ञा पजानना... अमोहो धम्मविचयो सम्मादिट्टि अयं वृच्चति अप्यमाणारम्मणा पञ्ञा, विग. 373 णं नपुं. प्र. वि. ए. व. यं विपुले आरम्भणे पवत्तं तं वुद्धिप्यमाणता अप्यमाण आरम्भणं अस्साति अप्पमाणारम्मण ध. स. अह. 229 णा पु. प्र. कि. व. क... अप्पमाणे धम्मे आरम्भ ये उप्पज्जन्ति चित्तचेतसिका धम्मा-इमे धम्मा अप्पमाणारम्मणा, ध. स. 1031; - ता स्त्री. भाव. [ अप्रमाणालम्बनता ], विपुल आलम्बन वाला होना, लोकोत्तर धर्म (निर्वाण) को आलम्बन बनाने की स्थिति विपरियायेन अप्पमाणारम्मणता वेदितब्बा, ध. स. अट्ठ. 253. - - अप्पमाणिक त्रि.. अप्पमाण से व्यु [अप्रमाणिक] निर्धारित मानदण्डों से रहित, प्रामाणिक माप-जोख से रहित, बहुत बड़ी या बहुत छोटी णिकायो स्त्री द्वि. वि. ब. द. सज्ञाचिकायो कुटियो कारापेन्ति अस्सामिकायो अतुद्देसिकायो अप्पमाणिकाय, पारा. 224 अप्पमाणिकायोति एतकेन निद्रं गच्छिरसन्तीति एवं अपरिच्छिन्नप्पमाणायो, बुद्धिप्पमाणायो वा महन्तप्पमाणायोति अत्थो, पारा. अड. 2.1.134 णिकानि नपुं. द्वि. वि. ब. व. भगवता निसीदने अनुज्ञान्ति अप्पमाणिकानि निसीदनानि धारेति पाचि. 224. अप्पमाद पु. पमाद का निषे. [अप्रमाद] चित्त की जागरुकता, स्मृति की जागरुकता, प्रमाद या चित्त की शिथिलता या - अप्पमाद आतप्प - विक्षिप्तता का न रहना दो प्र. वि. ए. व. - पधानं अधिद्वानं अनुयोगो अप्पमादो कुसलेसु धम्मेसु, महानि. 42-43, अप्यमादोति नष्पमज्जनं सतिया अविप्पवासो महानि, अ. 148: अप्पमादो दुच्चति सतिया अविप्पवासो दी. नि. अड. 1.90; देन तृ, वि. ए. व. सद्धाय तरति ओघं अप्पमादेन अण्णवं सु. नि. 186 तस्मा अप्पमादेन अण्णवन्ति इमिना पदेन भवोघतरणं सकदागामिमग्गं सकदागामिञ्च प्रकासेति सु. नि. अ. 198 दं द्वि. वि. ए. ब. अप्पमादञ्च मेधावी, धनं सेट्ठव रक्खति, थेरगा. 883; - दे सप्त. वि. ए. व. अप्पमादे पमोदन्ति, अरियानं गोचरे रता, ध० प० 22; - गरु / गारव त्रि०, ब० स० [अप्रमादगौरव ], अप्रमाद में गौरव अनुभव करने वाला, अप्रमाद को सम्मान देने वाला अप्पमादगरु भिक्खु, पटिसन्धारगारवो अ. नि. 2 (2) 47: 181 गारवता स्त्री. भाव [अप्रमादगौरवता]. अप्रमाद में सम्मान या गौरव का भाव - अप्पमादगारवताति अप्पमादे गरुभावो, अ० नि० अट्ठ. 3.108; - गुण पु०, तत्पु० स. [ अप्रमादगुण] अप्रमाद का गुण ने सप्त. वि., ए. व. अप्पमादगुणे युत्तो, तदा कालहूतो अहं अप. 1.164; - धम्म पु०, तत्पु० स० [ अप्रमादधर्म], अप्रमाद का धर्मअप्पमादधम्मो देसितो एवं अप्पमादधम्मं येव थेरो देसेसि, सा. वं. 56 (ना.); पटिपत्ति स्त्री. तत्पु. स. [ अप्रमादप्रतिपत्ति], अप्रमाद की चर्या, अप्रमाद का अभ्यास, - Er - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तियं सप्त वि. ए. व. अनुसासमाना च अप्पमादप्पटिपत्तियं अनुसासन्ति, मि. प. 223; - पद नपुं०, [ अप्रमादपद], अप्रमादविषयक वचन, कथन या वाक्य दे सप्त वि. ए. व. ओवादं सब्बं एकस्मिं अप्पमादपदेयेव पक्खिपित्वा अदासि दी. नि. अड. 2.166; For Private and Personal Use Only वाला फल नपुं., तत्पु॰ स॰ [अप्रमादफल ], अप्रमाद का फल लं हि. वि. ए. व. इमेसं भिक्खूनं अप्पमादफलं सम्पस्समानो अप्पमादेन करणीयन्ति वदामि म. नि. 2.152; - मूलक त्रि०, ब० स० [ अप्रमादमूलक ], अप्रमाद में अपनी जड रखने वाला अप्रमाद के कारण उदित होने का पु०, प्र०वि०, ब० व. ये केचि कुसला धम्मा, सब्बे ते अप्पमादमूलका अप्पमादसमोसरणा, स. नि. 3( 1 ) 49 रतत्र तत्पु. स. [अप्रमादस्त], अप्रमाद में आनन्द लेने वाला - तो पु०, प्र. वि., ए. व. - अप्पमादरतो भिक्खु, पमादे भयदस्सिवा ध. प. 31 तं पु.. द्वि. वि.. ए. व. अप्पमादरत दिवा, उत्तमत्थं गवेसक, अप. 1.65; ताय स्त्री. चतु वि., ए. व. बहूहि दुक्खधम्मेहि , - -
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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