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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्पटिसन्धि 420 अप्पटिस्स/अप्पतिस्स पिवेय्य, स. नि. 1(2).96, अप्पटिसङ्घाति अपच्चवेक्खित्वा, स. नि. अट्ठ. 2.105; सो तं उदकरहदं सहसा अप्पटिसला पक्खन्देय्य, अ. नि. 3(2).172. अप्पटिसन्धि स्त्री.. पटिसन्धि का निषे. [अप्रतिसन्धि]. पुनर्जन्म का अभाव, पुनर्जन्म से मुक्ति, निर्वाण, अपुनर्भव, - न्धि प्र. वि., ए. व. - अप्पटिसन्धि अभिज्ञेय्या, पटि. म. 11; - धिया तृ. वि., ए. व. - नाझं पत्थयते किञ्चि, अञत्र अप्पटिसन्धिया ति, महानि. 328; अप्पटिसन्धियाति निब्बानं ठपेत्वा, महानि. अट्ठ. 355. अप्पटिसन्धिय/अप्पटिसन्धिक त्रि., पटिसन्धिय/ अपटिसन्धिक का निषे. [अप्रतिसन्धेय]. 1.शा. अ. वह, जिसे एक साथ जोड़ कर न रखा जा सके, ला. अ. ठीक न करने योग्य, असाध्य, मूल रूप में वापस न लाने योग्य, फिर से नहीं जोड़े जाने योग्य, - यो पु., प्र. वि., ए. व. - यथापि ब्रह्म उदकुम्भो, भिन्नो अप्पटिसन्धियो, पे. व. 93; जा. अट्ठ. 3.143; भिन्नो अप्पटिसन्धियोति ब्राह्मण सेय्यथापि उदकघटो मुग्गरप्पहारादिना भिन्नो अप्पटिसन्धियो पुन पाकतिको न होति, पे. व. अट्ठ, 56; --- का स्त्री., प्र. वि., ए. व. - सेय्यथापि नाम पृथुसिला द्विधा भिन्ना अप्पटिसन्धिका होति, पारा. 87; 2. त्रि०, अपटिसन्धि से व्यु. [अप्रतिसन्धिक]. पुनर्जन्म की ओर न ले जाने वाला, पुनर्भव का अविषय, - के नपुं., प्र. वि., ए. व. -- अनुपवज्जन्ति अप्पवत्तिकं अप्पटिसन्धिकं स. नि. अट्ट. 3.18; - केन पु./नपु., तृ. वि., ए. व. - रूपायतनादिगोचरताय रूपसादिभेदा सब्बापि सजा अप्पटिसन्धिकेन निरोधेन निरुज्झि, उदा. अट्ठ. 350; - कत्त नपुं., अप्पटिसन्धिक का भाव. [अप्रतिसन्धिकत्व]. पुनर्जन्म की ओर नहीं ले जाना, पुनर्भव का कारण न होना - किलेसाभावेनेव कम्म अप्पटिसन्धिकत्ता अवस्सटुं नाम होतीति ... कम्म पजहि, उदा. अट्ठ. 269; - कभाव पु., उपरिवत - तं त्वन्ति तस्स महत्वं सखेनेव निब्बानगामिमग्गं आरुरह अपटिसन्धिकभावं पत्थेन्तस्स तं अत्थञ्च ... अक्खाहि जा. अट्ट. 5.51. अप्पटिसन्धेय्य त्रि., पटि + सं + vधा के सं. कृ. का निषे. [अप्रतिसन्धेय], फिर नहीं जोड़ने योग्य, मरम्मत न करने योग्य - पुन अप्पटिसन्धेया, द्विधा भिन्ना सिला विय, विन. वि. 1995. अप्पटिसम त्रि., ब. स. [अप्रतिसम], वह, जिसके समान कोई भी दूसरा न हो, बेजोड़, अनुपम, - मो पु.. प्र. वि., ए. व. - तथागतो ... अदुतियो असहायो अप्पटिमो अप्पटिसमो ..... असमो असमसमो द्विपदानं अग्गो ति, अ. नि. 1(1).29; सो भगवा ... अप्पटिसमो असदिसो अतुलो ... अनन्तबलो .... उप्पादेत्वा ... पापुणिचा ... धम्मनगरं मापेसि. मि. प. 302; - मं वि. वि., ए. व. - ... बुद्ध भगवन्तं ... असमं असमसमं अप्पटिसमं अप्पटिभागं ... पुरिसनिसभं ... पटिलभिं, चूळनि. 189-90; अप्पटिसमन्ति अत्तनो सदिसविरहितं, चूळनि. अट्ठ. 77; - माय स्त्री., तृ. वि., ए. व. -- भगवा इमं ... बुद्धलीळाय अपटिसमाय बुद्धसिरिया जेतवनविहारं पाविसि. जा. अट्ट, 1.102; - मस्स पु./नपुं.. ष. वि., ए. व. - यं तथागतस्स ... अग्गपुग्गलवरस्स .... असमसमस्स अनुपमस्स अप्पटिसमस्स छवक लाभक परित्तं पापं ... लाभन्तरायमकासी ति, मि. प. 155; तुल. असम, अप्पटिम. अप्पटिसरण त्रि., ब. स. [अप्रतिशरण], क, बेसहारा, आश्रयहीन, सुरक्षा से रहित, आधारहीन, अनाथ - सो दलिदो अप्पटिसरणो हुत्वा भरियं आदाय सङ्घसेटिं पच्चयं कत्वा .... जा. अट्ठ. 1.445; तुम्हेसु पक्कन्तेसु जेतवनविहारो अप्पटिसरणो होति, जा. अट्ठ. 4.204; ख. आश्रय स्थल अथवा शरण स्थल प्रदान न करने वाला, शरण स्थल से रहित, - णा पु., प्र. पु., ब. व. - तेन खो पन समयेन विहारा अनाळिन्दका होन्ति अप्पटिसरणा, चूळव. 279. अप्पटिसिद्ध त्रि., पटिसिद्ध का निषे॰ [अप्रतिषिद्ध], वह, जिसका निषेध नहीं किया गया है, अनुमोदित, स्वीकृत - इतरथा हि चक्खु अत्ता वा अत्तनियं वाति अप्पटिसिद्धमेव सिया, खु. पा. अट्ठ. 142. अप्पटिसेट्ठ त्रि. ब. स. [अप्रतिश्रेष्ठ]. वह, जिससे अधिक श्रेष्ठ कोई दूसरा न हो, सर्वश्रेष्ठ, श्रेष्ठ प्रतिद्वन्द्वी रहित, अनुत्तर, - टुं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अतुलियं धुतगुणं अप्पमेय्यं असमं अप्पटिसमं अप्पटिभाग अप्पटिसेलू उत्तरं सेलु विसिद्ध मि. प. 322. अप्पटिस्स/अप्पतिस्स त्रि., ब. स. [अप्रतिश्रव/अप्रतिश्रय, बौ. सं. अप्रतीश], अविनीत, आज्ञा पालन न करने वाला, वश में न रहने वाला, उद्दण्ड, श्रेष्ठ-जनों के प्रति गौरव भाव न रखने वाला, - स्सो पु., प्र. वि., ए. व. - अप्पतिस्सोति पतिस्सयरहितो कञ्चि जेट्ठकठाने अट्ठपेत्वाति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 1.179; सो सत्थरिपि अगारवो विहरति अप्पतिस्सो, धम्मपि अगारवो विहरति अप्पतिस्सो, सङ्केपि अगारवो विहरति अप्पतिस्सो, चूळव. 196; - स्सा ब. व. - भिक्खूसु अगारवा For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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