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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4.32. अप्पटिपुग्गल 416 अप्पटिभान अप्पटिपुग्गल त्रि., ब. स. [अप्रतिपुद्गल], वह, जिसके अप्पटिबलपचं अतितरुणिजेव समानं, जा. अट्ठ समान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है, अद्वितीय, अनुपम, - लो पु., प्र. वि., ए. व. - अत्थि सक्यकुले जातो, बुद्धो अप्पटिबाहनीय त्रि., पटि + Vबाह के सं. कृ. का निषे., वह, अप्पटिपुग्गलो, थेरीगा. 185; यत्थ एतादिसो सत्था, लोके जिसे बाहर न किया जा सके या जिससे बचा जा सके, अप्पटिपुग्गलो, दी. नि. 2.117; अप्पटिपुग्गलोति अनिवारणीय - तस्मा ... सम्मासम्बुद्ध नपि पटिभागपुग्गलविरहितो, दी. नि. अट्ठ. 2.167; अप्पटिबाहनीयमेतन्ति दस्सेति, पे. व. अट्ठ. 250. अप्पटिपुग्गलोति अओ कोचि अहं बुद्धोति एवं पटिचं अप्पटिबाहित त्रि., पटि + Vबाह के भू. क. कृ. का निषे., कातुं समत्थो पुग्गलो नत्थीति अप्पटिपुग्गलो, अ. नि. अनिन्दित, अनुपेक्षित, अनिवारित - अप्पटिकट्ठाति अट्ठ. 1.94; - लं पु., द्वि. वि., ए. व. - ताहं दिसं अप्पटिबाहिता, स. नि. अट्ठ. 2.247; - बाहित्वा पटि + नमस्सिस्सं जिनं अप्पटिपुग्गलं, अप. 1.157; - लस्स पु.. Vबाह के पू. का. कृ. का निषे०, निन्दा न करके, बुरा-भला ष. वि., ए. व. - तथागतस्सप्पटिपुग्गलस्स, उपज्जि न कह कर, तिरस्कार न करके - अप्पटिक्कोसित्वाति कारुञता सब्बसत्ते, बु. वं. 1.2; - त्त नपुं॰, भाव. बालदुभासितं तया भासितन्ति एवं अप्पटिबाहित्वा, दी. नि. [अप्रतिपुद्गलत्व], अनुपम या अद्वितीय होना, अपने जैसे अट्ठ. 1.133; - बाहिरभाव पु., निन्दा न करना, तिरस्कार किसी अन्य व्यक्ति का न रहना - असमोति अप्पटिपुग्गलत्ताव न करना, खण्डन न करना, अप्रतिषेध, स्वीकृति - चतुत्थवारे सब्बसत्तेहि असमो, अ. नि. अट्ट, 1.94. .... विसपक्खिपनपापकम्मस्स अप्पटिबाहिरभावं जत्वा चतुत्थवारे अप्पटिपुच्छा अ., क्रि. वि., पटिपुच्छा का निषे. न अगमासि, जा. अट्ठ4.138. [अप्रतिपृच्छा]. उत्तर दिए बिना, जांच-पड़ताल के बिना, अप्पटिभय त्रि., ब. स. [अप्रतिभय], वह, जिससे किसी बिना कहे हुए ही - समग्गो सङ्घो पटिपुच्छाकरणीयं कम्मं प्रकार का भय न हो, निर्भीक, भयरहित - यो पु.. प्र. पु., अप्पटिपुच्छा करोति, महाव. 425; अप्पटिपुच्छा कतं होति, ए. व. - सप्पटिभयो बालो, अप्पटिभयो पण्डितो. .... म. नि. ... तीहङ्गेहि समन्नागतं तज्जनीयकम्म अधम्मकम्मञ्च होति, 3.108; - यं पु., द्वि. वि., ए. व. - गामन्तं अनुप्पत्तो खेम अविनयकम्मञ्च, दुवूपसन्तञ्च, चूळव. 4. अप्पटिभयाति, दी. नि. 1.64; - या स्त्री॰, प्र. वि., ए. व. अप्पटिबद्ध त्रि., पटि + Vबन्ध के भू. क. कृ. का निषे. - एवमस्स ... दिसा पटिच्छन्ना होति खेमा अप्पटिभया, दी. [अप्रतिबद्ध], किसी के साथ नहीं जुड़ा हुआ या बंधा हुआ, नि. 3.144; - यं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - पारिमं तीरं खेम स्वतन्त्र, बन्धनमुक्त, - द्धो पु., प्र. वि., ए. व. - .... अप्पटिभयं, म. नि. 1.188; - या पु.. प्र. वि., ब. क. - अनिस्सितो अप्पटिबद्धो विष्पमुत्तो विसञ्जत्तो विमरियादिकतेन अनुपडुता अनुपसट्टा खेमिनो अप्पटिभया गच्छन्तीति वुत्तं चेतसा विहरति, चूळनि. 59; अप्पटिबद्धोति मानेन न बद्धो, होति, खु. पा. अट्ठ. 125. महानि. अट्ठ. 16; -द्धं पु., वि. वि., ए. व. - अप्पटिबद्ध अप्पटिभाग त्रि., ब. स. [अप्रतिभाग]. वह, जिसका प्रतिभागी चित्तं छन्दरागे न इञ्जतीति-आनेज, पटि. म. 377; - कोई न हो अथवा जिसके समान कोई न हो, अतुलनीय, चित्त त्रि., ब. स. [अप्रतिबद्धचित्त], नहीं जुड़े हुए या बेजोड़, - गो पु., प्र. वि., ए. व. - एतेसन्ति ... सीलवन्तानं बंधे हुए चित्त वाला, बन्धनमुक्त चित्त वाला, आसक्ति या सप्पुरिसानं सीलगन्धोव अनुत्तरो असदिसो अपटिभागोति, लगावों से मुक्त चित्त वाला - कुले कुले अप्पटिबद्धचित्तो, ध. प. अट्ठ. 1.237; अप्पटिभागो बुद्धोति, मि. प. 225; - नं एको चरे खग्गविसाणकप्पो, सु. नि. 65; कुले कुले नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अप्पटिभाग. .... निब्बानं. मि. प. 289. अप्पटिबद्धचित्तोति खत्तियकुलादीस यत्थ कत्थचि किलेसवसेन अप्पटिभान त्रि., ब. स. [अप्रतिभान], किंकर्तव्यविमूढ़, अलग्गचित्तो, चन्दूपमो निच्चनवको हुत्वाति अत्थो, सु. नि. उलझन भरे चित्त वाला, कुछ भी सोचने में असमर्थ, उत्तर अट्ठ. 1.94; कामेसु अप्पटिबद्धचित्ता, उद्धंसोताति वुच्चतीति, देने में अक्षम, भोंचक्का - नो पु., प्र. वि., ए. व. - अरिहो थेरीगा. 12 भिक्खु गद्धबाधिपुब्बो तुण्हीभूतो मडुभूतो पत्तक्खन्धो अप्पटिबल त्रि., ब. स. [अप्रतिबल], अक्षम, असमर्थ, - अधोमुखो पज्झायन्तो अप्पटिभानो निसीदि, म. नि. 1.186%; पञ त्रि., ब. स. [अप्रतिबलप्रज्ञ], अक्षम या निर्बल अप्पटिभानोति किञ्चि पटिभानं अपस्सन्तो भिन्नपटिभानो प्रज्ञा वाला - तत्थ असमत्थपञ्जन्ति, कुटुम्ब विचारेतुं एवरूपम्पि नाम निय्यानिकसासनं म. नि. अट्ट (मू.प.) For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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