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अप्पचिन्त
अप्पञत्त
1.12; - घेन तृ. वि., ए. व. - अप्पग्धेन लक्खे न जूतं न धातु - इमे धम्मा अप्पच्चया, ध. स. 1090; - यो पु., प्र. कीळिरसति, जा. अट्ठ. 6.162; - घानि नपुं.. प्र. वि., ब. वि., ए. व. - यो येव सो धम्मो अप्पच्चयो, सो एव सो धम्मो व. - उच्चावचानीति महग्घअप्पग्घानि, जा. अट्ठ. 4.329; - असतो, ध. स. 1092; - त्त नपुं., भाव., अकारणता, हेतु ता स्त्री., भाव. [अल्पार्घता]. कम मूल्य वाला होना - प्रत्यय-निरपेक्षता, असंस्कृत धर्म होना - अपच्चयत्ता वा इदमस्स अप्पग्घताय पु. प. 141; इदमरस अप्पग्घताय । उप्पादाभावो, उदा. अट्ठ. 318; जातिआदीनं जातिया वदामि, अ. नि. 1(1).280-281.
अप्पच्चयत्ता, विभ. अट्ठ. 197; - निब्बान नपुं०, कर्म. स. अप्पचिन्त त्रि., ब. स. [अल्पचिन्तिन]. कम चिन्ता करने [अप्रत्ययनिर्वाण], उपादान रहित निर्वाण, निर्वाण की वह वाला- तानं पु, ष. वि., ब. क. - ... आहारचिन्तारहितानं स्थिति जिसमें समस्त उपादान स्कन्ध भी निरुद्ध हो जाते अप्पचिन्तानमरियानं सुखं अस्सत्थीति अप्पचिन्तसुखो. जा. हैं - अनुपादापरिनिब्बानन्ति अप्पच्चयनिब्बानं. अ. नि. अट्ठ. अट्ट, 3.275; - सुख त्रि., बहुत कम चिन्ताओं के कारण 3.173; - परिनिब्बान नपुं., कर्म. स., उपरिवत् - नं प्र. सुख का अनुभव करने वाला, इच्छामुक्त एवं निश्चिन्त वि., ए. व. - अनुपादापरिनिब्बानन्ति अप्पच्चयपरिनिब्बानं. मनोवृत्ति के फलस्वरूप सुखी - अप्पिच्छरस हि पोसस्स, अ. नि. अट्ठ. 3.303; - नेन तृ. वि., ए. व. - अप्पचिन्तसुखस्स च, ... अप्पचिन्तसुखस्साति परिनिब्बायिस्सतीति अप्पच्चय-परिनिब्बानेन परिनिब्बायिस्सति. आहारचिन्तारहितानं अप्पचिन्तानमरियानं सखं अस्सत्थीति अ. नि. अट्ठ. 2.205; 225; - भावना स्त्री., तत्पु. स., हेतुअप्पचिन्तसुखो, जा. अट्ठ. 3.275.
प्रत्ययों से मुक्त असंस्कृत निर्वाण की अनुभूति या साक्षात्कार अप्पचिन्ता स्त्री०, कर्म. स. [अल्पचिन्ता], चिन्ता का अभाव, - ... सत्तानं अप्पच्चयभावना न सुकराति, ..., उदा. अट्ट, 319, चित्त की शान्त अवस्था - अप्पिच्छा अप्पचिन्ताय अदूरगमनेन अप्पच्चोसक्कित त्रि., पटि + अव + vसक्क के भू. क. कृ. च. ... अप्पचिन्तायाति अज्ज कहं आहार लभिस्सामि, स्वे का निषे., शा. अ. पीछे की ओर वापस कदम न खींचने कहन्ति एवं आहारचिन्ताय अभावेन, ..., जा. अट्ठ. 3.275. वाला, ला. अ. अश्रान्त, अत्यधिक आसक्त - दसमे अप्पचिन्ती पु., व्य. सं., एक मत्स्य (मछली) का नाम - अप्पटिवानोति अनुकण्ठितो अपच्चोसक्कितो, अ. नि. अट्ट. बहुचिन्ती, अप्पचिन्ती, मितचिन्तीति तेसं नामानि जा. अट्ठ. 1.409; बहुचिन्ती अप्पचिन्ती, उभो जाले अबज्झरे, ... तदा अप्पजहन्तु त्रि., प+ हा के वर्त. कृ. का निषे. [अप्रजहत्]. बहुचिन्ती च अप्पचिन्ति च इमे द्वे अहेसु. जा. अट्ठ. 1.410. त्याग न करता हुआ, नहीं छोड़ता हुआ, - हं पु.. प्र. वि., अप्पच्चय' पु.. कर्म. स. [अप्रत्यय], भू-आदि धातुगणों में ए. व. - सोकमप्पजहं जन्तु, भिय्यो दुक्खं निगच्छति, सु. भ्वादिगण का विकरण 'अ', जो इस गण की धातुओं के बाद नि. 591; अनभिजानं अपरिजानं तत्थ चित्तं अविराजयं में जोड़ा जाता है - भू इच्चेवमादितो धातुगणतो अप्पच्चयो अप्पजहं अभब्बो दुक्खक्खयाय, इतिवु. 4; अप्पजहन्ति होति कत्तरि क. व्या. 447; रुधिइच्चेवमादितो धातुगणतो विपस्सनापासहिताय मग्गपआय तत्थ पहातब्बयुत्तक अप्पच्चयो होति कत्तरि क. व्या. 448.
किलेसवट्ट अनवसेसतो न पजहन्तो, इतिव. अट्ठ. 47. अप्पच्चय' पु., पच्चय का निषे., तत्पु स. [अप्रत्यय]. अप्पजहित्वा प+vहा के पू. का. कृ. का निषे॰ [अप्रहाय]. अविश्वास, सन्देह, शङ्का, असन्तुष्टि, निरुत्साह - तथागतस्स नहीं त्याग कर, नहीं छोड़कर - इदमप्पहायाति इदं इदानि न होति आधातो न अप्पच्चयो न चेतसो अनभिरद्धि, म. नि. वक्खमानं दुविधं पापसमाचार अप्पजहित्वा, इतिवु. अट्ठ. 1.194; परवादेस आघातो अप्पच्चयो व्यापादो कायगन्थो, महानि. 70; - यं द्वि. वि., ए. व. - ते तञ्चेव नप्पजहन्ति, अप्पजानन्तु त्रि., प+ ञा के वर्त. कृ. का निषे. [अप्रजानत]. मयि च अप्पच्चयं उपट्टापेन्ति, म. नि. 2.122.
ठीक से या पूर्ण रूप से नहीं जान रहा, - न्ता पु.. प्र. वि., अप्पच्चय' त्रि., ब. स. [अप्रत्यय], क. कारणों से रहित, ब. व. - निरोधं अप्पजानन्ता, आगन्तारो पुनभवं, सु. नि. हेतुओं एवं प्रत्ययों से उत्पन्न न होने वाला, असंस्कृत- यं 759. नपुं॰, प्र. वि., ए. व. - तञ्च अनिमित्तं अनिदानं असङ्घारं अप्पञत्त त्रि.. पञ्चत्त का निषे. [अप्रज्ञप्त], नहीं बतलाया अप्पच्चयं दुक्खिन्द्रियं उप्पज्जिस्सतीति, स. नि. 3(2).2903; गया, ज्ञात नहीं कराया गया, अविहित, अस्थापित, अनिर्दिष्ट, - या पु., प्र. वि., ब. व. - कतमे धम्मा अप्पच्चया? असङ्घता अप्रकाशित - त्तं न, प्र. वि., ए. व. - पञत्तं तथागतेन
2.50.
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