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अपेक्खित
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अपेत
अपेक्खित त्रि., अप + Vइक्ख का भू. क. कृ. [अपेक्षित], वह, जिस पर अत्यधिक ध्यान दिया जाए या जिस पर अत्यधिक प्रेम किया जाए, आवश्यक - मा जेट्टपत्तं अवधी अपेक्खितं, जा. अट्ठ. 6.153(रो.). अपेच्च अप + Vइ का भू. क. कृ. [अपेत्य]. दूर जाकर,
अलग हटकर, रहित होकर, अपेत्ति के अन्त. द्रष्ट.. अपेत त्रि., अप + Vइ का भू. क. कृ. [अपेत], शा. अ. दूर गया हुआ, ला. अ. हटाया हुआ, रहित - अपेतो दमसच्चेन न सो कासावमरहति, ध. प.9; अपेतो ... इन्द्रियदमसङ्घातेन दमेन च ... निब्बानसङ्खातेन च परमत्थसच्चेन अपेतो परिवज्जितो, जा. अट्ट. 2.166; अपेतो दमसच्चेनाति इन्द्रियदमेन चेव... अपेतो, वियुत्तो परिच्चत्थोति अत्थो, ध. प. अट्ट, 1.49; - ता स्त्री., प्र. वि., ए. व. - तङ्खणजेव .... दुक्खतो अपेता उळारसम्पत्तिं पटिलभित्वा ... अत्तानं दस्सेसि, पे. व. अट्ठ. 30; - ता पु.. प्र. वि., ब. व. - अपेता ते च ब्रह्मा , न ते वुच्चन्ति ब्राह्मणा, जा. अट्ठ. 4.324; 325; 326; 327; - कद्दम त्रि., ब. स. [अपेतकर्दम]. कीचड़-रहित, स्वच्छ - रहदोव अपेतकद्दमो, संसारा न भवन्ति तादिनो, ध. प. 95; - कम्मावरण त्रि., ब. स. [अपेतकर्मावरण]. कर्मो के आवरणों से मुक्त -- तञ्च पन सावसेसायुकस्स वयसम्पन्नस्स अपेतकम्मावरणस्स, मि. प. 151; - चित्त त्रि., ब. स., विपर्यस्त मन वाला, उखड़े हुए चित्त वाला, विक्षिप्त चित्त वाला - चजे चजन्तं वनथं न कयिरा, अपेतचित्तेन सम्भजेय्य, जा. अट्ठ. 2.172; 3.933; अपेतचित्तेनाति विगतचित्तेन विपल्लत्थचित्तेन, तदे.; - जातरूपरजत त्रि., ब. स., सोना और चांदी से रहित, सोना और चांदी का प्रयोग न करने वाला - कुम्भकारो निक्खित्तमणिसुवण्णो अपेतजातरूपरजतो, म. नि. 2.252; निक्खित्तमणिसु वण्णा समणा सक्यपुत्तिया अपेतजातरूपरजताति, स. नि. 2(2).310; - त्त नपुं., अपेत का भाव. [अपेतत्व]. रहित होने की स्थिति, विलगाव की हालत, अविद्यमानता - निरयो हि सग्गमोक्खहेतुभूता पुञसाता अया अपेतत्ता, उदा. अट्ठ. 338; मनुस्सत्तभावतो अपेतत्ता पेतपरियायोपि लभति एवाति तस्स वत्थु .... दहब्ब, पे. व. अट्ठ. 81; - दरथ त्रि., ब. स., शारीरिक एवं मानसिक व्यथाओं से मुक्त - सोहं अपेतदरथो, ब्यन्तीभूतो दुखक्खमो जा. अट्ठ. 5.4; अपेतदस्थोति विगतकायचित्तदस्थो, जा. अट्ठ. 5.5; - पापक त्रि., ब. स., पापरहित, निष्पाप - एवम्पि वोहारसुचिं असाहस, विसद्धकम्मन्तमपेतपापक,
जा. अट्ट. 3.281; अपेतपापकन्ति अपगतपापकम्म, जा. अट्ठ. 3.282; - भयसन्तास त्रि., ब. स. [अपेतभयसन्त्रास]. भय एवं त्रास से मुक्त, भयमुक्त, संकट से मुक्त - अपेतभयसन्तासो, भवेहं सब्बतो भवे, अप. 2.105; - भेरव त्रि., ब. स. [अपेतभैरव], भयजनक अवस्थाओं से मुक्त, भयकारक परिस्थियों से मुक्त - विजितावी अपेतभेरवो हि, दब्बो सो परिनिबुतो ठितत्तोति, थेरगा. 5; 7; अपेतभेरवोति पञ्चवीसतिया भयानं सब्बसो अपेतत्ता अपगतभेरवो अभयूपरतो. थेरगा. अट्ट, 1.45; - मनपापक त्रि.. ब. स., मन की पापमयी दुष्प्रवृत्तियों से रहित, विशुद्ध मन वाला/वाली -- पिका स्त्री, प्र. वि., ए. व. - विसुद्धमनसा अज्ज, अपेतमनपापिका, अप. 2.190; 198; थेरीगा. अट्ठ. 57; - लोमहंस त्रि., ब. स. [अतीतरोमहर्ष], क. रोमांच से रहित, कपकपी या थरथराहट से मुक्त - विजितावी अपेतलोमहंसो, रक्खं कायगतासतिं धितिमाति, थेरगा. 6%3; ख संकोच या घबराहट से रहित, बुरे काम करते समय भय से रहित, अनाचारी - अपेतलोमहंसस्स, रो कामानुसारिनो, जा. अठ्ठ. 5.112; अपेतलोमहंसस्साति अत्तानुवादादिभयेहि निभयस्स, जा. अट्ठ. 5.115; - वत्थ त्रि०, ब. स. [अपेतवस्त्र], वस्त्रों या परिधानों से रहित, उचित वेशभूषा को धारण न करने वाला - यं पित्वा भासेय्य अभासनेय्यं सभायमासीनो अपेतवत्थो, जा. अट्ठ. 5.15; - विज्ञाण त्रि., ब. स. [अपेतविज्ञान]. चेतना से रहित, मृत, मूर्छित, प्राणहीन - छुद्धो अपेतविआणो, निरत्थंव कलिङ्गर, ध. प. 41; निब्बुरहति सुसान, अचिरं कायो अपेतविज्ञाणो, थेरीगा. 470; अचिरं कायो अपेतविञआणोति अयं कायो अचिरेनेव अपगतविज्ञाणो सुसानं निब्बुरहति उपनीयति, थेरीगा. 308; - विजाणत्त नपुं., भाव. [अपेतविज्ञानत्व, चेतना से विहीन हो जाना, मृत या निष्प्राण हो जाना - कल्याणकम्मं पूरेस्सामी ति आभोगो वा पत्थना वा परियुट्टानं वा नत्थि अपगतविजाणत्ता, जा. अठ्ठ. 5.95; - सोक त्रि., ब. स. [अपेतशोक], शोक से रहित - सोकावतिण्णं जनतमपेतसोको, अवेक्खस्सु जातिजराभिभूतं दी. नि ?31; महाव.6; इतिवु. 25; अत्थ समेच्चाहमपेतसोको, एको विवित्ते सयनासनम्हि, सयामहं सब्बभूतानुकम्पी, स. नि. 1(1).131; - तावरण त्रि., ब. स. [अपेतावरण]. शा. अ. आवरण या आच्छादित करने वाले वस्त्र आदि उपकरणों से मुक्त, अनाच्छादित, खुला हुआ, ला. अ. मन को चञ्चल बनाने वाले 5 प्रकार के नीवरणों से मुक्त, संयोजनों आदि
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