________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
अपूरणीयमाव
तृ. वि. ब. व. नानग्गरसमतेहि नानग्गापूपजातीहि चू वं. 85.115 भक्खणसील / मक्खसील त्रि. ब. स. [अपूपभक्षणशील ] पुए खाने का शौकीन यथा अपूपभक्खनसीलो आपूपिको अ. नि. टी. 2.210: अथ वा सीलट्ठेन इक-सद्देन गमियत्थत्ता किरियावाचकस्स सद्दस्स अहस्सनं दट्टब्बं यथा अपूपभक्खनसीलो आपूपिको ति, विभ. मू. टी. 68.
-
406
415;
अपूरणीयभाव पु. [अपूरणीयभाव] कभी भी संतुष्ट न होने की प्रकृति, अपूरणीयता असन्तुष्टिभाव एवं तव्हाय अपूरणीयभावं जानाहीति दीपेति, जा. अट्ठ. 4. 101. अपूरेसिपूर का अय प्र. पु. ए. व. भर दिया, भरपूर कर दिया खिप्यं पत्तं अरेसि, सम्पजानो पटिस्सतो, सु. नि. अपूरथिं उ. पु. ए. व. पसन्नचितो सुमनो पानीघटमपुरथि, अप. 2.77. अपेक्ख / अपेख त्रि. ब. स. अपेक्षा रखने वाला, इच्छा करने वाला, ध्यान में रखने वाला, केवल स. उ. प. के रूप में ही प्राप्त. अपेक्खक त्रि, अप इक्ख से व्यु, व्याकरण के विशेष सन्दर्भ में प्रयुक्त [अपेक्षक]. संज्ञा अथवा विशे. की अपेक्षा रखने वाला पद बिसेसकपदानन्तु अपेक्खकपदानि च सद. 1.74; एवं विसेसपदापेक्खकानि भवन्ति, सद. 1.75;
नपुं. भाव. [ अपेक्षकत्व], अपेक्षा करना, निर्भर होना, सापेक्ष रहना गहपति-धम्मानं अपेक्खकत्तं तेसन्ति निद्वं एत्थावगन्तब्ब, सद्द. 1.230.
अपेक्खता स्त्री. भाव केवल स. उ. प्र. के रूप में प्राप्त, उपरिवत् - हसापेक्खतायपि नाम दवकम्यताय वा मुसावाद अकरणसासने पब्बजित्वा म. नि. अड. (म.प.) 2.30. अपेक्खते अप + √इक्ख का वर्त. प्र. पु. ए. व.. आत्मने.
-
"
[ अपेक्षते]. आशा करता है, इच्छा करता है, अपेक्षा करता है, आसक्ति या लगाव रखता है कामेसु नापेक्खते चित्तं पस्स सत्तस्स सुद्धतं, सु. नि. 437 :- ति उपरिवत् पर. आलयकरणवसेन अपेक्खतीति अपेक्खा, ध० स० अट्ट 391 खानो पु.. वर्त. कृ. प्र. वि. ए. व. साहं धम्मं अपेक्खानो, धम्मा चत्वं समुद्धितं जा. अनु. 5.334 मानो उपरिवत् एकोव तिब्बानि सहेय्य धीरो, सच्च हिरोत्तप्पमपेक्खमानोति जा. अड. 4.202: अत्थि च मे हिरी ओतष्यन्ति अपेक्खमानोव अजस्स धीरोति, जा. अड. 4. 203 माना स्त्री. प्र. वि. ए. व. पतिमानेन्तीति अपेक्खमाना, पाचि. अट्ठ 163; - न्तो पु०, वर्त. वर्त. कृ. प्र.
-
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अपेक्खिक
वि. ए. व. अपेक्खानोति अपेक्खन्तो, जा. अनु. 5.336; न्ती स्त्री उपरिवत यथाभूतमवेक्खन्ती, खन्धानं उदयब्बयं थेरीगा. 96: यथाभूतमवेक्खन्तीति एवं जातसंवेगा विपस्सनं पड़पेत्या अनिच्चादिमनसिकारेन यथाभूतमवेक्खन्ती थेरीगा. अड. 100 विखय पू. का. कृ. एवं चलित असण्ठितं. सुखदुक्खं मनुजेस्वपेक्खिय जा. अड्ड. 3.49 - क्खित्वा उपरिवत् तं तं अत्थमपेक्खित्वा, भुम्मेन करणेन घ. दी. नि. अड. 1.34.
अपेक्खन नपुं., अप + √इक्ख से व्यु० क्रि० ना० [अपेक्षण], इच्छा, लगाव, अपेक्षा सरोकार अनुयोग चित्तसतिपद्वानसद्धादीनं गृहपति धम्मादीनं अपेक्खनवसेन निच्चं पुल्लिङ्गभावरस इच्छिता सद. 1.229. अपेक्खवन्तु त्रि. [ अपेक्षावत्] अपेक्षाओं या इच्छाओं से युक्त, आसक्ति-युक्त, स्नेह-युक्त; वा पु०, प्र. वि., ए. व. सुखं चे जीवितुं इच्छे, सामञ्ञस्मिं अपेक्खवा, थेरगा. 228: सामञ्ञस्मिं अपेक्वाति सामज्ञस्मिं समणभावे अपेक्खवा सिक्खाय इच्छेय्य थे, थेरगा. अड. 1.379; अपेक्खवा अनुपादाय च न परितस्सति म. नि. 3.276 अपेक्खवाति सालयो ससिनेहो, म नि० अट्ठ. (उप.प.) 3.201; बती स्त्री. प्र. वि. ए. व. अपेक्खवतीति तस्सेव रागस्स वसेन तस्मिं पुरिसे पवत्ताय अपेक्खाय समन्नागता, पाचि, अट्ठ. 163.
For Private and Personal Use Only
अपेक्खा स्त्री, अप + √इक्ख से व्यु [अपेक्षा ], स्नेह, लगाव, आसक्ति इच्छा सम्भावने व गरहापेक्खासु च समुच्चये, अभि. प. 1183; वंसो विसालोव यथा विसत्तो पुत्तेसु दारेसु व या अपेक्खा, सु. नि. 38: या अपेक्खाति या तण्हा यो स्नेहो, चूलनि, अद्ध. 99 या मे मातापितूसु अपेक्खा सा पहीनाति, स. नि. 3(2). 472; - य तृ. वि., ए. व. सुत्तन्ति इमिना एवंसहसन्निधानतो वक्खमानापेक्खाय वा सोतब्बभेदप्पटिवेधदीपकेन दीपेति, उदा. अट्ठ. 15 -रहित त्रि. तत्पु. स. [अपेक्षारहित] अपेक्षा, आसक्ति या लगाव से रहित . अनपेक्खवाति वत्थु अपेक्खारहितो विगतच्छन्दरागो नित्तण्हो एवरूपो पुग्गलो विहरति महाराजाति, जा. अ. 1.146.
अपेक्खी त्रि., [बौ. सं. अवेक्षिन् ], अपेक्षा करने वाला, लगाव रखने वाला, प्रयोजन रखने वाला, केवल स. उ. प. के रूप में प्रयुक्त, अनपेक्खी, आमिसपेक्खी के अन्त द्रष्ट अपेक्खिक त्रि. [बौ. सं. अवेक्षिक] उपरिवत् ताणं लेणनन्ति आदीनि पेक्खिकानि भवन्ति हि सद्द० 1.70.
148
च
—