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अपायिम्हवग्ग
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अपारुत
समुद्र - अपरिपुण्णज्झासये एव महोघो विय परिकङ्घमानो अपायसमुद्दे पक्खिपती ति वत्वा धम्म देसेन्तो, ध, प. अट्ठ. 2.247; - सम्पन्न त्रि., तत्पु. स. [अपायसम्पन्न], जल की निकासी वाले द्वार से युक्त, जल को बाहर निकालने वाले विवर वाला - न आयसम्पन्न होति, न अपायसम्पन्न होति । न मातिकासम्पन्न होति, न मरियादसम्पन्न होति. अ. नि. 3(1).70; न अपाय सम्पन्नन्ति पच्छाभागे उदकनिग्गमनमग्गसम्पन्न न होति, अ. नि. अट्ट. 3.228; - सम्पापक त्रि., तत्पु. स. [अपायसम्प्रापक], नरक आदि दुःखदायक योनियों को प्राप्त कराने वाला, दुःखदायक गतियों के रूप में परिणत होने वाला - पञ्च छिन्देति हेट्ठाअपायसम्पापकानि पञ्चोरम्भागियसंयोजनानि पादे बद्धरज्जु पुरिसो सत्थेन विय हेढामग्गत्तयेन छिन्देय्य, ध. प, अट्ठ. 2.345; - सहाय पु., तत्पु. स., दुःखदायक गतियों या विपदाओं में ले जाने वाला साथी, भोगसाधनों को विनष्ट करने में सहायक साथी - अनुप्पियभाणी अमित्तो मित्तपतिरूपको वेदितब्बो, अपायसहायो अमित्तो मित्तपतिरूपको वेदितब्बो, दी. नि. 3.141; चतूहि ठानेहि अपायसहायो अमित्तो मित्तपतिरूपको वेदितब्बो ति, दी. नि. 3.142; अपायसहायोति भोगानं अपायेस सहायो होति, दी. नि. अट्ठ. 3.119. अपायिम्हवग्ग पु.. जा. अट्ट, के एक वग्ग का शीर्षक, जा.
अट्ट. 1.344-362. अपायूपपत्ति स्त्री., तत्पु. स. [अपायोत्पत्ति], नरक आदि दुःखदायक योनियों में पुनर्जन्म का ग्रहण - मनुस्सदोभग्गं वा हि अपायुप्पत्ति वा सब्बा पमादमूलिकायेवाति, ध. प. अट्ट, 1.158. अपायेसि ।पा के प्रेर. का अद्य., प्र. पु., ए. व., द्रष्ट. पिवति
के अन्त.. अपार' नपुं., पार का निषे. [अपार], शा. अ. नदी का इस
ओर वाला तट, जिसे पार न करना पड़े - ओरत्वपारमुच्चते. अभि. प. 665; न चस्स नावा सन्तारणी उत्तरसेतु वा अपारा पारं गमनाय, स. नि. 2(2).177: एहि पारापारन्ति अम्भो पारं अपारं एहि, अथ में सहसाव गहेत्वा गमिस्ससि. दी. नि. अट्ठ. 1.303; तथा यो पटिपज्जेय्य, गच्छे पारं अपारतो, सु. नि. 1135; अपारा पारं गच्छेय्य, भावेन्तो मग्गमत्तम सु. नि. 1136; ला. अ. यह लोक, मृत्यु से पूर्ववर्ती वर्तमान जीवन वाला संसार, छ: बाहरी इन्दियां या आयतन - यस्स पारं अपारं वा, पारापार न विज्जति, ध. प. 385; एवं मे
भयजातस्स, अपारा पारमेसतो, थेरगा. 763; तत्थ पारन्ति अज्झन्तिकानि छ आयतनानि, अपारन्ति बाहिरानि छ आयतनानि, ध. प. अट्ठ. 2.364; विलो. पार, तुल.
ओर. अपार त्रि.. ब. स. [अपार]. 1. तट-रहित, असीम, पहुंच के बाहर, अजेय, पार करने हेतु अतिकठिन - अथ परतो महासमुदं गम्भीरं वित्थतं अगाधमपारं दिस्वा भायेय्य मि. प. 114; अपारमतिघोरञ्च, सोसेति च असेसतो, अभि. अव. 1335; 2. वह जिसने नदी या सागर को पार नहीं किया है, उस पार न गया हुआ - अतिण्णयेव याचस्सु, अपारं तात नाविक जा. अट्ट. 3.202; तत्थ अपारन्ति तात, नाविक परतीरं अतिण्णमेव जनं ओरिमतीरे ठित व वेतनं याचस्स. जा. अट्ठ, 3.202; - नेय्य त्रि., पारनेय्य का निषे. [अपारनेय], शा. अ. वह, जिसे नदी के उस पार न ले जाया सके, ला. अ. फल प्राप्ति की अवस्था को अप्राप्त, भवसागर के उस पार नहीं ले जाने योग्य - अपारनेय्यं यं कम्म अफलं किलमथुद्दयं, जा. अट्ठ. 6.43; तत्थ अपारनेय्यन्ति वायामेन मत्थक अपापेतब्ब, जा. अट्ठ. 6.43; - दस्सी त्रि., पारदस्सी का निषे. [अपारदर्शिन्], शा. अ. उस पार को न देखने वाला, ला. अ. भवसागर का दूसरा तट अर्थात् निर्वाण का साक्षात्कार न करने वाला अज्ञानी जन - अस्सुतवा पुथुज्जनो .... अतीरदस्सी अपारदस्सी, स. नि. 2(1).148; अपारदस्सीति पारं वच्चति निब्बानं तं न पस्सति, स. नि. अट्ठ. 2.293; - पारगू त्रि., [अपारपारङ्गत], अपार या असीम संसारसागर के उस पार पहुंच चुका (बुद्ध की एक उपाधि) - अपच्छि सत्थारमपारपारगं, निरङ्गणं आतिगणस्स मज्झे, बु. वं. अट्ठ. 1. अपारिवासिक त्रि., पारिवासिक का निषे०, ताजा, रात भर संग्रह कर या संजोकर नहीं रखा गया, गर्म (भोजन), वह भोजन, जो बासी न हो - पच्चग्घन्ति अभण्डं अपारिवासिक.
जा. अट्ठ. 2.360. अपारुत त्रि., अप + आ + Vवु के भू. क. कृ. पारुत का निषे॰ [अपावृत], नहीं ढका हुआ, अनाच्छादित, खुला हुआ, खोल कर रखा हुआ, खोल दिया गया - अपारुता तेसं अमतस्स द्वारा, दी. नि. 2.31; अपारुताति विवटा, दी. नि. अट्ठ. 2.55; 214; अपारुतं तेसं अमतस्स द्वार'न्ति केचि पठन्ति, लीन. (दी.नि.टी.) 2.58; ... अपारुता अमतस्स द्वाराति... दी. नि. 2.160; - घर त्रि., ब. स. [अपावृतगृह]. खुले हुए द्वारों वाला घर - मनुस्सा मुदा मोदमाना उरे पुत्तं
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